बीफ के सेवन को अपराध बताने को चुनौती देने वाली याचिका पर आप सरकार को नोटिस

नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने आज उस जनहित याचिका पर आम आदमी पार्टी सरकार से जवाब मांगा है जिसमें राष्ट्रीय राजधानी में बीफ के सेवन एवं उसे रखने को अपराध बताए जाने को चुनौती दी गई है. मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी रोहिणी और न्यायमूर्ति संगीता धींगरा सहगल ने आप सरकार को नोटिस जारी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 13, 2016 2:45 PM

नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने आज उस जनहित याचिका पर आम आदमी पार्टी सरकार से जवाब मांगा है जिसमें राष्ट्रीय राजधानी में बीफ के सेवन एवं उसे रखने को अपराध बताए जाने को चुनौती दी गई है. मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी रोहिणी और न्यायमूर्ति संगीता धींगरा सहगल ने आप सरकार को नोटिस जारी कर उसे 14 सितंबर तक जवाब देने को कहा है. जनहित याचिका में ‘दिल्ली एग्रीकल्चरल कैटल प्रिजर्वेशन एक्ट’ के उन प्रावधानों को रद्द करने की मांग की गई है जिनके अनुसार, राष्ट्रीय राजधानी में बीफ का सेवन करना और उसे अपने पास रखना अपराध है.

अपने वकील के माध्यम से याचिका दाखिल करने वाले कानून के छात्र गौरव जैन ने अदालत को बताया कि ऐसा ही एक मामला मध्यप्रदेश से भी आया है और उच्चतम न्यायालय में लंबित है.वकील ने यह भी कहा कि महाराष्ट्र सरकार के एक विधेयक के ऐसे ही प्रावधान को बंबई उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया. यह याचिका अनुसूचित जातियों और जनजातियों के विकास के लिए काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन ने भी दाखिल की है. याचिका में दावा किया गया है कि ‘कैटल प्रिजर्वेशन एक्ट’ (सीपीए) ‘विधायी असफलता का मामला’ है.

उन्होंने तर्क दिया कि ‘कैटल प्रिजर्वेशन एक्ट’ के तहत बीफ का सेवन और उसे रखना याचिकाकर्ता और उसके जैसे अन्य लोगों के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है क्योंकि यह उनकी स्वतंत्रता के अधिकार को बाधित करता है और शत्रुतापूर्ण भेदभाव पैदा करता है जिसका कानून के उद्देश्यों से कोई सरोकार नहीं है. याचिका में कहा गया है ‘अपनी पसंद का भोजन करने का अधिकार जीवन एवं स्वतंत्रता के अधिकार का अभिन्न हिस्सा है.’

इसके अनुसार, संविधान सरकार को खास धार्मिक चलन लागू करने के लिए कानून बनाने की अनुमति नहीं देता. याचिकाकर्ताओ का दावा है कि कानून याचिकाकर्ताओं के अपनी पसंद का आहार चुनने के अधिकार का घोर उल्लंघन है. इस याचिका में यह भी कहा गया है कि अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के आहार में अक्सर मांस होता है और कानून लागू करने से यह समुदाय सीधे प्रभावित होंगे.

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