नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2011 में एक महिला के बलात्कार के मामले में निचली अदालत द्वारा 10 साल की सजा पाने वाले एक व्यक्ति को रिहा कर दिया और कहा कि महिला व्यक्ति के साथ ‘लिव इन’ संबंध में थी और कथित घटना के बारे में उसके बयान में कई बातें ‘‘गंभीर रुप से कमजोर” हैं. उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के वर्ष 2013 के फैसले को पलट दिया। निचली अदालत ने व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता की धाराओं 376 (बलात्कार) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत दोषी ठहराया था और उसे 10 साल की सजा सुनाई थी. अदालत ने व्यक्ति पर 15000 रपए जुर्माना भी लगाया था.
न्यायमूर्ति प्रतिभा रानी ने कहा कि (फैसले में जिनका जिक्र किया गया है, उन) उपरोक्त दस्तावेजों से यह स्पष्ट है कि महिला दिल्ली में अपने पति से दूर अकेले रह रही थी और उसका अपीलकर्ता के साथ लिव इन संबंध था. इन दस्तावेजों को निचली अदालत ने सही परिदृश्य में नहीं देखा. उच्च न्यायालय ने कहा कि मामले के संबंध में कुछ बिंदुओं पर महिला ने ‘‘जानबूझकर बदलाव” किए और उसकी गवाही से उसकी बात पर विश्वास नहीं होता.
पुलिस के अनुसार महिला के बयान के आधार पर प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। महिला ने आरोप लगाया था कि यह घटना 13 एवं 14 जनवरी, 2011 की दरमियानी रात को उस समय हुई जब वह घर पर अकेली थी और अपनी बेटी की मौत के कारण दु:खी थी. उसकी बेटी की मौत कुछ ही दिन पहले हुई थी. वकील ने दलील दी कि घटना से पहले महिला ने व्यक्ति से 11000 रपए उधार लिए थे और जब उसने धन वापस मांगा तो उसने उसे गलत तरीके से फंसा दिया.