श्रीनगर : कश्मीर घाटी में सैनिक कॉलोनी स्थापित किए जाने के मुद्दे पर आज जम्मू-कश्मीर विधानसभा में मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और नेशनल कान्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला के बीच तकरार हुई तथा सदन में भारी हंगामा हुआ. विपक्ष और कुछ मीडिया संगठनों पर एक ‘गैर मुद्दे’ को उठाने का आरोप लगाते हुए महबूबा ने उमर पर उनके ट्वीटों के लिए हमला बोला, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री उमर ने यह कहते हुए जवाबी हमला किया कि यह उन्हें (महबूबा) जवाबदेह बनाने के लिए है और वह सोशल मीडिया के जरिए जनहित के मुद्दों पर बात करने से पीछे नहीं हटेंगे. उमर ने कहा, ‘मेरे छोटे से ट्वीट आपको चुभ जाते हैं. आपका मूड बिगड जाता है. यदि मैं ट्वीट कर आपको जवाबदेह बनाता हूं तो मैं यह जारी रखूंगा. मैं नहीं रुकूंगा और इसके लिए माफी नहीं मांगूंगा.’
अब्दुल रशीद ने सदन में उठाया मुद्दा
सशस्त्र बलों के कर्मियों के लिए प्रस्तावित कॉलोनी का मुद्दा निर्दलीय विधायक शेख अब्दुल रशीद ने उठाया. एक अखबार की प्रति लहराते हुए रशीद आसन के समक्ष आ गए और सरकार से मुद्दे पर बयान देने को कहा. उन्होंने कहा, ‘पिछली बार मुख्यमंत्री ने कहा था कि घाटी में सैनिक कॉलोनी स्थापित किए जाने का कोई प्रस्ताव नहीं है और अब हम यह रिपोर्ट देखते हैं. सच क्या है ?’
गुस्साये महबूबा ने उमर पर साधा निशाना
गुस्साईं महबूबा ने कहा कि अखबार की खबर में कोई सच्चाई नहीं है और उसमें जो तस्वीर छपी है, वह जम्मू एंड कश्मीर लाइट इन्फैंटरी (जेएकेएलआई) के क्वार्टरों की है जो यूनिट के विवाहित कर्मियों के लिए बनाए जा रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं पता कि ये अखबार क्या चाहते हैं? क्या वे राज्य को आग में झोंकना चाहते हैं? खबर प्रकाशित करने से पहले उन्हें जांच करनी चाहिए थी.’ महबूबा ने कहा, ‘विपक्षी सदस्य इन अखबारों को लेकर आए जिनके मैं नाम नहीं लूंगी क्योंकि वे प्रचार चाहते हैं. यदि कोई शांति में खलल डालने की कोशिश करता है तो उनसे सख्ती से निपटा जाएगा.’
उमर पर निशाना साधते हुए महबूबा ने कहा कि पूर्व में सत्ता में रहने के बावजूद वह मुद्दे पर ट्वीट कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘उमर अब्दुल्ला चार बैठकों (सैनिक बोर्ड की) में शामिल (मुख्यमंत्री के रूप में) हुए थे और सभी चार बैठकों में उन्होंने निर्देश दिया कि सैनिक कॉलोनी की स्थापना के लिए भूमि चिह्नित की जानी चाहिए.’ महबूबा ने सोशल मीडिया पर लगातार विचार व्यक्त करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री के बारे में कहा, ‘अब, वहां ट्वीट, ट्वीट, ट्वीट हैं.’ विपक्षी सदस्यों ने मुख्यमंत्री के गुस्से का यह कहकर विरोध किया कि हर चीज मीडिया ने पैदा नहीं की है.
क्या कहा उमर अब्दुल्ला ने
महबूबा के आरोप पर उमर ने कहा कि उन्होंने कभी भी सैनिक कॉलोनी स्थापित किए जाने के मुद्दे पर हुई बैठकों का हिस्सा होने से इनकार नहीं किया है, लेकिन उन्होंने कभी भी ऐसा कोई आदेश पारित नहीं किया था. उमर ने कहा, ‘यदि मेरे कार्यकाल में ऐसा कोई आदेश पारित किया गया था तो कृपया इसे सामने लाएं. यदि आप यहां लोगों के कल्याण के लिए हैं तो मैं भी यहां हूं जिससे कि लोग लाभान्वित हो सकें.’
उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना है कि जब मुख्यमंत्री राज्य को आग में झोंके जाने के बारे में बात कर रही हैं तो वह मेरे साथ ही खुद को भी भ्रमित कर रही हैं. मेरा कार्यकाल गवाह है. यदि हमने आपके पदचाप का अनुसरण किया होता तो राज्य आग के मुहाने पर होता.’नेशनल कान्फ्रेंस के नेता ने कहा कि वह इस तरह के मुद्दे उठाना जारी रखेंगे. मुख्यमंत्री ने कहा कि वह किसी सुख के लिए कुर्सी पर नहीं बैठी हैं. ‘मैं चाहे कुर्सी पर दो दिन रहूं या दो साल, मैं किसी को भी राज्य के लोगों की भावनाओं से खिलवाड नहीं करने दूंगी.’
महबूबा ने पिछले हफ्ते विधानसभा में बयान दिया था कि सरकार ने कश्मीर में सैनिक कॉलोनी के लिए कोई जगह चिह्नित नहीं की है. उन्होंने कहा कि यदि इस तरह की कोई कॉलोनी स्थापित की जाती है तो यह केवल उन सेवानिवृत्त सैनिकों के लिए होगी जो जम्मू कश्मीर के संविधान के तहत राज्य के स्थाई निवासी हैं. उमर ने प्रस्तावित कॉलोनी का यह कहकर विरोध किया है कि ‘यह कश्मीर में राज्य से इतर लोगों को कश्मीर में बसाने की चाल हो सकती है और इस तरह यह अनुच्छेद 370 का उल्लंघन होगा.’
क्या है सैनिक कॉलोनी?
2015 में भाजपा के राज्य सभा सांसद तरुण विजय ने सेना के उन जवानों के परिवारों को श्रीनगर और घाटी की अन्य जगहों पर समायोजित करने का प्रस्ताव रखा था जिन्होंने अपने कर्तव्य के पालन में वहां अपनी जान गंवा दी. इसके बाद रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा कि जमीन की व्यवस्था करना राज्य सरकार का काम है. उन्होंने कहा कि घाटी में सैनिक कॉलोनियों की स्थापना के लिए जमीन आवंटित करने के लिए राज्य सरकार से कहा गया है. फिर अप्रैल 2015 में जम्मू कश्मीर के राज्यपाल और राज्य सैनिक बोर्ड (आरएसबी) के मुखिया एनएन वोहरा ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी और श्रीनगर के पुराने हवाई अड्डे के पास सैनिक कॉलोनी की स्थापना के लिए 21.6 एकड़ जमीन की पहचान भी कर ली गई.
इसी साल अगस्त में आरएसबी ने राज्य के गृह विभाग को एक और चिठ्ठी के ज़रिये और ज्यादा जमीन की मांग की. यह मांग इसलिए की गयी थी कि सेना के 25 वरिष्ठ अफसरों, 125 कनिष्ठ अफसरों और 900 फौजियों के परिवारों ने इस कॉलोनी में रहने के लिए आवेदन दिए हैं. इस बात से हालात 2008 जैसे होते जा रहे हैं. साल 2008 में कश्मीर घाटी करीब पांच महीने प्रदर्शनों के चलते बंद रही. इस दौरान 150 से अधिक लोगों की पुलिस फायरिंग में मौत हुई, सैकड़ों ज़ख़्मी हुए और हज़ारों के खिलाफ मुकदमे दर्ज हुए.
प्रदर्शन राज्य सरकार के उस फैसले के खिलाफ हुए थे जिसमें कुछ जमीन श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड के नाम करने का फैसला हुआ था. हुर्रियत नेताओं का कहना है इस प्रकार की कोई भी कॉलोनी नहीं बननी चाहिए. केंद्र ऐसे कॉलोनियों का निर्माण कर बाहरी लोगों को कश्मीर में बसाना चाहता है. ऐसा करना धारा 370 का उल्लंघन होगा. इसी प्रकार कॉलोनियां बनाकर कश्मीरी पंडितो के भी पुनर्वास की मांग बाहरी राज्यों की ओर से आ रही है.