असम: गोगोई ढलती उम्र के चलते ”चौका” मारने में विफल
गुवाहाटी : असम में चुनाव परिणाम आने के बाद जहां कांग्रेस को असफलता का मुंह देखना पड़ा है तो वहीं भाजपा असम के जरिए उत्तर-पूर्व में पहली बार कदम रख रही है. इस जीत के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने भी खुशी जाहीर की है और कार्यकर्ताओं के सिर जीत का सेहरा बांधा है. इस बार […]
गुवाहाटी : असम में चुनाव परिणाम आने के बाद जहां कांग्रेस को असफलता का मुंह देखना पड़ा है तो वहीं भाजपा असम के जरिए उत्तर-पूर्व में पहली बार कदम रख रही है. इस जीत के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने भी खुशी जाहीर की है और कार्यकर्ताओं के सिर जीत का सेहरा बांधा है. इस बार सत्ता विरोधी लहर और अपनी ढलती उम्र के चलते असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई इस बार विधानसभा चुनाव में अपने व्यक्तित्व का जादू चलाने में विफल रहे और पिछले चुनाव तक हैट्रिक जमाने वाले कद्दावर कांग्रेसी नेता इस बार चौका नहीं जड पाए.
कांग्रेस के भीतर ही अपने दोस्तों के दुश्मनों में बदल जाने के कारण 80 वर्षीय वरिष्ठ नेता ने विधानसभा चुनाव में पार्टी की वैतरणी पार लगाने की सारी जिम्मेदारी अकेले ही अपने कंधों पर ढोई लेकिन कांग्रेस की ओर बढते तूफान का रुख मोड पाने में विफल रहे. दुर्दांत उग्रवादी संगठन उल्फा को सुलह समझौते की मेज तक लाने, असम को दीवालियेपन के कगार से खींच कर इसे फिर से तरक्की की पटरी पर ले जाने का श्रेय गोगोई को जाता है. 80 वर्षीय गोगोई के बतौर मुख्यमंत्री तीसरे कार्यकाल में विरोध के स्वर उभरने लगे थे. विरोध के इन स्वरों में आग में घी डालने का काम किसी समय गोगोई की आंखों का तारा रहे शक्तिशाली नेता हिमंता बिस्वा शर्मा ने किया. प्रदेश की कमान हासिल करने का सपना दिल में लिए हुए शर्मा ने पिछले लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेसी विधायकों के एक धडे को लेकर बगावत का झंडा बुलंद कर दिया लेकिन संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी के भरोसेमंद गोगोई मंत्रिमंडल में फेरबदल कर अपनी सत्ता बचाने में कामयाब रहे. शर्मा ने नौ पार्टी विधायकों के साथ भाजपा का दामन थामने से पहले मंत्री पद, पार्टी और साथ ही विधानसभा से इस्तीफा दे दिया. इन विधायकों को हालंाकि बाद में अयोग्य घोषित कर दिया गया और इससे गोगोई तथा कांग्रेस दोनों को तगडा झटका लगा. इस झटके ने पार्टी की चुनावी संभावनाओं पर भी पलीता लगा दिया.
दूसरे और तीसरे कार्यकाल में कांग्रेस की सहयोगी रही बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) भी तीसरे कार्यकाल के अंतिम चरण में गठबंधन से नाता तोड कर चली गयी जिससे बोडो बहुल इलाकों में पार्टी की संभावनाओं पर असर पडा. उन्होंने बीपीएफ की विरोधी यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी : यूपीपी : के साथ विधानसभा चुनाव से कुछ ही समय पहले हाथ मिलाया था. शांत सौम्य व्यक्तित्व और स्पष्टवादी गोगोई दो बार केंद्र में मंत्री रहने के साथ ही छह बार लोकसभा सदस्य रहे हैं. गोगोई के 15 साल के कार्यकाल की उपलब्धियों पर गौर किया जाए तो प्रतिबंधित उल्फा समेत कई उग्रवादी संगठनों को वार्ता की मेज तक लेकर आना, राज्य सरकार की वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करना और विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन के जरिए राज्य की अर्थव्यवस्था में बडा परिवर्तन लाना रही हैं.
एनडीएफबी (एस) और बीटीएडी इलाकों में बोडो मुस्लिम संघर्ष की छुटपुट घटनाओं को छोडकर गोगोई का तीसरा कार्यकाल कुल मिलाकर हिंसा मुक्त रहा। मुख्यमंत्री स्वयं यह दावा करते रहे हैं कि उनके शासनकाल में राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति में सुधार हुआ और इसे अपने तीन कार्यकाल की वह एकमात्र सबसे बडी उपलब्धि मानते हैं. गोगोई ने 17 मई 2001 को पहली बार असम गण परिषद से सत्ता की कमान संभाली थी जहां उनके सामने सबसे बडी चुनौती राज्य को उग्रवादी हिंसा से बाहर निकालने और प्रदेश में वित्तीय स्थिरता बहाल करना थी. उस समय सरकार पर कर्ज का भारी बोझ था और कर्मचारियों को वेतन भी समय पर नहीं मिल रहा था.
दूसरे कार्यकाल में कुछ उतार चढाव देखने के बाद तीसरे कार्यकाल में गोगोई के स्वास्थ्य ने उनका साथ नहीं दिया। उन्हें अपने दिल के तीन बडे और पेचीदा आपरेशन करवाने पडे. 2011 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उन्हें पेसमेकर बदलवाने के लिए सर्जरी करानी पडी थी। लेकिन बहुत जल्द स्वस्थ हो वह पूरे जोशखरोश के साथ चुनाव प्रचार में जुट गए थे.