अहमदाबाद : गुजरात के नये मुख्यमंत्री की घोषणा शुक्रवार यानी आज की जायेगी. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने उम्मीदवार के चुनाव के लिए गुरुवार को पार्टी के नेताओं के साथ बैठक की. गुजरात में भाजपा के लिए आनंदीबेन पटेल के बाद मुख्यमंत्री की तलाश की बहुत आसान नहीं प्रतीत हो रहा है. आनंदीबेन के बाद गुजरात भाजपा के लिए यह एक बड़ी चुनौती के तौर पर देखा जा रहा है. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह अहमदाबाद पहुंच गए हैं. प्राप्त जानकारी के अनुसार थलतेज इलाके में अमित शाह का बंगलो अब नया पावर सेंटर बन गया है. नए मुख्यमंत्री को लेकर सारी राजनीतिक गतिविधियां शाह के बंगलो में ही देखी जा रही हैं. शाह से गुजरात प्रभारी दिनेश शर्मा और जॉइंट जनरल सेक्रटरी (ऑर्गेनाइजेशन) वी सतीश के अलग-अलग मुलाकात करने की खबर है. जानकारी के मुताबिक नितिन पटेल का नाम सबसे ऊपर है और उन्हें यह पद दिलवाने के लिए पटेल गुट हावी है.
आपको बता दें कि भाजपा के संसदीय बोर्ड ने दिल्ली में बुधवार को हुई बैठक में मुख्यमंत्री पद से आनंदी बेन का इस्तीफा स्वीकार कर लिया था. गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले अचानक उठाये गये कदम के तहत गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने गत सोमवार को अपने पद से हटने की पेशकश की. वर्तमान में ऊना घटना समेत कई चुनौतियों से दो-चार आनंदीबेन ने कहा कि वह जल्द ही 75 वर्ष की उम्र पूरी करने वाली हैं, ऐसे में वे पद से हटना चाहती हैं, ताकि नये नेतृत्व को काम करने का मौका मिले. 1998 से राज्य सरकार में मंत्री रही आनंदीबेन ने 22 मई 2014 को मुख्यमंत्री का पद संभाला था.
रेस में नितिन व विजय आगे
नये मुख्यमंत्री की रेस में नितिन पटेल और विजय रूपाणी के नाम सबसे आगे चल रहे हैं. ये दोनों आनंदीबेन पटेल सरकार में मंत्री हैं. हालांकि भाजपा अध्यक्ष शाह ने स्पष्ट किया कि पार्टी संसदीय बोर्ड ही अंतिम फैसला करेगा.
कांग्रेस बोली, पहले ही उठाना था कदम
कांग्रेस के गुजरात मामलों के महासचिव गुरुदास कामत ने कहा कि आनंदीबेन को पहले ही यह कदम उठा लेना चाहिए था. अब तक भाजपा उन्हें बचाती रही है. यदि उन्हें किसी राज्य का राज्यपाल बनाया जाता है या केंद्रीय कैबिनेट में जगह दी जाती है, तो दलितों व पाटीदार समुदाय के लोगों के जख्मों पर नमक छिड़कने के बराबर होगा.
दो साल का कार्यकाल
गुजरात में नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री काल के बाद से आनंदीबेन के दो साल से ज्यादा की अवधि के दौरान इस बार पहली बार भाजपा को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. उसे नगर निकाय चुनाव में ग्रामीण इलाकों में पराजय का मुंह देखना पड़ा, पटेल समुदाय के ओबीसी आरक्षण की मांग को लेकर जबरदस्त आंदोलन का गवाह बनना पड़ा और राज्य के ऊना में दलितों की पिटाई की घटना के बाद दलित ज्वार का सामना करना पड़ा.