यह है, रहनुमाई

-हरिवंश- पश्चिमी इतिहासकार कहते थे कि चीन को सोये (तब चीनी अफीम के अभ्यस्त थे) रहने दो, वरना वह जगा, तो दुनिया भौंचक होकर देखती रह जायेगी? ’78 के बाद लगातार ऊंची विकास दर और चमत्कारिक परिवर्तन से दुनिया को स्तब्ध कर रखा है, चीन ने. पर इससे भी आश्चर्य है, चीनी राष्ट्रपति हू जिनताओ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 1, 2016 4:59 PM

-हरिवंश-

पश्चिमी इतिहासकार कहते थे कि चीन को सोये (तब चीनी अफीम के अभ्यस्त थे) रहने दो, वरना वह जगा, तो दुनिया भौंचक होकर देखती रह जायेगी? ’78 के बाद लगातार ऊंची विकास दर और चमत्कारिक परिवर्तन से दुनिया को स्तब्ध कर रखा है, चीन ने. पर इससे भी आश्चर्य है, चीनी राष्ट्रपति हू जिनताओ का एक ताजा फैसला. जुलाई के महीनों से बड़े चीनी नेता, रम्य व खूबसूरत बेदियादू समुद्र तट पर चले जाते.

लंबे, छतनार हरे-भरे चीनी साइप्रस पेड़-पौधों से घिरे विशेष रिहाइशी इलाके में. चीन में स्वर्ग के रूप में पहचानवाला इलाका. साम्यवादी व्यवस्था के नेताओं की रहन-सहन, भव्यता और शानो-शौकत की खबरें पहले से आती रहती हैं. बेदियादू समुद्री तट पर चीन के सिरमौर नेताओं के लिए बने आवास (विराज) वैसे ही हैं. माओ से जियांग जेमिन तक सब अपने शीर्षस्थ साथियों के साथ हर जुलाई में वहां पड़ाव डालते थे. 70 के दशक की माओ की एक बड़ी मशहूर तसवीर है. समुद्र में तैरते हुए. वह इसी जगह की है. शानो-शौकत की इस परंपरा को चीन के नये सुधारवादी राष्ट्रपति हू जिनताओ ने अचानक बंद कर दिया है.

वह और उनके नये प्रधानमंत्री वेन जियावो ने तय किया है कि बेदियादू समुद्र किनारे शिखर (कानक्लेव) से चीन की छवि, देश और दुनिया में खराब होती है. उनकी शानो-शौकत, भौतिक सुख और गोपनीयता से चीन और संसार में खराब संदेश जाते हैं. सामान्य चीनी भाषी पर्यटकों के लिए वह समुद्र तट बंद हो जाता है. सुरक्षा बंदोबस्त से जनता परेशान होती है. नेता भौतिक-स्वर्ग में है, यह संदेश जाता है?

दुनिया में चीन के जानकार, अध्येता और विश्लेषक, इस युवा चीनी नेतृत्व के फैसले से स्तब्ध है. साम्यवादी राष्ट्रपति हू ने चीनी प्रशासन की कसौटी तय की है, ‘एकाउंटिबिलिटी’ (जवाबदेही). जिस बंद साम्यवादी व्यवस्था में नेताओं-अफसरों या शासक वर्ग पर सवाल उठ सकते थे, अंगुली नहीं उठायी जा सकती थी, साम्यवादी गोपनीयता के दुर्ग कोई भेद नहीं सकता था. भय-आतंक ने जहां जनता और चीनी शासक के बीच ‘अदृश्य चीनी दीवार’ खड़ी कर दी थी, वहां वियतनाम स्क्वायर पर लोकतंत्र-खुलेपन की मांग करनेवाले युवकों पर सेना ने टैंक चलाया, वह चीन खुल रहा है, करवट ले रहा है, नया इतिहास लिख रहा है.

अप्रत्याशित ढंग से बदल रहा है. इतना तेज कि आप देख कर हतप्रभ हो जायें. जुलाई में ही हू जिनताओ ने चीनी सरकार के बड़े अफसरों की बैठक बुलायी. कहा, जनता की इच्छाओं. सुख-दुख को समझें. हर नीति की बुनियाद में सामान्य जनता हो. इसी क्रम में नये चीनी राष्ट्रपति ने पोलित ब्यूरो की अति गोपनीय बैठकों के कुछ हिस्सों को जनता के लिए सार्वजनिक बनाने का आदेश दिया है.

साम्यवाद और चीन के जानकारों के लिए कदम अविश्वसनीय है. शासक स्वत: अपना घेरा तोड़ रहे हैं. नेताओं का विशिष्ट क्लास (वर्ग) जनता के निकट आ रहा है. बंद दुर्ग की खिड़कियां खुल रही हैं. पारदर्शिता की बयार आ रही है. अधिकार संपन्न और चुनौतीविहीन साम्यवादी नेता, जनता के प्रति जवाबदेह बन रहे हैं. यह है, नेतृत्व या लीडरशीप, जो नये हरफों से सफलता का इतिहास लिख दे. इच्छाओं की इबारत से अपने मुल्क को शिखर पर पहुंचा दें. जो जनता की आत्मा-दबी इच्छाओं को अपने फैसलों व जीवन में प्रतिबंधित करे.
याद रखने लायक तथ्य हैं. 21वीं सदी के आरंभ में जग चुके चीन के नेता खुलापन ला रहे हैं. जनता के पास पहुंच रहे हैं. आभिजात्य की दीवार तोड़ कर. अपना जीवन खुला बना कर व्यवस्था में ‘एकाउंटिबिलिटी’ (जवाबदेही) लाकर शानो-शौकत की पुरानी परंपरा छोड़ कर.
और लोकतांत्रिक भारत में? नेताओं में विशिष्ट बनने की होड़ है. सच को परदे में रखने के लिए हमेशा तत्पर. सरकारी सुविधाएं, सुरक्षा और विशिष्टता कवच के लिए निर्लज्ज आचरण. सरकारी कोष के इस्तेमाल में बेशर्म. लोकतांत्रिक ढांचे में भ्रष्टाचार के असंख्य-अनगिनत टापू विकसित करने में माहिर.
भारत में बदलाव चाहनेवालों के लिए पड़ोसी चीन की ये घटनाएं सबक हैं. हमारे नेता, अपने निजी जीवन-आचरण-लूट की दुनिया को गोपनीयता के किले बना कर अपने को सुरक्षित करना चाहते हैं. बंद साम्यवादी व्यवस्था के सर्वोच्च लोग खुद पहल कर जनता के प्रति जवाबदेह बन रहे हैं. यह है, रहनुमाई.

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