नयी दिल्ली : भारतीय जनता पार्टी संसदीय बोर्ड ने आज उस चर्चा पर विराम लगा दिया कि अमित शाह भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद से विदा होकर गुजरात के अगले मुख्यमंत्री के रूप में आनंदीबेन पटेल की जगह ले सकते हैं. वरिष्ठ भााजपा नेता वेंकेया नायडू ने मीडिया द्वारा इस संबंध में पूछे गये सवाल का बड़ी मजबूती से जवाब दिया : सवाल ही नहीं उठता, अमित शाह हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और उनके नेतृत्व में पार्टी का काफी विस्तार हुआ है और वे राष्ट्रीय स्तर पर ही कार्य करते रहेंगे. वेंकैया की इस पंक्ति ने भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व में अमित शाह के वजन व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उनके प्रति भरोसा दोनों का एक साथ अहसास करा दिया था.
अहमदाबाद से नयी दिल्ली : भाजपा के उत्थान की दास्तां
लंबे समय से नरेंद्र मोदी, अमित शाह अौर अरुण जेटली की मजबूत तिकड़ी से खफा लोगाें द्वारा इस बात को हवा देने की कोशिश की जा रही थी कि संघ इस तिकड़ी की बढ़ती ताकव व वर्चस्व से चिंतित है और इसे तोड़ने के लिए अमित शाह को गुजरात वापस भेजा जा सकता है. दरअसल, अमित शाह के राजनीतिक संरक्षक नरेंद्र मोदी का अहमदाबाद से नयी दिल्ली आना या नयी दिल्ली से अहमदाबाद जाना और फिर अहमदाबाद से नयी दिल्ली आना भारत के राजनीतिक इतिहास का एक ऐसा दिलचस्प वाकया है, जिसमें भाजपा के उत्थान की कहानी गुथी हुई है. मोदी को जबरन 90 के दशक में गुजरात से दिल्ली भेजा गया था, फिर उन्हें वाजपेयी ने 2000 के दशक में उन्हें राज्य में गिरते पार्टी के ग्राफ के कारण मुख्यमंत्री बना कर भेजा. इसके बाद मोदी ने सालों दिल्ली आने कीभरपूर कोशिश की, लेकिन भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व में जमे लोगों ने ऐसा होने नहीं दिया. पर, अपनी प्रचंड राजनीतिक आक्रमकता के बल पर मोदी दिल्ली आये और देश के राजनीति में छा गये. मोदी की तरह ही विरोधी की चाह थी अमित शाह वापस गुजरात चले जायें, जिस पर अब विराम लग गया है.
अमित शाह की दिल्ली में जरूरत क्यों?
अमित शाह, वो शख्स हैं जिन पर नरेंद्र मोदी सर्वाधिक विश्वास करते हैं. राजनीतिक हलकों में कहा जाता है कि जब नरेंद्र मोदी अहमदाबाद से दिल्ली भेज दिये गये थे, तो उस समय भी राज्य के हर घटनाक्रम से अमित शाह उन्हें अपडेट कराते रहते थे. अमित शाह राज्य में नरेंद्र मोदी के एक अल्प मुखर प्रतिनिधि के रूप में सक्रिय थे. अमित शाह जानते हैं कि मोदी क्या चाहते हैं और उनके एजेंडे को कैसे आगे बढ़ाना है. अमित शाह के पास फिलहाल उत्तरप्रदेश चुनाव का टास्क है, जो भाजपा के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सबसे बड़ी लड़ाई है. शाह लगातार उत्तरप्रदेश का दौरा भी कर रहे हैं. वे उत्तरप्रदेश के प्रभारी महासचिव भी रह चुके हैं और इस रूप में पार्टी व गंठबंधन की झोली में 73 सीटें जीत कर दे चुके हैं. उत्तरप्रदेश पर उनका फोकस तीन साल पुराना है. ऐसे में उन्हें केंद्र से हटाने पर उत्तरप्रदेश को समझने वाले किसी बड़े केंद्रीय नेता का अभाव भी हो जायेगा. राजनाथ सिंह उत्तरप्रदेश से आने के कारण और अरुण जेटली उत्तरप्रदेश का प्रभारी महासचिव रह चुके होने के कारण इस राज्य की बेहतर समझ रखते हैं, लेकिन उनकी अब संगठन नहीं सरकार में सक्रियता है.