राष्ट्रपति को सुनना, प्रेरक अनुभव है!
-हरिवंश- अवसर था, प्रेस इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित ‘ग्रासरूट सम्मेलन’. नेहरू मेमोरियल के प्रेक्षागृह में मीडिया से जुड़े चुनिंदे लोग आमंत्रित थे. समाज के विभिन्न क्षेत्रों में (पर्यावरण, पानी, कृषि, सूचना के अधिकार वगैरह में उल्लेखनीय काम करनेवाले) मानक वन चुके लोग भी मौजूद थे. इस सम्मेलन का उद्घाटन किया, राष्ट्रपति एपीजे कलाम ने. […]
-हरिवंश-
इस सम्मेलन का उद्घाटन किया, राष्ट्रपति एपीजे कलाम ने. उनकी मौजूद, वक्तव्य और विजन, ऊर्जा के केंद्र हैं. उन्हें सुनना यादगार अनुभव है. उन्हें पहले भी सुना था, बड़ी भीड़ में. पर छोटे समूह में पहली बार सुनने का अवसर मिला.सम्मेलन में गिने-चुने लोग थे. राष्ट्रपति बिल्कुल समय से आये. राष्ट्रगान के समय, हाथ से संकेत कर लोगों को गाने के लिए उन्होंने प्रेरित किया. खुद गाये. एक ऐसे दौर में, तब राष्ट्रपति ‘राजनीति’ प्रेरणा-आदर्श का स्रोत नहीं रही, तब राष्ट्रपति की बातें मन को छूती हैं.
उनकी ‘सिनसियरिटी’ (ईमानदारी, प्रतिबद्धता) पारदर्शी है. शायद एनडीए सरकार की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि रही है, कलाम साहब को राष्ट्रपति बनाना.आज देश में किसी राजनीतिक दल के पास समाज या युवकों के लिए कोई सपना नहीं है. वह एजेंडा नहीं है, जो भारत को महान बनाने का ख्वाब दिखाता हो. जाति, धर्म, भ्रष्टाचार, आरोप-प्रत्यारोप के दुष्चक्र से परे इस निराश माहौल में ‘इंडिया 2020’ का सपना कलाम साहब ने दिखाया.
राष्ट्रपति बनने से पहले इस प्रसंग में प्रामाणिक पुस्तक लिख कर एक नया विजन डाक्यूमेंट देश को दिया. इसके बाद से हर संभव फोरम (विधानसभाओं से विश्वविद्यालयों तक) से देश बनाने का आह्वान किया. नये तथ्य, नयी दृष्टि और सफल उदाहरणों के साथ. उनकी खासियत है कि वह एक ओर तमिल-संस्कृत के पुराने प्रेरक चीजों को उद्धृत करते हैं, भारत के अतीत से समृद्ध और यादगार प्रसंग ढूंढ़ लाते हैं, वहीं विज्ञान, तकनीक वगैरह क्षेत्रों की अत्याधुनिक जानकारियां भी देते हैं.
सहज और सरल भाषा में. वह संगीत, विज्ञान, आध्यात्म, साहित्य, दर्शन सबमें रुचि रखते हैं. परंपरा की उत्कृष्ट चीजों के प्रतीक है वह. पर उनका उल्लेखनीय योगदान है, अतीत और अधुनातन ‘ज्ञान स्रोतों’ से देश के लिए एक व्यावहारिक मॉडल ढूंढ़ लाना. कृषि, उद्योग, शिक्षा, तकनीकी … हर क्षेत्र के लिए राष्ट्रपति के पास एक साकार करने योग्य सपना और विजन है. ग्रासरूट मीडिया सम्मेलन में भी राष्ट्रपति ने उल्लेखनीय बातें कीं. मीडिया से जुड़ीं.
फिर उन्होंने एसएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन के एक कार्यक्रम की जानकारी दी. कहा कुछ दिनों पहले फाउंडेशन ने ‘नेशनल फेलोज’ को आमंत्रित किया. ये ‘नेशनल फेलोज’ कौन थे? बौद्धिक, अध्येता, वैज्ञानिक, इतिहासकार, अर्थशास्त्री वगैरह? ‘नेशनल फेलोज’ से आम अवधारणा यही निकलती है. पर स्वामीनाथन फाउंडेशन में ‘नेशनल फेलो’ के रूप में देश के कोने-कोने से ग्रासरूट पर काम करनेवाले ऐसे लोग बुलाये गये थे, जिनके काम-प्रयास से हजारों लोगों के जीवन पर गहरा असर पड़ा है. जीवन स्तर सुधरा है. ऐसे अनेक लोगों के नाम राष्ट्रपति ने गिनाये और मीडिया से इनके बारे में लिखने की बात की.
उन्होंने ‘प्रो-एक्टिव मीडिया’ की बात की. मीडिया बदलाव का मानस बनाये. उन्होंने पूरा (प्रोवाइडिंग अरबन एमिनिटीज इन रूरल एरियाज : ग्रामीण इलाकों में शहरी सुविधाएं) अवधारणा पर चर्चा की. ग्रामीण इलाकों में इकनामिक कनेक्टविटी (आर्थिक गतिविधियां) की तस्वीर सामने रखी. मीडिया रिसर्च पर जोर दिया. जमीन से जुड़े सवालों को उठाने के लिए मीडिया को ‘मिशन’ बताये. फिर मीडिया को लोगों के सवालों के जवाब दिये.