ताशकंद :भारतको शंघाई सहयोग संगठनकीसदस्यता मिलने का रास्ताआज जहां साफ हो गया, वहीं दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल में चल रही न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप की बैठक में इसकी सदस्यता मिलने की राह में चीन रोड़ा बन गया. कल जहां चीन के रुख पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया था, वहीं प्रधानमंत्री के साथ ताशकंद के दौरे पर गये विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने चीन का नाम लिये बिना कहा कि एक देश एनएसजी में भारत के प्रवेश की राह में रोड़ा अटका रहा है. भारतीय विदेश मंत्रालय के लहजे में एनएसजी पर चीन के रुख को लेकर तल्खी दिखी. भारत को शंघाई सहयोग संगठन के सदस्यता के लिए अगले एक साल में 30 दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने होंगे.
शंघाई सहयोग संगठन की सदस्यता की प्रक्रिया शुरू
शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में पूर्णरूपेण सदस्य के तौर पर भारत के शामिल होने की अंतिम प्रक्रियाशुरू होने के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज कहा कि यह साझेदारी क्षेत्र को कट्टरता, हिंसा और आतंकवाद के खतरों से बचाएगी और उसके आर्थिक विकास को संचालित करेगी.
एससीओ सम्मेलन में अपने भाषण में मोदी ने कहा कि ऊर्जा और प्राकृतिक संसाधनों के क्षेत्र में समूह की ताकत से भारत को महत्वपूर्ण तरीके से लाभ होगा और बदले में भारत की मजबूत अर्थव्यवस्था औरबड़ा बाजार एससीओ क्षेत्र में आर्थिक विकास को संचालित कर सकता है.
उन्होंने कहा, ‘‘एससीओ में भारत की सदस्यता क्षेत्र की समृद्धि में योगदान देगी. यह इसकी सुरक्षा को भी मजबूत करेगी. हमारी साझेदारी हमारे समाजों को नफरत, हिंसा और आतंकवाद की कट्टरपंथी विचारधाराओं के खतरों से बचाएगी.’ प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘भारत इस लक्ष्य की दिशा में काम करने के लिए एससीओ के सदस्य देशों के साथ एकजुट होगा और हम सभी स्तरों पर आतंकवाद से लड़ने में कतई बर्दाश्त नहीं करने वाला रवैया और व्यापक सोच अपनाएंगे.’ भारत ने सम्मेलन में एससीओ के ‘मेमोरेंडम ऑफ ऑब्लिगेशन्स’ पर दस्तखत किये और पूर्ण रुपेण सदस्य के तौर पर समूह में शामिल होने की प्रक्रिया शुरू की.
भारत को सदस्यता की प्रक्रिया पूरी करने के लिए साल के अंत तक करीब 30 और दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने होंगे. पाकिस्तान को भी एससीओ में पूर्ण सदस्य के तौर पर शामिल किया जा रहा है.
मोदी ने जताया आभार
भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘हम एससीओ की सदस्यता के लिए भारत को जबरदस्त समर्थन देने पर एससीओ के सदस्य राष्ट्रों और उनके नेताओं के प्रति वास्तव में आभारी हैं. मैं एससीओ के नये सदस्य के तौर पर पाकिस्तान का भी स्वागत करता हूं.’ गहरी आर्थिक साझेदारी की वकालत करते हुए मोदी ने कहा कि व्यापार, निवेश, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कृषि, स्वास्थ्य सुविधाओं, लघु और मध्यम उद्योगों में भारत की क्षमताएं एससीओ के देशों- रुस, चीन, किर्गिजिस्तान, कजाखस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान में व्यापक आर्थिक लाभ पहुंचा सकती हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘हम 40 प्रतिशत मानव जाति और एक अरब से अधिक युवाओं का प्रतिनिधित्व करेंगे. इस समूह में भारत एससीओ के दर्शन के अनुरुप सिद्धांतों कोजोड़ता है. भारत ने हमेशा यूरेशियाई धरती के लोगों के साथ अच्छे संबंध रखे हैं.’ प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत क्षेत्र में व्यापार, उर्जा सहयोग को बढावा देने और परिवहन संपर्क विकसित करने के साथ ही जनता के बीचसंपर्क को प्रोत्साहित करने में एससीओ में एक उपयोगी साझेदार होगा.
उन्होंने कहा, ‘‘अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन कॉरिडोर, चाबहार समझौते और अशगबात समझौते में पक्ष बनने का हमारा फैसला इस आकांक्षा और इरादे को झलकाता है.’ अफगानिस्तान के संबंध में प्रधानमंत्री ने कहा कि स्थिर, स्वतंत्र और शांतिपूर्ण अफगानिस्तान न केवल प्रत्येक अफगान नागरिक की गंभीर आकांक्षा है बल्कि एससीओ क्षेत्र में वृहद सुरक्षा और स्थिरता के लिए भी यहजरूरी है.
उन्होंने विश्वास जताया कि सभी एससीओ देशों के साथ भारत की साझेदारी एक ऐसे क्षेत्र के निर्माण में मददगार होगी जो दुनिया के लिए आर्थिक विकास का इंजन है तथा आंतरिक रूप से अधिक स्थिर और सुरक्षित है.
उन्होंने कहा, ‘‘क्षेत्र के साथ भारत के सदियों पुराने संबंधों के तार्किक विस्तार के तौर पर मानवता का छठा हिस्सा एससीओ के परिवार में शामिल होगा.’ मोदी ने कहा कि भारत के एससीओ के देशों के साथ ऐतिहासिक संपर्क हैं. यह संपर्क केवल भौगोलिक नहीं है और हमारे समाज संस्कृति और व्यापार केसंपर्क से समृद्ध हुए हैं. वे रुस, चीन और मध्य एशिया के देशों के साथ हमारे आधुनिक संबंधों का आधार हैं.’ उन्होंने कहा कि एससीओ में पूर्ण सदस्य के तौर पर भारत के शामिल होने के साथ समूह की सीमाएं प्रशांत क्षेत्र से यूरोप तक और आर्कटिक से हिंद महासागर तक विस्तारित होंगी.
उन्होंने कहा, ‘‘हम क्षेत्र में मानव संसाधन और संस्थागत क्षमताएं विकसित करने के लिए साझेदारी कर सकते हैं. हमारी प्राथमिकताएं मिलती हैं, इसलिए हमारे विकास के अनुभव आपकी राष्ट्रीय जरूरतों के संगत होंगे.’ मोदी ने कहा, ‘‘21वीं सदी की परस्पर-निर्भर दुनिया आर्थिक अवसरों से भरी है. इसके सामने भू-राजनीतिक जटिलताएं और सुरक्षा संबंधी चुनौतियां भी हैं. और क्षेत्र के देशों के बीच संपर्क हमारी आर्थिक समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है.’ उन्होंने कहा, ‘‘और केवल भौतिक संपर्क नहीं. हमें जरूरत है हमारे बीच वस्तुओं, सेवाओं, पूंजी और लोगों के निर्बाध प्रवाह की. लेकिन यही काफी नहीं है. हमारे क्षेत्र को शेष दुनिया के साथ मजबूत रेल, सड़क और हवाई संपर्क भी विकसित करने की जरूरत है.’ मोदी ने कहा कि भारत अगले साल अस्ताना में एससीओ के सम्मेलन में समान साझेदार के तौर पर शामिल होने के लिए आशान्वित रहेगा.