आप खुद बदलना चाहते हैं, राज्य बदलना चाहते हैं या अपना देश, तो ली की पुस्तक ”फ्रॉम थर्ड वर्ल्ड टू फर्स्ट” पढ़े!

-हरिवंश- सृजन के उत्स क्या हैं? कैसे कोई समाज, देश, व्यक्ति या समूह अपना पुनर्निर्माण करता है? प्रगति के निर्धारित सोपान क्या हैं? ऐसा कोई मापदंड, कसौटी या नुस्खा है, जो बताये कि सिंगापुर जैसे देश कैसे आगे निकल गये? कम समय में उन्होंने विकास का नया इतिहास कैसे लिखा? सिंगापुर छोड़ते समय ऐसे अनेक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 27, 2016 11:10 AM

-हरिवंश-

सृजन के उत्स क्या हैं? कैसे कोई समाज, देश, व्यक्ति या समूह अपना पुनर्निर्माण करता है? प्रगति के निर्धारित सोपान क्या हैं? ऐसा कोई मापदंड, कसौटी या नुस्खा है, जो बताये कि सिंगापुर जैसे देश कैसे आगे निकल गये? कम समय में उन्होंने विकास का नया इतिहास कैसे लिखा? सिंगापुर छोड़ते समय ऐसे अनेक सवाल हम साथियों के बीच चर्चा के विषय थे. आत्ममंथन के भी.
टुकड़े-टुकड़े में इन सवालों के उत्तर मौजूद थे. संकल्प, अनुशासन और जिद. चुनौतियों को स्वीकारने का मादा और पौरुष, परनिंदा, गप और आलस्य से मुक्त माहौल.

मुझे याद आया अर्थशास्त्री डॉ प्रभुनाथ सिंह का सुनाया प्रसंग़ द्वितीय पंचवर्षीय योजना के समय आयकर के संबंध में परामर्श करने के लिए प्रख्यात ब्रिटिश अर्थशास्त्री को भारत सरकार ने न्योता. भारत की कार्यशैली देखने-समझने के बाद भारत के असल संकट के बारे में उन्होंने टिप्पणी की. ‘इंडियन आर टाकर्स नाट डूअर्स’ (भारतीय बातूनी हैं कामकाजी नहीं) कर्म और बड़ी-बड़ी बातों का यह फर्क, सिंगापुर जैसे देशों में न्यूनतम है.

फिर भी सिंगापुर कैसे बना? या आप खुद अपना नसीब कैसे बदल सकते हैं या कोई कौम अपनी तकदीर या कोई देश दुर्भाग्य के ललाट पर, नया इतिहास रचना चाहे, तो सिंगापुर कैसे बना, इस पर ली क्वान यी की पुस्तक जरूर पढ़े. ‘दि सिंगापुर स्टोरी’ दो भागों में है. पहला खंड ‘द सिंगापुर स्टोरी’ लगभग 684 पृष्ठ दूसरा खंड ‘फ्रॉम थर्ड वर्ल्ड टू फर्स्ट 734 पृष्ठ की पुस्तक .
ली क्वान यी सिंगापुर के पहले प्रधानमंत्री 35 वर्ष की उम्र में (1959 में) प्रधानमंत्री बने. नवंबर 1990 में स्वत: प्रधानमंत्री की गद्दी छोड़ दी. आज भी जीवित और सक्रिय हैं. दुनिया में जीवित शायद ऐसा दूसरा ‘स्टेट्समैन’, नहीं. संसार के सारे बड़े जीवित राजनेताओं ने ली का लोहा माना है. फिलहाल वह सिंगापुर सरकार के ‘सीनियर मिनिस्टर’ कहे जाते हैं. एक तरह से मानद पद. रिटायर जीवन जी रहे हैं. हमारे लिए यही आश्चर्य था कि कोई स्वत: प्रधानमंत्री पद छोड़ता है. वह भी तब, जब उसके प्रताप-सृजन रोशनी के ताप से दुनिया आलोकित हो. शिखर पर सूर्यास्त, सृजन की चोटी से संन्यास. कोई नेता ‘रिटायर जीवन’ जीना चाहता है! हम तो उस देश के ‘वासी’ हैं, जहां नेता कब्र में ही रिटायर होते हैं.
ली की पुस्तक का पहला खंड कुछ वर्षों पहले पढ़ा था. कर्म दर्शन का व्यावहारिक दस्तावेज़ चीन होकर लौटते समय हांगकांग हवाई अड्डे पर ली के सस्मरणों का दूसरा खंड मिला. कुछ ही महीनों पहले यह पुस्तक छप कर आयी है. पुस्तक का शीर्षक ही अर्थपूर्ण है. ‘फ्रॉम थर्ड वर्ल्ड टू फर्स्ट’ (तीसरी दुनिया से सीधे पहली दुनिया में).
पुस्तक की प्रस्तावना डॉ हेनरी कीसिंगर ने लिखी है. ली ने पुस्तक समर्पित की है, अपने उन साथियों को, जिन्होंने सिंगापुर को सीधे तीसरी दुनिया से पहली दुनिया में पहुंचाया. इसमें एक भारतीय मूल के हैं एस राजरत्नम.कीसिंगर भी सिंगापुर की कथा जान कर स्तब्ध है न. यह मलाया का हिस्सा था. मलाया ने इसे अचानक अलग कर दिया, ताकि इनका बोझ न उठना पड़े. सिंगापुरी स्वतंत्र देश होने के लिए तैयार नहीं थे. तब (1990) 30 लाख की आबादी थी. दक्षिण में इंडोनेशिया, जिसकी उन दिनों आबादी 10 करोड़ थी. उत्तर में मलाया (अब मलयेशिया) तब आबादी लगभग 70 लाख थी. दक्षिण पूर्व एशिया के सबसे छोटे देश सिंगापुर के पास तब कोई भविष्य नहीं था. ताकतवर पड़ोसियों का भय अलग.
कींसिगर के अनुसार ली को लगा (जैसे हर महान आदमी को लगता है) कि यह संकट भी एक अवसर है.कीसिंगर कहते हैं कि ली ने पहले सपना देखा और हर बड़ी उपलब्धि, हकीकत बनने के पहले सपना ही होती है. वह सपना था कि सिंगापुर याचक नहीं रहेगा, दयनीय नहीं रहेगा, प्राकृतिक संसाधन नहीं है, तो सर्वश्रेष्ठ इंटेलीजेंस, अनुशासन और कार्यपटुता से दुनिया में जगह बनायी जाये. इस अभियान में पहल काम ली ने क्या किया? शहर की सफाई में खुद लगे और अपने उन साथियों को लगाया, जिन्होंने सिंगापुर की तकदीर बदल दी. अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री कीसिंगर की वह भूमिका पढ़ते हुए मुझे गांधी याद आये.

मामूली और छोटी शुरुआत से ही बड़े काम होते हैं. कांग्रेस कार्यसमिति की ऐतिहासिक बैठकों में जब आधी रात को इतिहास गढ़ने-बदलने की गंभीर चर्चाएं होती, तब गांधी मामूली कामों के लिए बैठक स्थगित कर देते या रोक देते. हमारे बड़े नेताओं को अजीब लगता. उसी रास्ते सिंगापुर को दुनिया का सिरमौर बनाने का, जो अभियान चला, उसकी शुरुआत वहां के पहले प्रधानमंत्री (फादर ऑफ सिंगापुर के रुप में भी चर्चित) ने खुद सड़क पर झाड़ू लगाने से की. अपने मंत्रियों को भी लगाया. हमारे नेताओं की तरह प्रचार-प्रसार के लिए नहीं, बल्कि कथनी-करनी का भेद मिटाने के लिए शून्य से चल कर शिखर तक पहुंचने के लिए . शून्य से चल कर शिखर तक पहुंचने के लिए.

इसी दूसरे खंड में ली ने भारत के बारे में लिखा है. एक स्वप्नदर्शी की तरह, जब वह विद्यार्थी थे., तो नेहरु के सपनों ने उन्हें मोहा नेहरु के विजनरी व्यक्तित्व से वह प्रभावित हुए. वह कहते हैं. 50 के दशक में विकास के दो मॉडल सामने थे. एक भारत, दूसरा चीन. ली बताते हैं कि चीनी मूल के होते हुए भी मैं चाहता था कि भारतीय लोकतांत्रिक मॉडल सफल हो और हमारा आदर्श बने. 1962 में ली भारत आये. नेहरू से मिले. अपने नायक से. इसके बाद 1964 में उन्होंने नेहरू को देखा. इसका मार्मिक वर्णन है. तब चीन के हमले में नेहरू टूट चुके थे. कुछ ही महीनों बाद मर गये. इंदिरा जी, मोरारजी, राजीव गांधी और नरसिंह राव से अपनी मुलाकातों का दिलचस्प ब्योरा ली ने दिया है. जब वह इंदिरा जी के निमंत्रण पर भारत आये तो पाया कि राष्ट्रपति भवन का रख-रखाव खराब हो गया है. भारत में बने एयर कंडीश्नर कैसे घटिया थे? राष्ट्रपति भवन के कर्मचारी कैसे आगंतुक विदेशी अतिथियों के आतिथ्य में आया मद्य चुरा लेते थे. एक दिन सिंगापुर के उच्चायुक्त ने दिल्ली में ली के सम्मान में भोज आयोजित किया. बड़े-बड़े लोग आये. वहां से उपहार में कैसे भारत सरकार के अफसर ‘जानी वाकर शराब की दो-दो बोतलें ले गये. ली कहते हैं कि एक तरफ शराबबंदी की बात और नेताओं द्वारा खद्दर धारण करने का ढोंग और दूसरी तरफ यह अनैतिकता. विदेशी शराब लेने के लिए होड़, जिस देश का शासक वर्ग ऐसा दोहरा आचरण रखता हो, वह कहां पहुंचेगा?
ली ने 1966-67 के आसपास का यह प्रसंग लिखा है. आज हमारा शासक वर्ग तो संयम मर्यादा खो कर पूरी तरह लुटेरा ही बन गया है. उसी समय ली को लगा कि अब भारत आर्थिक महाशक्ति नहीं बन सकता है. ली का निष्कर्ष है कि भारत की प्रगति में नौकरशाहों का सबसे बड़ा अवरोध है. नरसिंह राव ने ली को न्योता कि वे ब्रेन स्टार्मिंग सेशन के लिए भारत आयें और देश के बड़े नौकरशाहों को संबोधित करें. जनवरी ’96 में ली भारत आये और इंडिया इंटरनेशनल में भारत के चोटी के नौकरशाहों को संबोधित किया. उनका मानना है कि ‘दे मस्ट चेंज देअर माइंडसेट एंड एक्सेप्ट दैट इट वाज देअर ड्यूटी दू फेसिलिटेट, नाट रेगुलेटट़… (भारतीय नौकरशाहों को अपने सोचने का तरीका बदलना होगा और स्वीकार करना होगा कि उनका काम शासन या नियंत्रित करना नहीं, बल्कि काम करनेवालों की मदद करना है.
पुस्तक में ली बताते हैं कि सिंगापुर पिछड़े मुल्क से विकसित कैसे बना? दुनिया के जिस हिस्से में, किसी क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ काम होता था, उसकी सूचनाएं मंगवाना, जा कर देखना, फिर मंत्रिमंडल के सभी साथियों को उनकी जानकारी देना. हर क्षेत्र में ‘एक्सलेंस’ की भूख, सर्वश्रेष्ठ होने की भूख देश बनाने के लिए मंत्रियों की सबसे योग्य-कुशल टीम बनी. गवर्नेंस (राजकाज) में, विकास में, नयी उपलब्धि में, इनोवेशन में…
पूरा देश एक अद्भुत ह्मूमन प्रिंट से ओतप्रोत. नेतृत्व की कसौटी भी यही है कि वह देश को कुछ करने पाने के लिए जगा दे. यही ली और उनकी टीम ने किया. अब आप आंकिए भारत और झारखंड के नेताओं को!

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