कश्मीर के इस दर्द की दवा क्या है?
नयी दिल्ली : कश्मीर के दर्द की दवा तलाशने गृहमंत्री राजनाथ सिंह श्रीनगर पहुंचे हैं. उन्होंने कश्मीर के लिए रवाना होने से पहले ही ट्विटर के जरियेकलकहा कि मैं नेहरू गेस्ट हाउस में ठहरूंगा और जो लोग कश्मीरियत, इंसानियत और जम्हूरियत में विश्वास रखते हैं, वे मुझसे मिल सकते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व गृहमंत्री […]
नयी दिल्ली : कश्मीर के दर्द की दवा तलाशने गृहमंत्री राजनाथ सिंह श्रीनगर पहुंचे हैं. उन्होंने कश्मीर के लिए रवाना होने से पहले ही ट्विटर के जरियेकलकहा कि मैं नेहरू गेस्ट हाउस में ठहरूंगा और जो लोग कश्मीरियत, इंसानियत और जम्हूरियत में विश्वास रखते हैं, वे मुझसे मिल सकते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व गृहमंत्री राजनाथ सिंह भरसक प्रयास कर रहे हैं कि कश्मीर समस्या का कोई सार्थक हल निकले. लेकिन, अब जब कश्मीर संकट अत्यधिक गहरा गया है, तो कई लोग इसका इलाज दिलीप पडगांवकर कमेटी की सिफारिशों में तलाशने की बात भी कह रहे हैं. यूपीए – 2 के कार्यकाल में और पी चिदंबरम के गृहमंत्री रहते दिलीप पडगांवकर कमेटी तब बनी थी, जब इसी तरह उग्र युवाओं की पत्थरबाजी और सुरक्षाबलों के बीच तनाव में 120 जानें चली गयींथीं. उक्त कमेटी में राधा भट्ट व एमएम अंसारी सदस्य बनाये गये थे. लेकिन, जिस पडगांवकर कमेटी की सिफारिशों पर कभी उससमिति को गठितकरने वाली यूपीएसरकारने अमल करना व्यावहारिक नहीं माना, उस पर क्या कांग्रेस की वैचारिक विरोधी (विशेष कर जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर) भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार अमल करेगी?
दिलीप पडगांवकर ने हालिया कश्मीर संकट पर द वायर से बातचीत में कहा था कि यूपीए ने लगभग रिपोर्ट को नकार दिया था, जबकि मुझे विश्वास था कि यूपीए सरकार इसे सदन में रखेगी और इस परसभी पार्टियां चर्चाकरेंगीऔर राजनीतिक दल इस पर अमलकेलिए अधिक विकल्पों की स्वीकृतिदेंगे,पर ऐसा हुआ नहीं. वर्तमान सरकार ने भी इस पर अमल नहीं किया. वे कहते हैं कि अगर उसी समय उन सुझावों पर अमल हुआ रहता तो कश्मीर आज इस हाल में नहीं पहुंचता. पडगांवकर कमेटी की सदस्य रहीं शिक्षाविद राधा कुमार की भी कुछ ऐसा ही धारणा है. उनके अनुसार, कश्मीर के हालात 90 के दशक से खराब हो गये. पहले सिर्फ युवक सड़कों पर निकलते थे, अब महिलाएं व बच्चे भी निकल रहे हैं. उनके अनुसार, राजनीतिक वार्ता व कॉमन मिनिमम प्रोग्राम अपनाते हुए दीर्घकालिक रणनीति से इस समस्या का हल हो सकता है. द वायर से बातचीत में उन्होंने माना कि कश्मीर समस्या पर पिछले 30 साल में किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सका. बहरहाल, इन सब के बीच महबूबा मुफ्ती का परसों दिया गया यह बयान उम्मीद बंधाता है कि घाटी के 95 प्रतिशत लोग अमन पसंद हैं.
पडगांवकर कमेटी परअमलक्यों नहीं?
दरअसल पडगांवकर कमेटी पर अमल नहीं होने संबंधी मीडिया के सवालों का जवाब भाजपा के दस्तावेजाें में छिपा हुआ है. 24-25 मई, 2012 को मुंबई में हुई भाजपा कार्यकारिणी में दिलीप पडगांवकर कमेटी की रिपोर्ट को शब्दों का आडंबर बताते हुए प्रस्ताव पारित किया गया था. पारित प्रस्ताव में कहा गया कि भाजपा की इस रिपोर्ट में आतंक विरोधी उपायों को कम करके दिखाने के सिवा इसका समाधान नहीं बताया गया है. कश्मीर में पंडितों व सिखों की हत्याएं की गयीं और उनका पलायन हुआ, उनकी समस्याओं पर स्पष्टत: कुछ नहीं कहा गया. भाजपा के प्रस्ताव के अनुसार, रिपोर्ट में कहा गया है कि पीओके क्षेत्र पर पाकिस्तान शासन करता है और करता रहेगा, इतना ही नहीं उसे पीएजेके यानी पाकिस्तान शासित जम्मू कश्मीर कहा गया है, जो भारत की संसद द्वारा 1994 में पारित प्रस्ताव कि पीओके भारत का अभिन्न अंग है संबंधी भारतीय स्थिति को कमजोर कर दिया गया है.
भाजपा के प्रस्ताव में रिपोर्ट में इस बात की आलोचना की गयी कि जम्मू व लद्दाख का शासन, रोजगार, खर्च व जनप्रतिनिधत्व में उपेक्षा की जाती है. साथ ही यह भी कहा गया कि अनुच्छेद 370 राज्य और देश के शेष भाग के बीच एक मानसिक बाधा बना हुआ है. पडगांवकर कमेटी की रिपोर्ट की भाजपा कार्यकारिणी में इस बात के लिए आलोचना की गयी थी कि इसमें राज्यपाल को विधानसभा द्वारा नामित करने की बात कही गयी है और 1952 के बाद बने कानून को जम्मू कश्मीर में लागू किये जाने की समीक्षा की सिफारिश की गयी है.
हालातबेकाबू
राज्य में हिंसा की समस्या बेकाबू है.एक अनुमान के मुताबिक कश्मीर में डेढ़ महीने से जारी तनाव के कारण राज्य को अबतक छह हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.संसद सत्र के आखिरी दिन सर्वदलीय बैठक, मानसून सत्र में सदन में दो बार चर्चा, राजनाथ सिंह के कश्मीर दौरे, मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की नरेंद्र मोदी-राजनाथ सिंह से मुलाकात और फिर कश्मीर के सर्वदलीय प्रतनिधिमंडल की नरेंद्र मोदी के साथ सोमवार को हुई बैठक के बाद भी कोई रास्ता निकलता फिलहाल तो नहीं दिख रहा है. सरकार कश्मीर समस्या का हल सख्त तेवर अपनाते हुए निकालना चाहती है और अटल बिहारी वाजपेयी के फार्मूले जम्हूरियत, कश्मीरियत और इंसानियत पर भी आगे बढ़ना चाहती है.
65 से अधिक लोगों की मौत
पिछले 47 दिनों से घाटी में जारी हिंसा में अबतक 65 से अधिक लोग मारे गये हैं. हालात इतने बदतर हो गये हैं कि वहांतीनदिन पूर्व बीएसएफ को तैनात कर दिया गया. 12 साल बाद राज्य में हालात को सामान्य करने के लिए के बीएसएफ की तैनाती की गयी है.
2010 की हिंसा
इससे पहले राज्य में 2010 में हिंसा भड़की थी और गर्मियों में लंबे समय तक पत्थरबाजी की गयी थी. उस समय 120 युवक इस तरह की हिंसा में मारे गये थे.उस समय अनुमान लगाया गया था कि पांच महीने से अधिक समय तक चली हिंसा से 30 हजार करोड़ का आर्थिक नुकसान हुआ था और लगभग एक लाख लोगों की नाैकरी गयी थी.इसके बाद 13 अक्तूबर 2013 में सरकार ने वरिष्ठ पत्रकार दिलीप पडगांवकर की अध्यक्षता में कमेटी बनायी, जिसमें पूर्व सूचना आयुक्त एमएम अंसारी व शिक्षाविद राधा कुमार सदस्य बनाये गये थे.
दिलीप पडगांवकर कमेटी क्या थी और कमेटी की सिफारिश क्या थी?
दिलीप पडगांवकर कमेटी ने जम्मू कश्मीर के विभिन्न क्षेत्रों का सघन दौरा किया था. विभिन्न स्टेकहोल्डर से वे लोग मिले थे. इस कमेटी में शामिल दिलीप पडगांवकर व राधा कुमार दोनों को कश्मीर समस्या को समझने व जूझने का अनुभव था. राधा कुमार को लंबे समय से कश्मीर मुद्दे पर काम करने का अनुभव रहा है तो पडगांवकर 2002 में कश्मीर पर बनायी गयी रामजेठमलानी समिति के सदस्य थे. हालांकि पडगांवकर कमेटी से पहले भी जम्मू कश्मीर मुद्दे पर केसी पंत व एनएन बोहरा कमेटी बनी थी, जिन्होंने भी वहां के विभिन्न पक्षों से वार्ता की थी. लेकिन, पडगांवकर कमेटी इस मायने में अलग थी कि इसने लोगों के पास जाकर बातचीत का रास्ता चुना. कमेटी ने विभिन्न पक्षों के लगभग 700 प्रतिनिधियों से मुलाकात के बाद व तीन गोलमेज बैठकों के बाद रिपोर्ट तैयार की थी.
पडगांवकर कमेटी ने अपनी अनुशंसा में कहा था कि घाटी में सेना की दृश्यता कम की जाये, मानवाधिकार से जुड़े मुद्दों को तुरंत सलटाया जाये, अफसफा को रिव्यू करें और डिस्टर्ड एरिया एक्ट को हटा दें. पडगांवकर कमेटी ने सिफारिश की थी कि केंद्र व हुर्रियत के बीच संवाद आरंभ होना चाहिए. भारत सरकार व हुर्रियत के बीच हुए संवाद से उभरे तथ्यों पर पाकिस्तान व पाकिस्तान नियंत्रित जम्मू कश्मीर को वार्ता के लिए राजी करना चाहिए. नियंत्रण रेखा के दोनों ओर सिविल सोसाइटी के बीच संवाद बढ़ाना चाहिए.
मानव अधिकार और कानून के शासन संबंधी गतिविधि में सुधार लाना. दरअसल, पडगांवकर कमेटी ने अपनी पड़ताल में पाया कि वहां लोग आठ से नौ सालों से जेलों में बंद हैं और मामले की सुनवाई पूरी नहीं हो पा रही है. ये मामले मानवाधिकार से जुड़े हैं. कमेटी ने कहा था कि वैसे पत्थर मारने वाले जिन पर गंभीर मामले नहीं हैं, उनकी रिहाई की जाये. राज्यपाल के लिए राज्य सरकार विपक्षी पार्टी से परामर्श कर तीन नाम भेजें और आवश्यकता पड़ने पर राष्ट्रपति और नाम मांग सकते हैं. इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा ही की जाये. तीनों क्षेत्र के लिए अलग-अलग परिषद बनाना. प्रचार माध्यमों, पत्रकारों व सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं, नागरिक अधिकार के लिए संघर्षरत लोगों पर बनाये जा रहे दबाव से उन्हें मुक्त करना. इसके अलावा कमेटी ने धारा 370 को बनाये रखने की भी सिफारिश की थी.