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12वीं का सर्टिफिकेट नहीं, फिर भी यूएस के एमआइटी में दाखिला

मुंबई : मालविका राज जोशी के पास 10वीं या 12वीं का सर्टिफिकेट नहीं है, फिर भी उसे अमेरिका के प्रतिष्ठित संस्थान मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआइटी) में दाखिला मिला है. यह सब कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में उसकी प्रतिभा से संभव हुआ है. 12वीं बोर्ड का सर्टिफिकेट न होने के कारण उसे आइआइटी संस्थानों में प्रवेश नहीं […]

मुंबई : मालविका राज जोशी के पास 10वीं या 12वीं का सर्टिफिकेट नहीं है, फिर भी उसे अमेरिका के प्रतिष्ठित संस्थान मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआइटी) में दाखिला मिला है. यह सब कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में उसकी प्रतिभा से संभव हुआ है. 12वीं बोर्ड का सर्टिफिकेट न होने के कारण उसे आइआइटी संस्थानों में प्रवेश नहीं मिला था. तथ्य यह है कि उसे भारत में केवल चेन्नई मैथेमैटिकल इंस्टीट्यूट (सीएमआइ) में प्रवेश मिला था, जहां उसे एमएससी स्तर के कोर्स दाखिला दिया गया था, क्योंकि उसका ज्ञान बीएससी के स्तर से अधिक था.

तीन बार आइओआइ में मेडल
एमआइटी ने मालविका को स्कॉलरशिप भी प्रदान की है. ऐसा इसलिए किया गया है, क्योंकि उसने इंटरनेशनल ओलिंपियाड ऑफ इंफॉरमैटिक्स (आइओआइ) में तीन बार मेडल (दो सिल्वर व एक ब्रॉन्ज) जीतने के बाद सीट पायी थी. फिलहाल, वह बीएससी कर रही है. इंटरनेशनल ओलिंपियाड ऑफ इन्फोरमैटिक्स को सामान्य रूप से प्रोग्रामिंग ओलिंपियाड के नाम से जाना जाता है. मालविका पिछले तीन वर्षों से लगातार प्रोग्रामिंग ओलिंपियाड में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले शीर्ष चार छात्रों में शामि लथी.

सपना : कंप्यूटर प्रोग्रामिंग पर रिसर्च
इस प्रति भावान छात्रा के आइओआइ मेडल का ही कमाल है कि वह अब अपने पसंदीदा विषय कंप्यूटर प्रोग्रामिंग पर रिसर्च करके अपने सपने को पूरा कर सकती है. इस संबंध में शुरुआत में बोस्टन से हुए ई-मेल के आदान-प्रदान को याद करते हुए वह बताती हैं, कि चार साल पहले जब मैंने घर से पढ़ाई शुरू की, तो मैंने कई विषयों पर काम किया. प्रो ग्रामिंग उनमें से एक थी. मेरी दिलचस्पी प्रो ग्रामिंग में बढ़ी और मैंने इसमें अन्य विषयों की अपेक्षा सबसे ज्यादा ध्यान देती थी.

सातवीं में स्कूल छुड़वाया, खुद बनाया पाठ्यक्रम
मालविका की दिलचस्प कहानी की शुरुआत चार साल पहले हुई, जब उसकी मां सुप्रिया ने एक अविश्वसनीय निर्णय लिया था. मालविका तब कक्षा सात में दादर पारसी यूथ असेंबली स्कूल में पढ़ती थी. अपनी कक्षा में सर्वश्रेष्ठ थी, फिर भी मां ने उसे स्कूल से नि काल कर घर बैठा दिया. और बिटिया रानी के लिए घर पर ही पाठ्यक्रम डिजाइन किया. घर पर बिल्कुल क्लास रूम के जैसा माहौल बनाया. हालांकि, मां सुप्रिया के लिए यह काम आसान नहीं था. अपनी नौकरी छोड़ दी. वो कहतीं हैं -भारत में लोग अभी भी ‘होम स्कूल’ या ‘अनस्कूल’ जैसे शब्दों से परिचित नहीं हैं. एेसे में यह निर्णय जोखिम भरा था. बिटिया के पिता को भी राजी करने में वक्त लगा. पर, भरोसा था खुद पर. एहसास था कि बेटी को अच्छा ज्ञान दे सकती हूं. और परिणाम सबके सामने है.

एमआइटी से सीखें अन्य संस्थान
इंडियन कंप्यूटिंग ओलिंपियाड के नेशनल को-ऑर्डिनेटर व सीएमआइ के माधवन मुकुंद ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं
है कि मालविका को एमआइटी में प्रवेश आइओए में उसकी उपलब्धियों के कारण ही मिला है. इसका श्रेय एमआइटी की
उस लचीली नीति को जाता है जि समें हाइस्कूल का औपचारिक प्रमाणपत्र न होने के बावजूद उत्कृष्ट छात्रों को संस्था न में प्रवेश दिया जाता है.

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