नयी दिल्ली : केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा में स्वास्थ्य विशेषज्ञों को बनाये रखने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज डॉक्टरों केरिटायरमेंट की आयु को वर्तमान 62 वर्ष से बढाकर 65 वर्ष करने को मंजूरी दे दी. कैबिनेट की बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने संवाददाताओं से कहा कि इस पहल से मरीजों की देख रेख, अकादमिक गतिविधियों और राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम को प्रभावी ढंग से लागू करने में मदद मिलेगी.
पीएम मोदी ने किया था वादा
स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा के तहत अभी करीब 4,000 डॉक्टर हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इससे पहले कहा था कि केंद्र सरकार ने केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा के सभी डॉक्टरों की रिटायरमेंट की आयु को 65 वर्ष करने का निर्णय किया है जो 31 मई 2016 से प्रभावी होगा. देश में डाक्टरों की कमी का उल्लेख करते हुए मोदी ने सहारनपुर में 26 मई को एक रैली में इनके सेवानिवृति की आयु को बढाने की घोषणा की थी. मोदी ने कहा था कि देश में अधिक संख्या में डॉक्टरों की जरूरत है.
पहले 62 वर्ष थी रिटायरमेंट की आयु
केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा के सभी चार उप-कैडरों के संबंध में सेवानिवृत्ति की आयु 2006 से पूर्व 60 साल थी. जीडीएमओ उप-कैडर को छोड़कर तीन विशेषज्ञ उप-कैडरों (शिक्षण, गैर-शिक्षण एवं जन स्वास्थ्य) की सेवानिवृत्ति की आयु कैबिनेट की 02.11.2016 को आयोजित बैठक में दी गई मंजूरी से 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी गई थी. शिक्षण विशेषज्ञों की भारी कमी को देखते हुए शिक्षण उप-कैडर की सेवानिवृत्ति की आयु को कैबिनेट की 05.06.2008 को आयोजित बैठक में दी गई मंजूरी से 62 वर्ष से बढ़ाकर 65 वर्ष कर दिया गया था. यह मंजूरी केवल शिक्षण गतिविधियों में लगे शिक्षण विशेषज्ञों तक ही सीमित थी. प्रशासनिक पदों पर बैठे अधिकारियों पर यह लागू नहीं थी.
कैबिनेट ने लिया अहम फैसला
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट ने (1) केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा के गैर-शिक्षण और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सेवानिवृत्ति की आयु 62 वर्ष से 65 वर्ष और (2) केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा (सीएचएस) के उप-कैडर के जनरल चिकित्सा अधिकारियों (जीडीएमओ) के डॉक्टरों की सेवानिवृत्त आयु को भी बढ़ाकर 65 वर्ष करने के लिए अपनी मंजूरी दे दी है. लक्ष्य समूह गैर-शिक्षण, सार्वजनिक स्वास्थ्य और सीएचएस के जीडीएमओ के अधिकारी होंगे. इस निर्णय से रोगियों की बेहतर देखभाल करने, मेडिकल कॉलेजों में उचित शैक्षणिक गतिविधियों के साथ-साथ स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की आपूर्ति के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों के प्रभावी क्रियान्वयन में भी मदद मिलेगी. इस निर्णय से कोई वित्तीय बोझ भी नहीं पड़ेगा क्योंकि मरीजों की देखभाल की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए रिक्त पदों को बहुत जल्दी भरना पड़ेगा.