इशरत को आतंकी ना बताने वाले हलफनामे में कुछ भी गलत नहीं : चिदंबरम
मुंबई : इशरत जहां मुठभेड मामले में दूसरे हलफनामे का मसौदा तैयार करने में कथित भूमिका के लिए भाजपा के हमले का सामना कर रहे पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम ने आज कहा कि उस हलफनामे में कानूनी, राजनैतिक या नैतिक रुप से कुछ भी गलत नहीं था, जिसमें कहा गया था कि इस बात […]
मुंबई : इशरत जहां मुठभेड मामले में दूसरे हलफनामे का मसौदा तैयार करने में कथित भूमिका के लिए भाजपा के हमले का सामना कर रहे पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम ने आज कहा कि उस हलफनामे में कानूनी, राजनैतिक या नैतिक रुप से कुछ भी गलत नहीं था, जिसमें कहा गया था कि इस बात को साबित करने के लिए कोई अकाट्य प्रमाण नहीं था कि वह आतंकवादी थी.
चिदंबरम ने इस बात को भी याद किया कि हलफनामा तब दायर किया गया था जब अहमदाबाद के मेट्रोपोलिटन जज एस पी तमांग की सितंबर 2009 की रिपोर्ट में कहा गया था कि मुठभेड फर्जी थी. बाद की जांचों में भी कहा गया था कि मरने वाले लोग पुलिस की हिरासत में थे और उनके पास से बरामद हथियार पुलिस ने रखे थे. यह जांच पहले एसआईटी और बाद में सीबीआई ने की थी.
चिदंबरम ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘विवरण कहता है कि यह फर्जी मुठभेड थी. जो लोग मारे गए थे वे दो या तीन दिन से अधिक समय से हिरासत में थे. उनकी मध्यरात्रि में हत्या की गई. उनकी उस वक्त हत्या की गई जब वे कार में बैठे थे. उनके शवों पर 2.06 लाख रुपये रखे गए. ये सब एक न्यायाधीश का निष्कर्ष है.’
चिदंबरम ने कहा, ‘‘हलफनामे में सिर्फ पांच या छह पैराग्राफ हैं. यह पहले हलफनामे को वापस नहीं लेता है. दूसरे पैराग्राफ में यह कहता है कि क्यों नया हलफनामा दायर किया जा रहा है और पांचवें पैरा में यह कहा गया है कि भारत सरकार नियमित रुप से राज्यों के साथ खुफिया सूचना साझा करती है. उसी अनुसार, हम खुफिया सूचना साझा करते हैं.’
चिदंबरम ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि खुफिया सूचना सिर्फ खुफिया सूचना होती है और यह अकाट्य साक्ष्य नहीं होता और खुफिया सूचना के आधार पर आप किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकते. इसकी अवश्य जांच की जानी चाहिए और अदालत में मुकदमा चलाया जाना चाहिए.’ पूर्व गृह मंत्री का बयान इस बात की अटकलों के बीच आया है कि इशरत जहां फर्जी मुठभेड मामले की लापता फाइलों की जांच के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा गठित एक सदस्यीय जांच समिति अपनी रिपोर्ट शीघ्र सौंप सकती है.
सवालों का जवाब देते हुए पूर्व गृह मंत्री ने कहा, ‘‘यह समझ से परे है कि क्यों कुछ फाइलें गायब हैं.’ तमिलनाडु कैडर के आईएएस अधिकारी बी के प्रसाद की अध्यक्षता वाली समिति का गठन इस साल 14 मार्च को किया गया था कि किन परिस्थितियों में इशरत जहां मामले से संबंधित महत्वपूर्ण फाइलें गायब हुईं. इशरत 2004 में गुजरात में कथित फर्जी मुठभेड में मारी गई थी. सवालों का जवाब देते हुए चिदंबरम ने आज कहा, ‘‘मुझे बताएं कि हलफनामे का कौन सा हिस्सा कानूनी, नैतिक या राजनैतिक रुप से गलत है, हलफनामे का कौन सा वाक्य या शब्द कानूनी, राजनैतिक और नैतिक रुप से गलत है.’ उन्होंने कहा, ‘‘और कृपया याद रखें कि हलफनामे को भारत के महान्यायवादी ने भी देखा था . ‘
चिदम्बरम ने कहा कि गृह मंत्रालय से जो दस्तावेज गायब हुए हैं उनमें अटॉर्नी जनरल द्वारा जांचे गए हलफनामे की प्रति भी शामिल है और जिसे 2009 में गुजरात उच्च न्यायालय को सौंपा गया था और दूसरे हलफनामे का मसौदा जिसमें बदलाव किए गए थे.’ उन्होंने कहा कि पहला हलफनामा महाराष्ट्र और गुजरात पुलिस से मिली सूचना के अलावा खुफिया ब्यूरो की सूचना के आधार पर दायर किया गया था, जिसमें कहा गया था कि मुंबई के बाहरी इलाके की 19 वर्षीय लडकी इशरत लश्कर-ए-तय्यबा की आतंकवादी थी लेकिन दूसरे हलफनामे में इसकी अनदेखी की गई थी.
सूत्रों ने बताया कि दूसरे हलफनामे के बारे में दावा है कि तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम ने इसका मसौदा तैयार किया था उसमें कहा गया था कि इस बात को साबित करने के लिए अकाट्य सबूत नहीं हैं कि इशरत आतंकवादी थी. पूर्व गृह सचिव जी के पिल्लै ने दावा किया था कि गृह मंत्री के तौर पर चिदंबरम ने अदालत में मूल हलफनामे दायर किए जाने के एक महीने बाद फाइल को वापस मंगाया था. मूल हलफनामे में कहा गया था कि इशरत और उसके साथ मारे गए उसके अन्य साथी लश्कर-ए-तय्यबा के आतंकवादी थे.
बाद में चिदंबरम ने कहा था कि हलफनामे में बदलाव के लिए पिल्लै भी समान रुप से जिम्मेदार हैं. इशरत, जावेद शेख उर्फ प्राणेश पिल्लै, अजमद अली अकबर अली राणा और जीशान जौहर को गुजरात पुलिस ने 15 जून 2004 को अहमदाबाद के बाहरी इलाके में मुठभेड में मार गिराया था.