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रक्षा मंत्रालय के पास रखी एक अप्रकाशित किताब में दावा : ताइपेई विमान हादसे में बच गये थे नेताजी

नयी दिल्ली : नेताजी सुभाष चंद्र बोस के विमान हादसे में बचे होने या नहीं बचे होने को लेकर अनेकों अलग-अलग तरह की बातेंकही जाती है, दावे किये जाते रहे हैं, लेकिनअप्रकाशित पुस्तक केप्रारूपमें कहा गया है कि 1945 में ताइपेई विमान हादसे में नेताजी जीवित बच गये थे. इस आशय की खबर अंगरेजी अखबार […]

नयी दिल्ली : नेताजी सुभाष चंद्र बोस के विमान हादसे में बचे होने या नहीं बचे होने को लेकर अनेकों अलग-अलग तरह की बातेंकही जाती है, दावे किये जाते रहे हैं, लेकिनअप्रकाशित पुस्तक केप्रारूपमें कहा गया है कि 1945 में ताइपेई विमान हादसे में नेताजी जीवित बच गये थे. इस आशय की खबर अंगरेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने दी है. अखबार ने अपनी इस खबर में लिखा है कि भले भारत सरकार और दो जांच अयोग यह कहते हों कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के 1945 में ताइपेई विमान हादसे में मारे गये थे, लेकिन एक किताब का प्रारूप ऐसा बताता है कि वह हादसे में जिंदा बच निकलने में कामयाब रहे थे. अखबार की खबर के अनुसार, किताब का यह प्रारूप 1953 से रक्षा मंत्रालय के इतिहास विभाग के पास रखाहुआ है. यह किताब इतिहासकार प्रफुल्ल चंद्र गुप्ता ने हिंस्ट्री ऑफ द इंडियन नेशनल आर्मी नाम से 1942-45 में लिखी थी.

मालूम हो कि नेताजी से जुड़ी अबतक केंद्र ने 175 और पश्चिम बंगाल सरकार ने 64 फाइलें सार्वजनिक की है. पर, इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, रक्षा मंत्रालय ने अबतक आरटीआइ आवेदनों और कोर्ट ऑर्डर्स के बावजूद किताब के कंटेंट का खुलासा नहीं किया है.

इस किताब को छापने पर विभिन्न मंत्रालयों से राय मांगने की आखिरी कोशिश 2011 में हुई थी. तब 22 जून, 2011 को विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव गौतम बम्बावले ने एक नोट लिखा था : 60 साल बाद इस किताब को छापने पर किसी देश के साथ रिश्ते खराब नहीं होंगे. इसलिए इसे छापने में कोई आपत्ति नहीं है.

बाम्बवले ने अपने नोट में लिखा : किताब के कुछ पन्ने 186 से 191 विवादित हो सकते हैं, जिनमें जापान में एक विमान हादसे का जिक्र है…इस संस्करण में यह बात साबित नहीं होती और सिर्फ यह कहा गया है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस शायद विमान हादसे से जिंदा बच निकले हों. इस मुद्दे पर, किताब का वर्तमान संस्करण इस विवाद को खत्म नहीं करेगा.

इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी खबर में कहा है कि 2011 से पहले विदेश मंत्रालय ने किताब का प्रारूप 1953 में देखा था, तब प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू विदेश मंत्रालय का जिम्मा संभाल रहे थे. यह पुस्तक मुखर्जी आयोग के निष्कर्षों का समर्थन करती है, जिन्हें एक दशक पहले सरकार ने नकार दिया था.

हादसे के बाद जांच के लिए बनाये गये दो आयोगों – शाहनवाज आयोग और खोसला आयोग का निष्कर्ष है कि नेताजी ताइपेई में मारे गये थे. जबकि 2006 में संसद में पटल पर रखी गयी मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था कि नेताजी अब भले दुनिया में नहीं हों, पर उनकी मौत विमान हादसे में नहीं हुई थी. 2011 में विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट इसलिए मांगी गयी थी, क्योंकि रक्षा मंत्रालय ने दिल्ली हाइकोर्ट को अश्वासन दिया था कि किताब जुलाई 2011 से पहले छाप दी जायेगी, पर ऐसा हो नहीं सका.

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