14.3 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

अगली पीढ़ी के भले के लिए सख्ती से लागू करें नशाबंदी

ऐसे कुछ मझोले स्तर के पुलिस अफसरों को भी मैं जानता हूं जिनकी संतानें नशे की लत के कारण लगभग निकम्मी हो गयीं. दरअसल थानेदारों को इतना अधिक घंटे काम करने पड़ते हैं कि उन्हें अपने बाल-बच्चों की देखभाल करने की फुरसत ही नहीं मिलती. हालांकि ऐसी संतानें सिर्फ थानेदारों की ही नहीं हैं. शराबखोरी […]

ऐसे कुछ मझोले स्तर के पुलिस अफसरों को भी मैं जानता हूं जिनकी संतानें नशे की लत के कारण लगभग निकम्मी हो गयीं. दरअसल थानेदारों को इतना अधिक घंटे काम करने पड़ते हैं कि उन्हें अपने बाल-बच्चों की देखभाल करने की फुरसत ही नहीं मिलती. हालांकि ऐसी संतानें सिर्फ थानेदारों की ही नहीं हैं. शराबखोरी ने लाखों नौजवानों को बर्बाद किया है. गांवों में पहले बूढ़े-बुजुर्गों का पूरे गांव पर एक अघोषित अनुशासन चलता था. वह अब अनुपस्थित है.

शराब की बात कौन कहे, मेरे गांव के एक बुजुर्ग के ‘अनुशासन’ के कारण उनके पड़ोस के घर के भी नौजवानों ने कभी लुंगी तक नहीं पहनी. यह साठ के दशक की बात है. इधर, परिवारों के एकल होते जाने के कारण कई कि शोर और युवाओं को गलत रास्ते पर जाने से रोकने वाला कोई नहीं है. ऐसे में सरकार की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है.

नीतीश सरकार ने यह जिम्मेदारी उठाई भी है. आज थानेदारों को यह अवसर मिला है कि वे नशाबंदी को पूरी तरह लागू करके अपनी संतानों को भी नशे की तरफ जाने से रोक सकते हैं. एक पत्रकार ने बताया कि मेरे कि शोर बेटे ने शराब पीना शुरू ही किया था कि बिहार में नशाबंदी लागू हो गयी. अब उसके लिए शराब हासिल करना असंभव हो चुका है. यानी वह बर्बाद होने से बच जायेगा.

हाल में जब नशाबंदी अभियान में शिथिलता के कारण 11 थानेदारों को निलंबित किया गया तो बिहार पुलिस एसोसिएशन सरकार से टकराव की मुद्रा में आ गया. यह अच्छा हुआ कि एसोसिएशन अब थोड़ा पीछे हट गया है. यदि बिहार आबकारी कानून को लागू करने में पुलिस के सामने कोई कठिनाई है तो उसका हल अदालत निकाल देगी. संकेत है कि इस कानून को चुनौती देने वाली याचिका कोई न कोई व्यक्ति या संगठन अदालत में दायर करेगा ही. पर, यदि कुछ पुलिसकर्मी खासकर थानेदार किन्हीं निहित स्वार्थवश इसे लागू नहीं करना चाहते हैं तो राज्य सरकार उन्हें इसकी छूट नहीं देगी.

वित्त मंत्री अब्ब्दुल बारी सिद्दिकी ने कहा है कि यदि नौकरी करनी है कि पुलिसकर्मियाें को सरकार का आदेश मानना ही पड़ेगा. घर में शराब रखने वालों पर ऐसे हो कार्रवाई सर्वाधिक विवाद इस बात पर है कि यदि किसी के घर में शराब पायी जाती है तो उसके लिए उस परिवार के किस सदस्य को जिम्मेदार माना जाये? नये कानून में यह प्रावधान है कि घर में शराब पाये जाने पर पति, पत्नी और वयस्क बच्चों को जिम्मेदार माना जाये.

सदस्य को यह अवसर मिलेगा कि वह साबित कर दे कि इसमें दोषी कौन है. पर व्यावहारिक तौर पर इसमें कठिनाई आयेगी. इस मामले में एक अन्य उपाय किया जा सकता है. जिस घर में शराब पायी जाये, उस परिवार के सभी वयस्क सदस्यों के खून के नमूने ले लिये जाएं. आदतन शराबी के खून में कई घंटों तक अलकोहल का अंश रहता है. सिर्फ उसे ही गिरफ्तार किया जाना चाहिए. बाकी किसी सदस्य को परेशान नहीं किया जाये.

हां, जो लोग कभी-कभी शौकिया शराब पीते हैं. या अपने घर पर अतिथि को पिलाने के लिए घर में कुछ शराब रखते हैं. उनके लिए कुछ अलग से उपाय सोचा जाना चाहिए. शायद अदालत इस मामले में शासन को सुझाव दे सकती है. शराबी बेटे के लिए पिता को सजा क्यों? अक्सर ऐसे मामले प्रकाश में आते हैं. बेटा, पिता की इच्छा के खिलाफ अपने घर में ही शराब पीता है और दोस्तों को पिलाता है. बूढ़ा-लाचार बाप कुछ नहीं कर पाता. यदि पुलिस उसके घर से शराब बरामद करती है तो वह लाचार पिता अपने उदंड बेटे के खिलाफ पुलिस के सामने कुछ बोल सकेगा? संभवत: वह जेल जाना बेहतर समझेगा.

मुलायम की कड़ी बोली
सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने यह स्वीकार किया है कि उनके दल के कुछ नेता और कार्यकर्तागण जमीन कब्जा अभियान में लगे हुए हैं. उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए अन्यथा हम अगला विधानसभा चुनाव हार सकते हैं. जमीन कब्जा अभियान में तो देश के कई अन्य दलों के कार्यकर्ता और नेतागण भी लगे हुए हैं. पर इससे पहले किसी अन्य सर्वोच्च नेता ने अपने ही दल के बारे में ऐसी बात कहने की हिम्मत नहीं दिखाई.

ऐसे में यादव जी की बात सराहनीय है. पर सवाल है कि क्या मुलायम सिंह यादव को चुनाव के ठीक पहले यह पता चला है कि ऐसा कब्जा अभियान चल रहा है? यह काम तो सपा जब-जब सत्ता में आती है तो कुछ सपाई करना शुरू कर देते हैं. क्योंकि सपा में ऐसे धनलोलुप लोगों को शुरू से जुटाया जाता रहा है. उन्हें तरजीह दी जाती रही है. हालांकि यहां यह नहीं कहा जा रहा है कि सपा में सब इसी तरह के हैं. कई अच्छे लोग भी हैं. पर मुलायम की इस खरी-खरी का सपा को कोई चुनावी लाभ मिलेगा, ऐसा लगता नहीं है.

सन 2012 के यूपी वि धानसभा चुनाव से ठीक पहले अखिलेश यादव ने गाजियाबाद के चर्चित बाहुबली डीपी यादव का सपा में प्रवेश रोक दिया था. इसका उन्हें चुनावी लाभ तब मिला था. हाल में भी उन्होंने बाहुबली मुख्तार अंसारी को भी सपा में प्रवेश नहीं करने दिया. अब भूमि हड़प से संबंधित नेताजी का बयान आया है.

राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार सपा को इस बार शायद ही ऐसे बयानों का कोई चुनावी लाभ मिले. इसका कारण है. सन 2012 में अखिलेश ने डीपी यादव का प्रवेश भले रोक दिया, पर अपने पूरे कार्यकाल में मुख्यमंत्री ने अपने लोगों द्वारा यूपी में वह सब कुछ होने दिया, जिन तरह के कारनामों के आरोप डीपी यादव पर लगते हैं.

कुछ और उदारता दिखाये कांग्रेस

कांग्रेस तथा अन्य दलों ने जीएसटी बिल पास कराने में मोदी सरकार की मदद की. कश्मीर के ताजा हालात पर भी कांग्रेस ने केंद्र सरकार का साथ दिया. इससे कमजोर होती कांग्रेस के प्रति कई लोगों की थोड़ी बेहतर धारणा बनी. ऐसे सकारात्मक माहौल में कांग्रेस एक और उदारता दिखा सकती है. वह संसद और विधान सभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान करने में भाजपा की मदद करे. कांग्रेस ऐसा न समझे कि इसका लाभ सिर्फ भाजपा को मिल जायेगा.

याद रहे कि ये दो प्रमुख दल शुरू से महिला आरक्षण के पक्ष में रहे हैं. पर, समाजवादी धारा के कुछ नेताओं के विरोध के कारण महि ला आरक्षण विधेयक संसद से पास नहीं हो सका.

महिला आरक्षण के फायदे

हाल की एक खबर के अनुसार राज्यों के मंत्रियों में से 34 प्रतिशत मंत्रियों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं. उधर संसद और विधान सभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव है. यदि सचमुच किसी दिन महिलाओं को इतना आरक्षण मिल गया तो कम से कम उन 33 प्रतिशत महिलाओं में से इक्की-दुक्की महिलाओं पर ही कोई गंभीर आपराधिक मामला लंबित होगा. यानी लोकतंत्र के मंदिर की उतनी सीटें लगभग अपराधमुक्त होंगी, ऐसी उम्मीद की जा सकती है. हां, उन कुछ महिलाओं के पति आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो सकते हैं. पर यदि महिलाएं लगातार तीन-चार बार सांसद या विधायक रह गयीं तो उनमें देर-सवेर स्वतंत्र ढंग से काम करने की ताकत भी आ जायेगी.

और अंत में करीब दो दशक पहले इंडियन एक्सप्रेस के प्रधान संपादक ने मुझसे कहा था कि मैं दिल्ली के अन्य अंग्रेजी पत्रकारों की अपेक्षा इस देश को अधिक जानता हूं, क्योंकि मैं हिंदी अखबार भी पढ़ता हूं. उन्होंने ठीक ही कहा था. पर, हिंदी प्रदेशों में सेवारत कितने आइएएस अफसर हिंदी अखबार पढ़ते हैं?

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें