आप विधायक मामला : अब क्या करेंगे केजरीवाल?

नयी दिल्ली : दिल्ली के 21 आम आदमी पार्टी विधायकों को सुरक्षित करने से संबंधित विधेयक को राष्ट्रपति की ओर से सहमति प्रदान करने से इनकार करने के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आज आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजनीतिक प्रतिशोध की कार्रवाई कर रहे हैं तथा भाजपा आप से डरी हुई है और […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 14, 2016 2:15 PM

नयी दिल्ली : दिल्ली के 21 आम आदमी पार्टी विधायकों को सुरक्षित करने से संबंधित विधेयक को राष्ट्रपति की ओर से सहमति प्रदान करने से इनकार करने के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आज आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजनीतिक प्रतिशोध की कार्रवाई कर रहे हैं तथा भाजपा आप से डरी हुई है और पिछले साल के विधानसभा चुनाव में मिली हार को पचा नहीं पा रही.

गौरतलब है कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उस विधेयक को स्वीकृति प्रदान करने से इनकार कर दिया है, जिसमें आम आदमी पार्टी के उन 21 विधायकों को बचाने का प्रावधान किया गया था, जिनको संसदीय सचिव नियुक्त किया गया और जिन पर अयोग्य ठहराये जाने का खतरा मंडरा रहा है. ऐसे में यह सवाल लाजिमी है कि अब अरविंद केजरीवाल क्या करेंगे.

अब क्या करेंगे अरविंद केजरीवाल
लाभ के दो पद पर रहने को लेकर अगर आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों की सदस्यता रद्द होती है, तो विधायक न्यायपालिका की शरण में जायेंगे. इधर संसदीय सचिव नियुक्त करने संबंधी केजरीवाल के आदेश की वैधानिकता को हाईकोर्ट में पहले ही चुनौती दी जा चुकी है. ऐसे में केजरीवाल के सामने परेशानी तो है. अगर विधायकों की सदस्यता रद्द हुई तो उन विधानसभा क्षेत्रों मेंचुनाव कराना पड़ सकता है. ऐसे मेंजीतकर कितने विधायक आयेंगे यह भी केजरीवाल के लिए चुनौती होगी.
सरकार पर नहीं है संकट
राष्ट्रपति के इनकार के बाद विधायकों की सदस्यता पर सीधे तो कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा लेकिन अगर चुनाव आयोग विधायकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते हुए उनकी सदस्यता रद्द कर देता है, तो भी अरविंद केजरीवाल की सरकार को कोई संकट नहीं है, क्योंकि उनके पास तब भी बहुमत का आंकड़ा होगा. आप के पास अभी 67 विधायक हैं 21 की सदस्यता ना भी रहे, तो भी 46 विधायक उसके पास होंगे और बहुमत के लिए मात्र 36 विधायकों का समर्थन चाहिए.
लाभ के दो पद को लेकर सोनिया गांधी को देना पड़ा था इस्तीफा
वर्ष 2006 में सोनिया गांधी को लाभ के दो पद पर रहने के कारण सांसद और नेशनल एडवाइजेरी कौंसिल के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा था. उस वक्त सोनिया गांधी नेशनल एडवाइजरी कौसिंल की अध्यक्ष भी थीं और सांसद भी. उन्होंने दोनों पद से इस्तीफा दिया था और बाद में राय बरेली से पुन: चुनकर लोकसभा पहुंचीं थीं.

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