असम चुनाव में कैसे ढहा कांग्रेस का 15 सालों का मजबूत किला, पढ़ें

आशुतोष के पांडेय पटना / गुवाहाटी : असम में भारतीय जनता पार्टी की जीत हुई. 15 सालों से मुख्यमंत्री के रूप में कांग्रेस की कमान संभाल रहे तरुण गोगोई को हार का गहरा आघात भले ना लगा हो लेकिन कांग्रेस पार्टी को जरूर लगा है.पूर्वोत्तर में पहली बार बीजेपी ने बकायदा पूर्ण बहुमत के साथ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 19, 2016 6:38 PM
an image

आशुतोष के पांडेय

पटना / गुवाहाटी : असम में भारतीय जनता पार्टी की जीत हुई. 15 सालों से मुख्यमंत्री के रूप में कांग्रेस की कमान संभाल रहे तरुण गोगोई को हार का गहरा आघात भले ना लगा हो लेकिन कांग्रेस पार्टी को जरूर लगा है.पूर्वोत्तर में पहली बार बीजेपी ने बकायदा पूर्ण बहुमत के साथ जीत दर्ज की है. भारत के सरहदी राज्य असम की सियासत से कांग्रेस छिटकर दूर जागिरी है. लोगों ने बीजेपी को गले लगाकर परिवर्तन की लहर पर अपना हस्ताक्षर कर दिया है. चुनाव पूर्व आम लोगों ने भी संकेत दे दिया था कि इस बार उर्जावान हाथों में नेतृत्व सौंपा जायेगा. हुआ भी यही, सर्वानंद सोनेवाल को लोगों ने सर आंखों पर बिठाया और कालान्तर में ‘काम रूप’ के नाम से जाने-जाने वाले असम की गद्दी उन्हें सौप दी. सवाल उठता है कि आखिर, कैसे भाजपा ने कांग्रेस के इस किले को धराशायी किया? कांग्रेस की पराजय और बीजेपी के विजयश्री के पीछे कौन से फैक्टर सामने आ खड़े हुए.

स्थानीय स्तर पर संगठन में विवाद

मीडिया रिपोर्ट्स और राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक तरुण गोगोई की पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से अच्छे संबंध की छवि और प्रचार में स्थानीय कार्यकर्ताओं का तरजीह ना मिलना, हार के एक बड़े कारण के रूप में देखा जा रहा है. कांग्रेस के अंदर देशव्यापी कार्यकर्ताओं में चल रहे असंतोष का प्रभाव चुनाव प्रचार पर भी दिखा. असम में राहुल और सोनिया की सभा का थोड़ा भी लाभ तरुण गोगोई को नहीं मिल पाया. तरुण गोगोई के प्रति कार्यकर्ताओं और पार्टी नेताओं का आक्रोश भी इस कारण दबा रहा क्योंकि सबलोग जानते थे कि उनके संबंध राहुल और सोनिया से काफी अच्छे हैं. इसलिए कोई भी कार्यकर्ता गोगोई के गलत फैसले का भी डर से विरोध नहीं करता था. कार्यकर्ताओं और प्रचार की कमान संभाल रहे गोगोई में एक बड़ी सी संवादहीनता की रेखा खींच गयी, जिसने हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी.

मोदी सेसीधे भिड़ने की गलती

तरुण गोगोई चुनाव प्रचार के दौरान सिर्फ मोदी विरोध को ही अपना मुख्य एजेंडा बनाये रहे.गोगोई अपनी बात और असम की समस्याओं कोसुलझानेकी बात को लोगों के सामने सही तरीके से नहीं रख पाये. उन्हें लगा कि जिस तरह बिहार में चुनाव प्रचार मोदी बनाम नीतीश हो गया था. कुछ इसी तरह वह भी मोदी पर अक्रामक होकर अपनी नैया पार लगा लेंगे. बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने इस बात का ख्याल रखा कि असम के चुनाव में वह संभलकर बोलें. बीजेपी ने कोई ऐसा मौका कांग्रेस को नहीं दिया, जिस पर वे हमलावर हो सकें. गोगोई के कार्यकाल में कानून-व्यवस्था की स्थिति भी काफी दयनीय रही.राज्य में हत्या के साथ महिलाओं पर हमले होते रहे. राज्य में आम लोगों की छोटी-छोटी समस्यां बड़ा रूप धारण करती रही. लोग कांग्रेस के 15 साल के शासन और विकास की तरुणाई खो चुके तरुण गोगोई से अब मुक्ति चाहने लगे थे.

हिंदू विरोधी छवि

बीजेपी ने लगातार गोगोई के बारे में लोगों के बीच यह प्रचारित किया कि कांग्रेस के शासनकाल में असम में घुसपैठियों की संख्या बढ़ी. इतना ही नहीं बीजेपी यह साबित करने में भी सफल रही कि बांग्लादेशी घुसपैठियों के नेता मौलाना बदरुद्दीन अजमल से गोगोई ने अंदरूनी समझौता किया है. क्योंकि इसके पहले अजमल ने यह कहा था कि वह कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहते हैं.अजमल की पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट असम में बांग्लादेशियों का प्रतिनिधि संगठन माना जाता है.

विश्वासपात्र नेताओं का गोगोई से मोहभंग

गोगोई के काफी करीबी माने जाने वाले असम की घाटियों के लोगों पर अच्छी पकड़ रखने वाले स्थानीय नेता हेमंत सरमा का कांग्रेस से अलग होना भी हार का एक कारण बना.हेमंत सरमा कांग्रेस से अलग होकर बीजेपी के पाले में चले गये जिससे काफी संख्या में लोगों ने बीजेपी को समर्थन देना बेहतर समझा. बीजेपी ने अजमल को केंद्र में रखकर लोगों को पोस्टर के माध्यम से पूछा कि वह सर्वानंद सोनोवाल को मुख्यमंत्री के रूप में पसंद करते हैं याफिर अजमल को. बीजेपी ने मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में सोनोवाल की पहले ही घोषणा कर स्थिति को पूरी तरह स्पष्ट कर दिया था. तरूण गोगोई अपने पिछले कार्यकाल के दिवास्वपन में रह गये और बीजेपी ने मैदान मार लिया.

Exit mobile version