नयी दिल्ली : हम और आप यह सोचते हैं कि कन्या भ्रूण की हत्या अधिकतर गरीब लोग करते हैं, जो दहेज देने या उनके लालन-पालन में असमर्थ होते हैं. यह फिर ऐसे दकियानुशीसोचवालेव अल्प शिक्षितलोग कन्याभ्रूण की हत्या करते हैं, जो पुत्र कोवंश बढ़ाने वाला या सहारा देने वाला मानते हैं. लेकिन, इस परंपरागत सोच को एक नयेशोधनेखारिज कर दिया है. एक अध्ययनबताता है कि नये रईस लोग भी कन्याभ्रूण हत्या में पीछे नहीं हैं. एम्स ने वर्ष 1996 से वर्ष 2012 के बीच पॉश दक्षिण दिल्ली में 238 मृत नवजात शिशुओं एवं भ्रूणों की चिकित्सा-विधिक पोस्टमार्टम रिपोर्टों का अध्ययन किया है जिसके परिणाम राष्ट्रीय राजधानी में इस दौरान हुई कन्याभ्रूण हत्याओं की ओर इशारा करते हैं.
एम्स के इस हालिया अध्ययन में कहा गया है कि इन 17 वर्षों में करीब 35 प्रतिशत मामले मृत जन्मे शिशुओं, 29 प्रतिशत मामले जीवित पैदा हुए और 36 प्रतिशत मामले समय पूर्व पैदा हुए शिशुओं के हैं. अध्ययन में कहा गया है, ‘‘जीवित पैदा हुए अधिकतर शिशुओं की हत्या कीगयी थी और अधिकतर को सड़क किनारे छोड़ दिया गया था.’
सह लेखकों में शामिल डॉ. सी बेहरा ने बताया कि कुल मामलों के संदर्भ में लड़कों की संख्या अधिक है लेकिन नजदीक से अध्ययन करने पर पता चला कि पांच माह (20 सप्ताह) के मृत भ्रूणों के मामले में ‘‘लड़कियों की संख्या लड़कों से अधिक है.’ उन्होंने कहा, ‘‘हमारे पुरुष प्रधान समाज के मद्देनजर इसका यह अर्थ हो सकता है कि इस दौरान चयनात्मक कन्या भ्रूण हत्या हुई हो. भारत में गर्भधारण के 20 सप्ताह तक ही चिकित्सकीय गर्भपात की अनुमति है और गर्भनिर्धारण के बाद आपराधिक गर्भपात और चयनात्मक कन्या भ्रूण हत्या किए जाने की आशंका गर्भधारण के 20 सप्ताह के भीतर अधिक होती है.’
ब्रिटेन के मेडिको-लीगल जर्नल के ताजा संस्करण में प्रकाशित इस अध्ययन में दावा किया गया है कि भारत में पहली बार इस प्रकार का अध्ययन किया गया है जिसमें दक्षिण दिल्ली में 17 वर्षों में मृत नवजात शिशुओं और छोड़े गए भ्रूणों के उन मामलों की बात की गयी है जिनके बारे में फोरेंसिक स्तर पर जानकारी है.
अध्ययन में कहा गया है कि जीवित पैदा हुए शिुशुओं के मामलों में अधिकतर (77 प्रतिशत) की मौत का कारण हत्या थी जबकि 19 प्रतिशत की मौत प्राकृतिक कारणों से और एक प्रतिशत की मौत दुर्घटनावश हुई.