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हाईकोर्ट ने उमर अब्दुल्ला की पत्नी से कहा, सम्मानजनक तरीके से खाली कर दें बंगला

नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की अलग रह रही पत्नी पायल अब्दुल्ला से कहा है कि जिस सरकारी आवास में वे अपने दोनों बेटों के साथ रह रही है. उसे वे ‘‘सम्मानजनक” तरीके से खाली कर दें. वर्ष 1999 से सात, अकबर मार्ग पर रह रही पायल […]

नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की अलग रह रही पत्नी पायल अब्दुल्ला से कहा है कि जिस सरकारी आवास में वे अपने दोनों बेटों के साथ रह रही है. उसे वे ‘‘सम्मानजनक” तरीके से खाली कर दें. वर्ष 1999 से सात, अकबर मार्ग पर रह रही पायल ने आवास को खाली करने से इनकार कर दिया था और इस बारे में अदालत से आदेश देने को कहा था.

अदालत ने कहा था कि इस बारे में विस्तृत आदेश दिया जाएगा और उसमें यह भी बताया जाएगा कि उन्हें और उनके बच्चों को कितने समय में बंगला खाली करना होगा. न्यायाधीश इंदरमीत कौर ने पायल के वकील से पूछा, ‘‘आप सम्मानजनक तरीके से खाली करेंगे या इसके लिए हम आदेश जारी करें?” पायल के वकील ने साफ कहा कि अदालत को इस बारे में आदेश जारी करना चाहिए.
न्यायाधीश ने कहा कि सेवानिवृत्त लोगों को खुद ही आवास खाली कर देना चाहिए. न्यायाधीश ने यह भी कहा है कि जब तक पायल और उनके बच्चे राजधानी में रहेंगे, उन्हें दिल्ली पुलिस सुरक्षा मुहैया करवाएगी. गौरतलब है कि पायल और उनके बच्चों को ‘जेड’ और ‘जेड प्लस’ सुरक्षा मिली हुई है. बीती 16 अगस्त को निचली अदालत ने भी पायल से लुटियन जोन स्थित घर खाली करने को कहा था.
उच्च न्यायालय पायल की याचिका की सुनवाई कर रहा था. इस याचिका में कहा गया है कि पायल और उनके बच्चों को सात अकबर रोड स्थित :आठवीं श्रेणी: के बंगले से नहीं निकाला जाए या फिर उनके सुरक्षा के दर्जे और उनके जीवन पर खतरे को देखते हुए उन्हें वैकल्पिक आवास उपलब्ध करवाया जाए. सुरक्षा के मद्देनजर आवास खाली नहीं करवाने के उनके तर्क का केंद्र ने विरोध किया था और कहा था कि जब तक वे यहां रहती हैं उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी दिल्ली पुलिस की है.
गृह मंत्रालय की ओर से पेश वकील अनुराग अहलूवालिया के जरिए केंद्र ने कहा था कि जब से पायल इस बंगले में रह रही हैं तब से उन्हें दी गई सुरक्षा में कोई उल्लेखनीय कटौती नहीं की गई है. गृह मंत्रालय के वकील ने कहा, ‘‘वे जिस भी आवास में रहने जाएंगी, वहां उनकी सुरक्षा में सुरक्षा कर्मियों को तैनात करने की जिम्मेदारी दिल्ली पुलिस की होगी।” केंद्र ने अदालत को बताया है कि सुरक्षा कारणों से सरकारी आवास केवल एसपीजी सुरक्षा प्राप्त लोगांे को ही दिए जाते हैं.
केंद्र ने कहा है, ‘‘उमर अब्दुल्ला या फारुक अब्दुल्ला की परिजन होने के कारण उन्हें आम तौर पर जो खतरा है वह कश्मीरी आतंकवादियों से है. कश्मीर के मुकाबले दिल्ली में उन्हें कम खतरा है.” केंद्र ने यह भी कहा है कि उन्हें ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली है जिसमें पायल अब्दुल्ला को विशेष तौर पर खतरा होने की बात बताई गई हो.उच्च अदालत ने 12 जुलाई को उन्हें बंगला खाली करने के बदले सुरक्षा देने का निर्देश दिया था.
जम्मू-कश्मीर सरकार ने पायल के बंगले में रहने का यह कहते हुए विरोध किया था कि मुख्यमंत्री के दर्जे और उनकी सुरक्षा संबंधी जरुरतों के लिहाज से दिल्ली में उनके पास उचित आवास सुविधा नहीं है और ऐसे में उन्हें विचित्र परिस्थिति का सामना करना पडता है.
इस बीच पायल ने केंद्र सरकार के एक अधिकारी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने के लिए याचिका दायर की थी। पायल का आरोप है कि इस केंद्रीय कर्मचारी ने अदालत के समक्ष एक झूठा हलफनामा दायर किया है जिसमें कहा गया है कि उनको और उनके बच्चों को केंद्र सरकार की ओर से सुरक्षा प्राप्त नहीं है.
याचिका में पायल और उनके बच्चों की ओर से दावा किया गया है कि नौ सितंबर 2015 भेजे गए एक पत्र में केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर राज्य को मुख्यमंत्री आवास के रुप में यह बंगला आवंटित किया है. इस आदेश को 11 अगस्त, 2009 से लागू कर दिया गया है वह भी उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बगैर, ऐसे में यह आवंटन गैरकानूनी है.इस याचिका में पायल अब्दुल्ला ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर सरकार की डिपार्टमेंट ऑफ हॉस्पिटेलिटी ऐंड प्रोटोकॉल की वेबसाइट के मुताबिक राज्य के मुख्यमंत्री का आवास पांच, पृथ्वीराज रोड है.
वकील अमित खेमका की ओर से दायर याचिका में कहा गया है उन्होंने उच्च अदालत का दरवाजा इसलिए खटखटाया क्योंकि उमर अब्दुल्ला ने कारण बताओ नोटिस के जवाब में कहा है कि वे इस आवास में अब नहीं रहते हैं और इसलिए प्रशासन इस आवास का कब्जा लेने के लिए स्वतंत्र है.
अब्दुल्ला दंपत्ति के दोनों बच्चों समेत याचिकाकर्ता प्रियंका गांधी, सुब्रमण्यन स्वामी तथा अन्य कई लोगों के साथ समानता चाहते हैं जिन्हें सुरक्षा कारणों से सरकारी आवास मुहैया करवाया गया है. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि आवास छोडने का आदेश देने से पहले उन्हें सबूत देने और व्यक्तिगत सुनवाई का मौका भी नहीं दिया गया. आवास छोडने के आदेश के मुताबिक याचिकाकर्ताओं को 15 दिन के भीतर आवास खाली करना होगा.

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