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गुलबर्ग सोसाइटी केस: अब नौ जून को होगा सजा का ऐलान

अहमदाबाद :गुलबर्ग सोसाइटी केस में कोर्ट ने दोषियों की सजा के ऐलान की तारीख बढ़ा दी है अब सजा का ऐलाननौ जून को होगा. आपको बता दें कि पूरे देश को झकझोर कर रख देने वाले 2002 के गुजरात दंगों के दौरान हुए गुलबर्ग सोसाइटी हत्याकांड में पिछले गुरुवार को विशेष एसआइटी अदालत ने 24 […]

अहमदाबाद :गुलबर्ग सोसाइटी केस में कोर्ट ने दोषियों की सजा के ऐलान की तारीख बढ़ा दी है अब सजा का ऐलाननौ जून को होगा. आपको बता दें कि पूरे देश को झकझोर कर रख देने वाले 2002 के गुजरात दंगों के दौरान हुए गुलबर्ग सोसाइटी हत्याकांड में पिछले गुरुवार को विशेष एसआइटी अदालत ने 24 आरोपियों को दोषी करार दिया, जबकि 36 आरोपियों को बरी कर दिया. फैसला सुनाते हुए अदालत ने सभी आरोपियों पर लगाये गये साजिश के आरोप को भी खारिज कर दिया.

आज मामले को लेकर जाकिया जाफरी ने कहा कि गुलबर्ग सोसाइटी में जो हुआ, उसे बदला नहीं जा सकता. वह घटना इंसानियत को शर्मसार करने वाला था. दोषियों को सख्त सजा मिले, ताकि ऐसे तत्वों के मंसूबे नाकाम हो सकें. जिन्होंने गुलबर्ग सोसाइटी में मारकाट बचाई, बच्चों तक को नहीं छोड़ा, महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया, उनको सख्त से सख्त सजा मिले. गौरतलब है कि बीते गुरुवार को गुलबर्ग सोसाइटी हत्याकांड में विशेष एसआइटी अदालत ने 24 आरोपियों को दोषी करार दिया, जबकि 36 आरोपियों को बरी कर दिया था.

गुलबर्ग सोसाइटी में भारी भीड़ ने किया था हमला

गुजरात के बहुचर्चित गोधरा कांड के एक दिन बाद 28 फरवरी, 2002 को अहमदाबाद के गुलबर्ग सोसाइटी में भारी भीड़ ने हमला किया था, जिसमें कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी सहित 69 लोग मारे गये थे. बरी किये गये आरोपियों में भाजपा के मौजूदा निगम पार्षद बिपिन पटेल भी हैं जबकि विश्व हिंदू परिषद के नेता अतुल वैद्य उन 13 लोगों में शामिल हैं, जिन्हें हल्की धाराओं में दोषी करार दिया गया. जिस इलाके में गुलबर्ग सोसाइटी स्थित है, वहां के तत्कालीन पुलिस इंस्पेक्टर के जी एर्डा और पूर्व कांग्रेस पार्षद मेघ सिंह चौधरी को भी कोर्ट ने बरी कर दिया.

11 को हत्या का कसूरवार ठहराया गया

विशेष एसआइटी अदालत के न्यायाधीश पी बी देसाई ने दोषी करार दिये गये 24 आरोपियों में से 11 को हत्या का कसूरवार ठहराया, जबकि बाकी को अन्य आरोपों में दोषी करार दिया गया. कुल 66 आरोपियों में से छह की मौत सुनवाई के दौरान हो चुकी है. सभी आरोपियों पर लगायी गयी आइपीसी की धारा 120-बी को हटाते हुए अदालत ने कहा कि इस मामले में आपराधिक साजिश का कोई सबूत नहीं है. साजिश के आरोप को हटाने से दोषियों की जेल की सजा की अवधि कम होगी. अभियोजन पक्ष हत्या के दोषी ठहराये गये 11 लोगों को मौत की सजा देने की मांग कर सकता है. हालांकि, पीड़ितों के वकीलों ने कहा कि वे हत्या के दोषियों के लिए उनकी मृत्यु तक जेल की सजा की मांग करेंगे.

सरकारी वकील ने कहा, मौत की सजा मांगेंगे :
फैसले के बाद विशेष लोक अभियोजक आर सी कोडेकर ने कहा, ‘हम 11 आरोपियों के लिए मौत की सजा की मांग करेंगे, क्योंकि यह बर्बर अपराध है और अदालत से अनुरोध करुंगा कि वह इसे दुर्लभतम मामला माने. हल्की धाराओं में दोषी करार दिये गये 13 अन्य के लिए 10-12 साल की सजा मांगी जायेगी.’ साजिश के आरोप खारिज किये जाने पर कोडेकर ने कहा, ‘एसआइटी ने आइपीसी की धारा 120-बी के तहत सुनियोजित साजिश के आरोप लगाये थे, लेकिन साजिश के बाबत आरोपियों के खिलाफ ठोस सबूत नहीं थे और इसलिए हम इस पर आगे नहीं बढ़ सके. हम सबूतों के आधार पर काम करते हैं, भावनाओं पर नहीं.’

वकील बोले, फांसी की सजा नहीं मांगेंगे :
पीड़ितों के वकील एस एम वोरा ने कहा कि वह अदालत की ओर से दोषी ठहराये गये लोगों के लिए मौत की सजा नहीं मांगेंगे. फैसले के बाद पत्रकारों से बातचीत में वोरा ने कहा, ‘अदालत दोषियों को मौत की सजा सुना सकती है, लेकिन हम इसके पक्ष में नहीं हैं. छह जून को हम अदालत से कहेंगे कि हम इन 11 दोषियों के लिए उनकी मृत्यु तक जेल की सजा चाहते हैं, क्योंकि हम मौत की सजा के पक्ष में नहीं हैं.’

तिस्ता ने स्वागत किया :
फैसला आने के बाद सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने इसका स्वागत किया. उन्होंने कहा, ‘14 साल के संघर्ष के बाद मैं बस ये कह सकती हूं कि हम फैसले का स्वागत और आदर करते हैं और जब तक हम फैसले के अंतिम बिंदुओं को पढ न लें, मैं ज्यादा कुछ नहीं कह सकती.’ तीस्ता ने आगे कहा, ‘लोगों को यह अहसास नहीं होता कि ऐसे संघर्ष करने का मतलब क्या होता है. सबसे ज्यादा श्रेय तो जीवित बचे उन लोगों को जाना चाहिए, जिन्होंने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी गवाही दी.’

अधूरा न्याय, जाऊंगी ऊपरी अदालत : जाकिया

फैसला आने के बाद एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी 36 आरोपियों को बरी किये जाने पर निराशा जतायी. जकिया ने कहा, यह अधूरा न्याय है. मैंने अपनी आंखों से सब कुछ देखा था. सबको सजा मिलनी चाहिए था. उन्हें जिंदगी भर जेल में रहना चाहिए. वह इस आदेश के खिलाफ अपील करेंगी. उन्होंने कहा, मैं कानूनी लड़ाई जारी रखूंगी. उनके बेटे तनवीर ने हैरत जताते हुए कहा, जब सैकड़ों की भीड़ दंगे में शामिल थी, तो सिर्फ 24 लोगों को कैसे दोषी करार दिया गया. गुलबर्ग सोसाइटी कोई चाय की दुकान नहीं है जिसे एक आदमी जला दे. बाकी लोग क्यों बरी किये गये.

एसआइटी प्रमुख आरके राघवन भी निराश

मामलों की जांच करने वाले विशेष जांच दल (एसआइटी) की प्रमुख रहे पूर्व सीबीआइ निदेशक आर के राघवन ने लोगों को बरी किये जाने पर निराशा प्रकट की और कहा कि वे इस बारे में फैसला करेंगे कि सभी आरोपियों के खिलाफ षड्यंत्र के आरोप को वापस लिये जाने के खिलाफ अपील करें या नहीं. उन्होंने कहा, ‘मैं लोगों को बरी किये जाने को लेकर थोड़ा निराश हूं. यह खेल का हिस्सा है और आप हर बार नहीं जीत सकते. अदालत के सामने तथ्यों को रखकर एक जांच अधिकारी के तौर पर अपना सर्वश्रेष्ठ काम किया, लेकिन अदालत ने उनकी बात नहीं मानी.’

28 फरवरी, 2002 : अहमदाबाद के बीचों-बीच स्थित इस सोसाइटी पर हिंसक भीड़ ने हमला कर पूर्व सांसद एहसान जाफरी सहित वहां के निवासियों की हत्या कर दी थी. यह घटना 2002 के गुजरात दंगों के संबंध में दर्ज नौ मामलों में शामिल थी जिनकी जांच सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एसआइटी कर रही थी. इस घटना से एक दिन पहले साबरमती एक्सप्रेस की एस-6 कोच को गोधरा रेलवे स्टेशन पर जला दिया गया था, जिसमें 58 कारसेवक मारे गये थे.

तत्कालीन मुख्यमंत्री से भी हुई थी पूछताछ: गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से भी इस मामले में 27 मार्च, 2010 में पूछताछ हुई थी. हालांकि एसआइटी रिपोर्ट में उन्हें क्लीन चिट दे दी गयी थी. 15 सितंबर 2015 को सुनवाई खत्म हो गयी थी.

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