आम भारतीयों के लिए डॉ सुब्रमण्यन स्वामी एक ऐसे व्यक्ति हैं जो ‘विवाद’ पैदा करते हैं और कई बार सरकार के ‘भद्र पुरुषों’ पर भी ‘बेवजह निशाना’ साधते हैं. कांग्रेस के लिए वे ऐसे राजनीतिक शख्स हैं, जो उसे तो परेशान करते ही हैं, लेकिन अपनी खुद की पार्टी भाजपा को भी भारी पड़ सकते हैं. और, अपने लाखों प्रशंसकों के लिए डॉ स्वामी ऐसे शख्स हैं, जिनके तमाम बयानों, कार्रवाइयों व पहल के पीछे सिर्फ और सिर्फ एक ही उद्देश्य होता है : राष्ट्रहित. रिजर्व बैंक में दूसरी पारी लेने से डॉ रघुराम राजन के इनकार करने के बाद यह भी माना जा रहा है कि यह परफॉर्मर व शालीन व्यक्ति डॉ स्वामी का ‘शिकार’ हो गया. हालांकि दूसरी ओर यह बात भी सच है कि डॉ स्वामी के कटु विरोधी भी उनकी राष्ट्रभक्ति पर संदेह नहीं कर सकते न करते हैं.
डॉ स्वामी अपने ‘निजी भविष्य’ की परवाह किये बिनाअपनी ही पार्टी की सरकार कोमीडिया के माध्यम से रॉफेल जेट की कीमत और गुणवत्ता पर सवाल उठाते हुएआगाह करते हैं कि अगर आपने रॉफेल जेटखरीदाऔर देश का पैसा बर्बाद किया तो मैं कोर्ट मेंचला जाऊंगा.यहसंयोग ही है कि डॉ स्वामीकीऐसी चेतावनीकेबादराफेल की खरीदकुछ समय के लिए टल जाती है और बाद में उसकी कीमतें कम करवा कर उसका सौदा किया जाता है. जिस सोनिया-जयललिता की उन्होंने वाजपेयी काल में बहुचर्चित टी पार्टी आयोजित करवाई थी, वे दोनों आज उनके निशाने पर हैं. एक को वे जेल भेजवा चुके हैं और दूसरे को कोर्ट-कचहरी के चक्कर में डाले हुए हैं और कहते हैं उन्हें (सोनिया गांधी को) जेल भेजवाऊंगा ही.
डॉ स्वामी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रशंसक रहे हैं और कह चुके हैं कि यह व्यक्ति है जो कांग्रेस के कारनामों पर रोक लगा सकता है,लेकिन जबपीएममोदी नेएकन्यूजचैनलको दिये इंटरव्यू में स्वामी कोबिनानाम लिये नसीहत दी तो स्वामीभीदार्शनिक अंदाज मेंगीताकी पंक्तियां याद करने लगे.
डॉ स्वामी के इस जटिल व्यक्तित्व को समझने के लिए इस संवाददाता ने उनके करीबी और लंबे समय से राजनीतिक सहयोगी रहे जगदीश शेट्टी से बात की.
मुंबई को केंद्र बना कर काम करने वाले जगदीश शेट्टी विराट हिंदुस्तान संगम के राष्ट्रीय महासचिव हैं. 58वर्षीय शेट्टी सोशल मीडिया पर भी डॉ स्वामी के लिए मोर्चा संभाले रहते हैं और उनसे संबंधित बिंदुओं पर पूरी मुखरता से अपनी बात कहते हैं. जब शेट्टी से इस संवाददाता ने यह सीधा सवाल पूछा कि क्या चीन दौरे पर गये वित्तमंत्री अरुण जेटली को निशाना बना कर उन्होंने यह टिप्पणी की कि विदेश दौरे पर गये हमारे मंत्री सूट-बूटवटाई में वेटर की तरह नजर आते हैं, तो इस पर उनका सीधा जवाब है कि डॉ स्वामी इस मुद्दे को आज से नहीं उठा रहे हैं, बल्कि दशकों से वे इस मुद्दे पर मुखर रहे हैं. हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रह चुके डॉ स्वामी भारतीयता के मुखर प्रवक्ता हैंऔर अपने जीवन मेंइसकाअनुकरण करते हैं और चाहते हैंकिदेश के प्रमुख पदों पर बैठे लोग भीऐसा करें और वे अपने देश की संस्कृति केअनुरूप कपड़ों में ही विदेश जायें. शेट्टी सवाल उठाते हैं कि क्या बंद गले के कोट में हमारे नेता अच्छे नहीं दिखते?
शेट्टी कहते हैं कि चाणक्य सूट-बूट नहीं पहनते थे, लेकिन वे विद्वान थे. गांधी जी ने सूट-बूट का त्याग किया था, ताकि वे जनता से खुद को रिलेट कर सकें. डॉ शेट्टी कहते हैं कि अपने देसी वेश-भूषा में कोई नेता जनता के अधिक निकट जा पाता है.
डॉ स्वामी के सूट-बूट-टाइ वाले बयान पर जब चर्चा शुरू होती है तो यहउनकेहॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी के दिनों व महान स्वतंत्रता सेनानी डॉ जयप्रकाश नारायण तक जाती है. डॉ स्वामी अमेरिका स्थित दुनियाभर में मशहूर विश्वविद्यालय हॉर्वर्ड में जबतक रहे कभी कोट व टाई नहीं पहनी. वे भारतीय संस्कृति का प्रतीक बंद गले का कोट ही वहां पहनते थे. अर्थशास्त्र के एक युवा व प्रखर प्रोफेसर के रूप में डॉ स्वामी की मेधा और प्रतिभा की धाक कुछ इस कदर थी कि उनके पहनावे पर कभी किसी अमेरिकी ने टिप्पणी नहीं की.
जब हाॅर्वर्ड में जेपी उनसे मिलने पहुंचे
डॉ सुब्रमण्यन स्वामी ने अपने व जयप्रकाश नारायण से संबंधों पर विस्तृत लेख लिखा है कि कैसे उनकी मुलाकात हुई और कैसे रिश्ते गहरे होते गये और अंतत: वे शानदार आकादमिक कैरियर छोड़ राजनीति व सामाजिक कार्य में शामिल हो गये. डॉ स्वामी 1968 में अमेरिका के हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में काम कर रहे थे. उसी समय जयप्रकाश नारायण एक अमेरिकी संस्था के स्पांसरशिप से यूएस दौरे पर आये, तभी उनकी मुलाकात उनसे हुई.
डॉ स्वामी ने उस महिला को उन्हें रोकने व फोन देने को कहा. जेपी के फोन पर आने पर डॉ स्वामी ने सीधा सवाल पूछा कि क्या आप स्वतंत्रता सेनानी जेपी हैं? उस समय 28 वर्षीय डॉ स्वामी को जेपी ने फोन पर दूसरी ओर से कहा कि मैं बहुत खुश हूं कि देश की युवा पीढ़ी मुझे पहचानती है.
फिर स्वामी ने महिला को कहा कि जेपी को यूनिवर्सिटी फैकेल्टी क्लब में ठहराया जाये. यह वह दौर था जब डॉ स्वामी के अंदर तीव्र राष्ट्रवादी विचार थे और वे मानते थे कि आर्य और द्रविड़ थ्योरी अंगरेजों का भारत को बांटने के लिए एक कुचक्र है. डॉ स्वामी ने स्वयं लिखा है कि हॉर्वर्ड में जब वे पहली बार जेपी से आमने-सामने हुए तो उन्होंने देखा कि प्रभावती जी साड़ी में थीं और जेपी आधुनिक पश्चिमी ड्रेस में, थ्री पीस व टाई. डॉ स्वामी कोइसमें विसंगतिलगी. उस समय जेपी ने स्वामी से मुलाकात को एक नया दोस्त पाना बताया था.
जेपीवहांतीन दिनरहे.जेपी कोडॉ स्वामी ने अपनी कार में घुमायाऔर विश्वविद्यालयमें उनके लेक्चरकाप्रबंध किया. विषय भी दिलचस्प था : भारतके मौजूदा राजनीतिक हालात. उस व्याख्यान में जेपी ने वहां बैठे 300 स्कॉलर से एक सवाल पूछा कि गांधी जी की अंतिम इच्छा क्या थी, किसी ने जवाब नहीं दिया, तब स्वामी ने कहा कि कांग्रेस का अवसान ही गांधी जी की अंतिम इच्छा थी. इसके बाद जेपी ने स्वामी कोडिनर पर बुलाया और स्वदेश लौट चलने को कहा.
दरअसल, 1940केदशक में अपने बचपन के दिनों से ही जेपी का नाम स्वामी ने सुन रखा था और उनके व्यक्तित्व का उन पर कुछ प्रभाव था. स्वामी के पिता स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कांग्रेस में सक्रिय थे और सत्यमूर्ति व कामराज से जुड़े थे. बहरहाल, जेपी के प्रस्ताव पर डॉ स्वामी के स्वदेश वापसी के बाद आजाद भारत की राजनीति का दूसरा अध्याय शुरू हुआ, जिसके वे अहम कारक बने.
नोट : यह आलेख डॉ सुब्रमण्यन स्वामी के आलेख व उनके सहयोगी जगदीश शेट्टी से बातचीत के आधार पर तैयारकिया गया है. इसमें कई अंश डॉ स्वामी के आलेख से लिये गये हैं.
(प्रस्तुति : राहुल सिंह)
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इन सवालों का जवाब जानने के लिए कल पढ़िए अगली कड़ी
कैसे जेपी नेडॉ स्वामी की सलाह पर कांग्रेस विरोधी पार्टियों को एक मंच पर लाया?
कैसे डॉ स्वामी ने जेपी और मोरारजी को मतभेदों के बाद उन्हें एक साथ लाया?
क्या वाजपेयी जी की आपत्तियों की वजह से डॉ स्वामी भाजपा की स्थापना के समयपार्टी में नहीं शामिल हो पाये थे?
क्यों वर्षों तक वन मैन आर्मी की तर्ज पर जनता पार्टी को चलाते रहे डॉ स्वामी?
जनता पार्टी कैसे एनडीए में शामिल हुआ और कैसे डॉ स्वामी ने उसका भाजपा में विलय किया?
क्या डॉ स्वामी हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी छोड़ कर नहीं आते तो उन्हें नोबेल पुरस्कार मिलता?