भ्रष्टाचार के मामलों की जांच भी अब तय समयसीमा पर होगी, संसदीय समिति संशोधन के पक्ष में
नयी दिल्ली : संसद की एक समिति ने कहा है कि भ्रष्टाचार के मामलों की जांच निर्धारित समयावधि में पूरी की जानी चाहिए तथा मामलों की जांच लम्बे समय तक बढाकर लोक सेवकों को परेशान नहीं किया जाना चाहिए. भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) विधेयक 2013 पर विचार के लिए गठित राज्यसभा की प्रवर समिति द्वारा आज […]
नयी दिल्ली : संसद की एक समिति ने कहा है कि भ्रष्टाचार के मामलों की जांच निर्धारित समयावधि में पूरी की जानी चाहिए तथा मामलों की जांच लम्बे समय तक बढाकर लोक सेवकों को परेशान नहीं किया जाना चाहिए. भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) विधेयक 2013 पर विचार के लिए गठित राज्यसभा की प्रवर समिति द्वारा आज संसद में पेश की गई रिपोर्ट में यह कहा गया है.
इसमें कहा गया है, समिति भ्रष्टाचार मामलों के विचार हेतु समयसीमा का निर्धारण कर इस अधिनियम की धारा चार में उक्त (सरकारी) संशोधन का समर्थन करती है. इसमें कहा गया है, ‘‘तथापि समिति आशा करती है कि विशेष न्यायाधीश समयविस्तार की मांग किये बिना निर्धारित दो वर्ष के भीतर विवेचन पूरा करने हेतु हर संभव प्रयास करेंगे. ” रिपोर्ट में कहा गया कि समिति ऐसा सुनिश्चित करने हेतु जांच एजेंसियों पर बल देती है कि मूल अधिनियम के अंतर्गत अपराधों की जांच तथा आरोपपत्र दायर किया जाना भी उपयुक्त समयसीमा के भीतर कर लिया जाये ताकि मामलों की जांच को लंबे समय तक बढाकर लोकसेवकों को परेशान न किया जाये.
समिति ने सुझाव दिया है कि संशोधन विधेयक में यह शामिल किया जाये.. ‘‘विशेष न्यायाधीश मामले को दर्ज किये जाने की तारीख से दो वर्ष की अवधि के भीतर विचार विमर्श पूरा किया जाना सुनिश्चित करेंगे.” रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘परन्तु वाद पर विचार दो वर्ष की अवधि के भीतर पूरा न होने की स्थिति में विशेष न्यायाधीश उसके कारणों को लिखेगे एवं विचार करने के लिए दी गई छह मास की अतिरिक्त अवधि के भीतर इसे पूरा करेंगे.
इसकी अवधि प्रत्येक बार छह मास तक बढायी जायेगी किन्तु विचार विमर्श करने की पूरी अवधि यथासाध्य चार वर्ष से अधिक नहीं होगी.” विधेयक में रिश्वत देने को भी अपराध की श्रेणी में रखा गया है तथा लोकसेवक को उकसाने हेतु कोई व्यक्ति अनुचित लाभ का प्रस्ताव देता है या वायदा करता है तो वह संज्ञेय अपराध का भागी होगा.
रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘समिति महसूस करती है कि सिर्फ रिश्वत की पेशकश करने को ही अपराध मान लेना उचित नहीं होगा जब तक कि इसे स्वीकार न किया जाये या मांगा न जाये . इसलिए समिति सुझाव देती है कि ‘पेशकश’ को खंड आठ से हटा दिया जाये. समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि ‘प्रस्ताव या वादा करता है’ शब्दों का लोप कर दिया जाये और इनकी जगह ‘देने का प्रयास करता है’ शब्द प्रतिस्थापित किये जायें.