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117 साल पुराने पोस्टमार्टम कानून में हो सकता है बदलाव

नागपुर : ब्रिटिशकाल के 117 साल पुराने पोस्टमार्टम प्रक्रिया संबंधी कानून की विस्तृत समीक्षा की जा सकती है. केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र के प्रमुख चिकित्सा-कानूनी विशेषज्ञों की ओर से इस संबंध में तैयार की गई व्यापक रिपोर्ट का संज्ञान लिया है.महात्मा गांधी चिकित्सा विज्ञान संस्थान (एमजीआईएमएस) में क्लीनिक फोरेंसिक मेडिसिन यूनिट (सीएफएमयू) और वरधा जिले […]

नागपुर : ब्रिटिशकाल के 117 साल पुराने पोस्टमार्टम प्रक्रिया संबंधी कानून की विस्तृत समीक्षा की जा सकती है. केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र के प्रमुख चिकित्सा-कानूनी विशेषज्ञों की ओर से इस संबंध में तैयार की गई व्यापक रिपोर्ट का संज्ञान लिया है.महात्मा गांधी चिकित्सा विज्ञान संस्थान (एमजीआईएमएस) में क्लीनिक फोरेंसिक मेडिसिन यूनिट (सीएफएमयू) और वरधा जिले में सेवाग्राम स्थित कस्तूरबा अस्पताल के प्रभारी डॉ इंद्रजीत खांडेकर के मुताबिक, प्रधानमंत्री कार्यालय ने विधि आयोग से मामले को देखने और सुझाव देने को कहा है ताकि मौजूदा कानून में संशोधनों पर विचार किया जा सके.

स्वेच्छा से रिपोर्ट तैयार करने वाले खांडेकर ने कहा कि पोस्टमार्टम के मौजूदा कानून और प्रक्रिया मृतक के रिश्तेदार के अधिकारों का उल्लंघन करती है और आपराधिक मामलों में अदालत में शत प्रतिशत दोषसिद्धि सुनिश्चित करने में नाकाम रहती है.उन्होंने कहा कि विधि आयोग को मामले पर एक रिपोर्ट तैयार करने को कहा गया है ताकि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (आईईए) के प्रासंगिक कानूनों में व्यापक संशोधन किए जा सकें.
पूरी अवधारणा का मकसद फोरेंसिक मेडिकल और वैज्ञानिक जांच का इस्तेमाल करके आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि की दर को बढाना है और अनावश्यक पोस्टमार्टम को कम करना है.खांडेकर के मुताबिक, 1898 से डॉक्टर ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के उन नियमों और प्रक्रियाओं का अनुसरण कर रहे हैं जिन्हें ब्रिटेन ने खुद खारिज कर दिया है

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