दलितों के हक में है ग्लोबलाइजेशन, जाति और विषमता का 3000 वर्षों पुराना इतिहास

जिस दिन वर्ल्ड सोशल फोरम का उदघाटन हो रहा था, उस दिन दलित चेतना के गढ़ महाराष्ट्र में, दलित विकास के बारे में नये ढंग से सोचने-विचारनेवाले नरेंद्र जाधव के महत्वपूर्ण विचार पढ़ने को मिले. दलित नरेंद्र जाधव अत्यंत तेजस्वी छात्र रहे. अर्थशास्त्र में विशेष अध्ययन किया. फिर आइएमएफ (अंतरराष्टीय मुद्रा कोष) से जुड़ गये. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 30, 2016 5:21 PM

जिस दिन वर्ल्ड सोशल फोरम का उदघाटन हो रहा था, उस दिन दलित चेतना के गढ़ महाराष्ट्र में, दलित विकास के बारे में नये ढंग से सोचने-विचारनेवाले नरेंद्र जाधव के महत्वपूर्ण विचार पढ़ने को मिले. दलित नरेंद्र जाधव अत्यंत तेजस्वी छात्र रहे. अर्थशास्त्र में विशेष अध्ययन किया. फिर आइएमएफ (अंतरराष्टीय मुद्रा कोष) से जुड़ गये. अब भारतीय रिजर्व बैंक के आर्थिक शोध कोषांग के प्रमुख हैं. उनका मानना है कि ग्लोबलाइजेशन से जो नये अवसर आये हैं, खास कर दलितों को उनका अधिकाधिक लाभ उठाना चाहिए. क्योंकि भावी 50 वर्षों में भारत में ग्लोबलाइजेशन सफल होता है, तो जाति व्यवस्था स्वत: मर जायेगी. 3000 वर्षों पुराना विषमता का इतिहास मिट जायेगा.

वह मानते हैं कि ग्लोबल दुनिया में राजसत्ता के सिकुड़ने का तर्क देनेवाले हाय तौबा मचा कर लोगों को बेवजह डरा रहे हैं. कहा जा रहा है कि आर्थिक कार्यों से राज्य संस्था हाथ खींच रही है, तो रोजगार खत्म हो जायेंगे. लेकिन सुधार प्रक्रिया से राज्य संस्था नहीं विखरनेवाली. राज्य संस्था, आर्थिक विकास-क्षेत्रों से निजीकरण के पक्ष में हाथ खींचेगी, पर दोगुनी ताकत-ऊर्जा से सामाजिक क्षेत्रों के सशक्तीकरण में लगेगी. बदलते परिवेश में ‘स्टेट’ के इस रोल को लोग नहीं देख पा रहे हैं. ग्लोबलाइजेशन की प्रक्रिया में राज्य सत्ता के सिमटाव को लेकर अनायास शोर हो रहा है.

ग्लोबलाइजेशन दलितों के हित में है. याद करिये जब गांधीजी लोगों से कह रहे थे कि ‘गांव जाओ’, तब बाबा साहब आंबेडकर ने अपने अनुयायियों को नारा दिया ‘शहरों में जाओ’ बिल्कुल उलटा. आंबेडकर को लगा कि जाति के सशक्त दुर्गों (गांवों) से निकल कर दलित जब शहरों की चौहद्दी में जायेंगे, तो नये परिवेश-नये माहौल में, उन्हें नये अवसर मिलेंगे. पुराने आबोहवा-माइंडसेट से मुक्ति मिलेगी. इस तरह दलित विकास की दौड़ में शरीक होंगे. श्री जाधव के अनुसार बदलाव की दृष्टि से यही तर्क ग्लोबलाइजेशन के संदर्भ में लागू होता है. इस दौरा में प्रोफेशनलिज्म (व्यावसायिक) और कांपटिटीव इफीशियंसी (स्पर्द्धात्मक सक्षमता) ही प्रेरक कारक हैं. इसलिए उदारीकरण में अपार नये अवसर होंगे. नयी नौकरियां होंगी. जिनका चयन मापदंड, जाति-व्यवस्था नहीं होगी. इस तरह प्रशिक्षित दलितों के लिए अवसर के नये द्वार खुलेंगे. इस तरह एलपीजी यानी लिबरलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन (उदारीकरण, निजीकरण और खगोलीकरण) में दलितों की मुक्ति की संभावनाएं निहित हैं. अगर राज्यसत्ता सही ढंग से इस अवसर का लाभ लें, तो यह संभावना, हकीकत में बदल सकती है.

श्री जाधव के अनुसार दलित समाज में साइलेंट रिवोल्यूशन (गुपचुप क्रांति) हो रहा है. बाबा साहब से प्रेरित दलितों को स्पष्ट हो गया है कि शिक्षा से ही मुक्ति संभव है. लोगों को यह जान कर आश्चर्य होगा कि आज पुस्तकों पर दूसरों के मुकाबले दलित अधिक खर्च कर रहे हैं. हर छह दिसंबर को बाबा साहब को श्रद्धांजलि देने भारी संख्या में दलित मुंबई आते हैं. इस बार 15 लाख दलित मुंबई आये. इन दो दिनों में जितनी पुस्तकें बिकीं, वह संख्या अविश्वसनीय लगती है.

ग्लोबलाइजेशन में विकास की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है. सामाजिक क्षेत्रों (शिक्षा, आवास, स्वास्थ्य, सफाई) में पारदर्शी तरीके से सरकार भारी निवेश का प्रावधान करेगी. अंतत: गरीबों पर इस खर्च से दूरगामी असर होगा. लोगों की उत्पादक क्षमता बढ़ेगी और भारत आर्थिक क्षेत्र में सुपरपावर बनेगा.डब्ल्यूएसएफ के उदघाटन अवसर पर, नरेंद्र जाधव की इस विचारोत्तेजक टिप्पणी का युवाओं पर गहरा असर था.

Next Article

Exit mobile version