पंडित नेहरू को बचाने वाले बहादुर बच्चे को आज भूला दिया गया
नयी दिल्ली : प्रत्येक साल गणतंत्र दिवस के मौके पर बहादुर बच्चों को बालवीर पुरस्कार से नवाजा जाता है. सरकार पुरस्कार तो देती है लेकिन कुछ दिनों के बाद ही उन बहादुरों की सुध भी नहीं ली जाती है. जिस शख्स के बहादुरी के बाद से इस पुरस्कार को शुरू किया गया, सरकार आज उसकी […]
नयी दिल्ली : प्रत्येक साल गणतंत्र दिवस के मौके पर बहादुर बच्चों को बालवीर पुरस्कार से नवाजा जाता है. सरकार पुरस्कार तो देती है लेकिन कुछ दिनों के बाद ही उन बहादुरों की सुध भी नहीं ली जाती है. जिस शख्स के बहादुरी के बाद से इस पुरस्कार को शुरू किया गया, सरकार आज उसकी सुध भी नहीं ले रही है. बात उस नन्हें बच्चे हरीश मेहरा की कि जा रही है. मेहरा का गणतंत्र दिवस से खासा लगाव है, वह आज के दिन गुजरे दौर की यादों में खो जाते हैं.
हरीश मेहरा ने 14 साल की उम्र में अपनी जान की परवाह किये बिना पंडित जवाहरलाल नेहरू और तमाम लोगों को बड़े हादसे से बचाया था. उनकी बहादुरी के लिए सरकार ने पहले बालवीर पुरस्कार से सम्मानित किया था और उसी दिन से हर वर्ष बहादुर बच्चों को गणतंत्र दिवस के मौके पर पुरस्कार दिया जाने लगा.
बात उन दिनों की है जब दिल्ली के रामलीला मैदान में रामलीला का कार्यक्रम चल रहा था. कार्यक्रम में पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी और बाबू जगजीवन राम आदी मौजूद थे. नन्हा हरीश मेहरा उस दौरान वॉलंटियर का काम कर रहा था. अचानक शामियाने में आग की लपटें बढ़ने लगी. मेहरा बताते हैं मैंने फौरन एक ऊंच्चे खंभे के सहारे आग जहां लगी थी वहां पहुंचा और चाकू के सहारे बिजली के तार को काट डाला, उन्होंने बताया इस काम में उन्हें मात्र पांच मिनट का समय लगा.
वहां उपस्थित तमाम लोगों ने बालक हरीश के इस साहस को पुरजोर ढंग से सराहा. इस दौरान हरीश के दोनों हाथ बुरी तरह से झुलस गये. उन्हें इरविन अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उनका हालचाल लेने के लिए खुद जगजीवन राम आये थे. हरीश ने बताया फरवरी 1958 को खुद पंडित नेहरू ने उन्हें बालवीर पुरस्कार से सम्मानित किया.
आज मेहरा 70 के हो गये हैं, परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. कुछ साल पहले वह रिटायर हो गए हैं. उन्होंने बताया कि अपने सरकारी नौकरी के दौरान सोनिया गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे बड़े नेताओं ने उनसे वादा किया था कि उनकी शानदार उपलब्धियों के चलते उन्हें अलग से प्रमोशन दिलाया जाएगा, लेकिन हुआ कुछ भी नहीं. हरीश मेहरा का मानना है कि सरकार को बालवीरों को भूलना नहीं चाहिए.