राजस्थान यात्रा: विकास की भाषा-भूख अलग होती है

-हरिवंश- यहां के सरकारी अतिथि के निवास में चौकस सरकारी कारिदें बार-बार मेहमानों से पूछताछ करते हैं, ‘हुकम (महाशय के लिए राजस्थानी शब्द) कोई जरूरत.’ जिस शैली, तौर-तरीके से सरकारी कार्यालय-मिजाज और दृष्टि, संचालित हैं, उस माहौल में हिंदी इलाके के किसी राज्य में न सिर्फ सरकारी स्तर पर, बल्कि सामाजिक-सार्वजनिक जीवन में अतिशय विनम्रता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 25, 2016 11:59 AM
-हरिवंश-
यहां के सरकारी अतिथि के निवास में चौकस सरकारी कारिदें बार-बार मेहमानों से पूछताछ करते हैं, ‘हुकम (महाशय के लिए राजस्थानी शब्द) कोई जरूरत.’ जिस शैली, तौर-तरीके से सरकारी कार्यालय-मिजाज और दृष्टि, संचालित हैं, उस माहौल में हिंदी इलाके के किसी राज्य में न सिर्फ सरकारी स्तर पर, बल्कि सामाजिक-सार्वजनिक जीवन में अतिशय विनम्रता और सृजन की भूख ने एक नया माहौल बनाया है. शायद यही कारण है कि पिछले एक दशक के दौरान रेगिस्तान, मरूस्थल और सामंती परंपराओं के लिए मशहूर राज्य ‘ राजस्थान’ की तसवीर तेजी से बदली है.
पूरे देश में राजस्थान एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां राज्य ट्रांसपोर्ट निगम मुनाफे में चलता है. गुजरे वित्तीय वर्ष में लगभग 11 करोड़ का मुनाफा हुआ. खूबसूरत और करीने से बसे शहर जयपुर में ‘राजस्थान ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन’ की भव्य इमारत है. राजस्थान की सरकारी बसें पड़ोसी राज्यों और राज्य के कोने-कोने में पहुंचती हैं. जिन लोगों को बिहार राज्य ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन के बजबजाते बस स्टेशन, टूटी-फूटी बसें और सरकारी मुलाजिमों की ‘लठमार बोली’ का ‘स्वर्गिक अनुभव’ है, उनके लिए राजस्थान ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन को देखना-जानना दूसरे लोक का अनुभव है.

60 फीट चौड़ी सड़कों पर खूबसूरत बसों (भद्दी, टूटी, अपंग बसों के मुकाबले) में यात्रा ही उल्लेखनीय अनुभव नहीं है, बल्कि समयबद्ध यात्रा का सुख अलग है. जिन अराजक राज्यों में निर्धारित समय से दो-चार घंटे विलंब यात्रा आरंभ करना ‘ सामान्य बात’ हो गयी है, उनके लिए राजस्थान का अनुभव असामान्य हो सकता है.


रूग्ण सरकारी उपक्रमों को बंद करने या उन्हें प्रोफेशनल ढर्रे पर चलाने की चर्चा पूरे देश में हाल में शुरू हुई. पर राजस्थान सरकार ने ‘ताते पांव पसारिए, जाते लंबी ठौर’ के आधार पर कुछ वर्षों पूर्व ही घाटे वाले सरकारी उद्योगों-उपक्रमों को चरागाह या अपढ़ राजनेताओं का आश्रयस्थल न बनने देने का निश्चय किया. यह कार्य जिस सख्ती-सक्षमता से राजस्थान सरकार ने किया, वह अनुकरणीय है. हाल-हाल तक राजस्थान की मशहूर दुग्ध सरकारी समितियां घाटे में चलती थीं, अब वे मुनाफे में चल रही हैं. घाटे वाले दूसरे सहकारी उद्योग भी अब मुनाफा कमा रहे हैं.

एकमात्र राजस्थान बिजली बोर्ड की स्थिति ठीक नहीं है. पर उसमें भी घाटा कम हुआ है. इसे दुरुस्त करने के लिए सरकार एक ‘दीर्घावधि योजना’ बना चुकी है. ‘एटामिक रियेक्टर’ से बिजली उत्पादित होगी. जिन राज्य के लोगों को अंधेरे में रहने की आदत है, उन्हें यह देखकर सदमा लगता है कि सामान्य स्थिति में जयपुर या राज्य के दूसरे हिस्सों में बिजली कभी दो-चार दिन के लिए गायब नहीं रहती. राजस्थान के समाचारपत्रों में पूर्व सूचना दी जाती है कि शहर के अमुक-अमुक इलाकों में बिजली या टेलीफोन लाइनों को ठीक करने के क्रम में इतने घंटे तक बिजली या टेलीफोन की सेवाएं बाधित रहेंगी.

व्यक्तिगत प्रतिस्पर्द्धा या आपसी लड़ाई के दौरान हत्या-मारपीट की घटनाएं राजस्थान के लिए सामान्य है. पर अनायास हत्या या डकैती की घटना असाधारण चीज है. असुरक्षित और उग्र माहौल से आये लोगों के लिए राजस्थान के शहरों में देर रात तक चहल-पहल और आत्मीय बरताव सुखद अनुभूति हैं. जयपुर के एक पुराने निवासी बताते हैं कि उनके मोहल्ले में तड़के सुबह वर्षों से म्युनिसिपेल्टी का सफाई कर्मचारी झाड़ू लगाता है. यह दशकों से चला आ रहा नियमिति कार्यक्रम है, चाहे गरमी हो या बरसात. ‘ शायद यही कारण है कि जयपुर की खूबसूरती-सफाई उसे विशिष्ट बनाती है.
उपभोक्ता संस्कृति ने जिस तरह शहरों की निजता खूबसूरती को ग्रस लिया है, उसमें चिड़ियों की चहचहाहट, मोर की आवाज और पेड़ों से घिरे जयपुर को देखकर आभास होता है कि राजस्थान के लोग विकास के बावजूद अतीत के समृद्ध पहलुओं से कटे नहीं हैं.
पानी का संकट अब भी है. रेगिस्तानी इलाकों में दूर-दूर पानी लाने के लिए जाना पड़ता है. वहां कहावत ‘खसम (पति) मर जाये, पर गगरा न फूटे,’ भरतपुर के मदीरा गांव में गाया जाता है- ‘कजरा बैंवी भूल गयी, मदीरा तेरा पानी’.
एक बहू मदीरा के कुओं से पानी निकालते समय नयी बहू से कहती है, कुओं से पानी खींचते नयी बहू काजल-टीका लगाना भी भूल गयी. पर आज राजस्थान के उन प्यासे इलाकों की भी तसवीर बदल रही है. पश्चिमी राजस्थान में रावी-व्यास का पानी (जिसे खाड़कू या पंजाब सरकार बाधित करती रहती है) लोगों के जीवन को खुशहाल बना रहा है. जिन-जिन इलाकों में बिजली-पानी का संकट है, अकाल की स्थिति है, उनके लिए राज्य सरकार ने 174 करोड़ रुपये की विशेष योजनाएं बनायी हैं. केंद्र सरकार से सहायता मांगी है, लेकिन केंद्र की आनाकानी से राजस्थान में भी यह भाव पनप रहा है कि केंद्र भी ‘उग्र आवाज’ को ही तरजीह देता है. विभिन्न दलों के लोग दलीय संबंध से ऊपर उठ कर बताते हैं कि कौन-कौन से सांसद या केंद्र में तैनात अधिकारी राजस्थान के हितों के लिए सक्रिय रहते हैं.

कांग्रेस के राजेश पायलट, भाजपा के जसवंत सिंह और वसुंधरा राजे सिंधिया, अधिकारियों में हाल में सेवानिवृत्त अनिल बोरदिया, कैबिनेट सचिव नरेशचंद्र (पहले राज्य के पूर्व सचिव थे) और आरडीआर मेहता की लोग राजस्थान के शुभचिंतक के रूप में चर्चा करते हैं. दलगत हितों से ऊपर उठकर राज्य के विकास के सवाल पर राज्य के शुभचिंतकों के लिए अलग कसौटी निर्धारण एक अलग और सकारात्मक दृष्टि है.


राजस्थान के आइजी स्तर के एक अधिकारी बताते हैं कि आर्थिक विकास की भाषा और भूख अलग होती है. सामाजिक समरसता कायम किये बगैर सृजन-विकास का माहौल नहीं बन सकता. राजस्थान के पुराने रजवाड़ों-सामंतों ने अपना विशेषाधिकार छोड़ा है, गरीब-गुरबे, पिछड़े-दलित समूहबद्ध हुए हैं. उन्हें सरकार ने ‘हक दिलाया है. इसके बाद राज्य की समृद्धि, औद्योगिकीकरण, सिंचाई, बिजली उत्पादन के लिए कोशिशें हो रही हैं, ताकि समाज का हर वर्ग इससे लाभान्वित हो सके. अपंग विकास या आंशिक विकास से आक्रोश पनपता है, इस कारण दलगत हितों से ऊपर उठ कर राज्य के राजनेता प्रदेश की आर्थिक स्थिति बेहतर बनाने के लिए सक्रिय हैं.

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