जाट आरक्षण आंदोलन: प्रकाश सिंह समिति ने अपनी रिपोर्ट में सेना की तैनाती की निंदा की

चंडीगढ : जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान हुई हिंसा पर काबू पाने में नाकाम रहने को लेकर हरियाणा के कई आला पुलिस और सिविल अधिकारियों को दोषारोपित करने वाली प्रकाश सिंह समिति ने अपनी रिपोर्ट में तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि जाट आंदोलन के दौरान जितने ‘बडे पैमाने पर’ सेना तैनात की गयी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 1, 2016 9:35 PM

चंडीगढ : जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान हुई हिंसा पर काबू पाने में नाकाम रहने को लेकर हरियाणा के कई आला पुलिस और सिविल अधिकारियों को दोषारोपित करने वाली प्रकाश सिंह समिति ने अपनी रिपोर्ट में तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि जाट आंदोलन के दौरान जितने ‘बडे पैमाने पर’ सेना तैनात की गयी थी, वह किसी आक्रमणकारी सेना के छोटे-मोटे हमले को नाकाम करने के लिए काफी थी. रिपोर्ट में कहा गया, ‘हरियाणा में सेना की तैनाती बडे पैमाने पर की गई थी. अधिकतम 74 टुकडियां तैनात थीं. ये करीब 12 बटालियन के बराबर का काम कर सकती थीं. यह एक अच्छी-खासी संख्या है, जो किसी आक्रमणकारी सेना की ओर से किसी खास इलाके में छोटे पैमाने पर किए गए हमले को नाकाम करने के लिए काफी है.’

उत्तर प्रदेश पुलिस और सीमा सुरक्षा बल के प्रमुख रह चुके प्रकाश सिंह ने राज्य की भाजपा सरकार के लिए भी कडे शब्दों का इस्तेमाल किया है. रिपोर्ट में कहा गया कि मनोहर लाल खट्टर सरकार पीछे मुडकर कभी ‘इन घटनाओं पर गर्व नहीं कर सकेगी’ और प्रशासन ‘निष्प्रभावी’ हो गया था. रिपोर्ट के मुताबिक, ‘यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि आंतरिक गडबडियों से निपटने के लिए इतने बडे पैमाने पर सेना तैनात करनी पडी थी.’ प्रकाश सिंह समिति ने कहा कि सेना की तैनाती से कोई असर नहीं पडा. समिति ने कहा कि ‘परेशान करने वाली चर्चा’ तो यह भी थी कि दंगाइओं को सेना से कोई डर नहीं था.

समिति ने कहा, ‘राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) को यह कहने में कोई हिचक नहीं थी कि ‘प्रदर्शनकारियों को सेना की मौजूदगी से कोई डर नहीं था’. यह कोई अच्छे हालात नहीं हैं और इस पर हमें चिंतित होना चाहिए.’ रिपोर्ट में कहा गया, ‘यदि यह (प्रदर्शनकारियों को सेना का खौफ न होना) जारी रहा तो यह न सेना के लिए अच्छा है और न ही देश की आंतरिक सुरक्षा की स्थिति के लिए.’

आंतरिक गडबडियों से निपटने के लिए सशस्त्र बलों का इस्तेमाल करने की निंदा करते हुए समिति ने कहा, ‘हर बल की एक परिभाषित भूमिका होती है और उन्हें सामान्य परिस्थितियों वह भूमिका निभाने में सक्षम होना चाहिए. यदि पुलिस के कामकाज में कोई मुश्किल या कोई बाधा हो तो मुश्किलों को सुलझाने की जरुरत होती है और बाधाएं दूर करनी पडती है. सेना को आखिरी विकल्प के तौर पर तभी बुलाना चाहिए जब बाकी सभी प्रयास विफल हो जाएं.’

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