नयी दिल्ली : गुजरात और देश के कुछ दूसरे हिस्सों में दलितों के खिलाफ अपराध की हालिया घटनाओं पर चिंता जाहिर करते हुए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने आज कहा कि देश की सभी राज्य सरकारों को दलित उत्पीडन के मामले में समयबद्ध जांच और सुनवाई सुनिश्चित करनी चाहिए. आयोग के अध्यक्ष पीएल पूनिया ने कहा, ‘पिछले कुछ महीनों में दलितों के खिलाफ आपराधिक घटनाएं बढी हैं जो चिंता का विषय हैं. यह बहुत शर्मनाक स्थिति है कि आज के समय में भी दलितों के साथ इस तरह का व्यवहार हो रहा है.’
उन्होंने कहा, ‘हमें एक प्रतिरोध (डेटरेंट) स्थापित करने की जरुरत है. एससी-एसटी कानून के तहत यह प्रावधान है कि दलित विरोधी हिंसा के मामलों में समयद्धबद्ध जांच, समयबद्ध सुनवाई और अपील पर समयबद्ध सुनवाई हो. किसी भी मामले की एक महीने के भीतर जांच पूरी हो और दो महीने में सुनवाई पूरी हो और छह महीने के भीतर सजा पर अपील को निपटाया जाए.’ पूनिया ने कहा, ‘अभी हाल ही में आयोग ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर कहा है कि वे अपने यहां दलित विरोधी अपराधों के मामलों में समयबद्ध जांच और सुनवाई सुनिश्चित करें.’
हाल ही में गुजरात के उना में गाय की खाल उतारने को लेकर दलितों की बर्बर ढंग से पिटाई का मामला सामने आया था जिसको लेकर दलित समाज के लोगों ने सडकों पर उतरकर प्रदर्शन किया. इसके अलावा हरियाणा में दलित युवती के साथ सामूहिक बलात्कार और बिहार के मुजफ्फरपुर में भी दलित विरोधी अपराध का मामला सामने आया. गुजरात की घटना पर पूनिया ने कहा, ‘गुजरात की घटना दिल दहला देने वाली है. परंतु इसके बाद दलितों ने जो हौसला दिखाया और सडकों पर उतरे वो शायद पहली बार हुआ है. गुजरात के दलितों ने साबित कर दिया है कि वे अत्याचार सहन करने वाले नहीं हैं.’
उन्होंने कहा, ‘गुजरात में दलितों की स्थिति बहुत खराब है. वहां दलित उत्पीडन के मामलों में प्राथमिकी दर्ज नहीं होती. लोगों को यह जानकर हैरानी होगी कि वहां दलित विरोधी अपराध के सिर्फ 2.9 फीसदी मामलों में सजा हो पाती है. यह बहुत दुखद स्थिति है.’ पूनिया ने कहा, ‘दलित विरोधी अपराधों पर पूरी तरह से लगाम तभी लग सकती है जब दलित समाज सामाजिक-आर्थिक रूप से प्रगति करे. आजादी के इतने वर्षों बाद भी दलितो के आर्थिक विकास पर पूरा ध्यान नहीं दिया गया है. सभी राजनीतिक दलों को राजनीति से उपर उठकर इस बारे में सोचना पडेगा.’