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अंगरेज शासन से ही जारी है कावेरी जल विवाद, जानिए क्या है इसका इतिहास?

कावेरी के पानी को लेकर एक बार फिर कर्नाटक व तमिलनाडु सुलग रहा है. कर्नाटक में भड़की हिंसा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य के लोगों से शांति व धैर्य बनाये रखने की अपील की है. उन्होंने हालात पर दुख जताया है और कहा है कि हिंसा से किसी समस्या का समाधान नहीं हो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 13, 2016 2:13 PM

कावेरी के पानी को लेकर एक बार फिर कर्नाटक व तमिलनाडु सुलग रहा है. कर्नाटक में भड़की हिंसा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य के लोगों से शांति व धैर्य बनाये रखने की अपील की है. उन्होंने हालात पर दुख जताया है और कहा है कि हिंसा से किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है, बल्कि आपसी बातचीत से ही उसे सुलझाया जा सकता है. उधर, लोकसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खडगे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की है कि वे कावेरी के बहाव वाले चारों राज्यों कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल व पुड्डुचेरी के मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाकर मामले का हल निकालें. दरअसल, कर्नाटक व तमिलनाडुके बीच कावेरी के पानी के बंटवारे का विवाद सालों नहीं दशकों पुराना है.

कावेरीनदीकेपानीकेबंटवारेके विवादकाऐतिहासिकसंदर्भहै,जोब्रिटिशशासनकालकेदौरानकाहै. अंगरेज शासन में कर्नाटक का दर्जा रियासत का था, जबकि तमिलनाडु सीधे तौर पर ब्रिटिश शासन के अधीन आता था. ऐसे में कावेरी जल बंटवारे को लेकर 1924 मेंतत्कालीन मैसूर रियासत (कर्नाटक) व मद्रासप्रेसीडेंसी (तमिलनाडु) के बीच एक समझौता हुआ था, जिसके बारे में कर्नाटक की यह धारणा रही है कि उसके साथ उस करार में न्याय नहीं हुआ था. कर्नाटक को यह भी लगता है कि नदी के बहाव की दिशा में वह पहले पड़ता है, इसलिए उस पानी पर उसका पूरा व पहले अधिकार बनता है. दूसरी ओर तमिलनाडु में यह आम धारणा है कि उसे 1924 के समझौते के अनुरूप पानी मिले. तमिलनाडु की यह भी दलील रही है कि किसी भी अंतरराज्यीय नदी पर राज्य का नहीं बल्कि केंद्र का हक रहे अौर वही उसकी वितरण व्यवस्था बनाये.

भारत सरकार की पहल

भारत सरकार ने 1972 में एक कमेटी बनायी, जिसकी सिफारिशों के बाद 1976 में कावेरी जल के चार दावेदारों कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल व पुड्डुचेरी के बीच समझौता हुआ था. संसद में इसकी घोषणा की गयी थी, बावजूद इसके इसका पालन नहीं हुआ था. बाद में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इस विवाद को सुलझाने के लिए 1990 में केंद्र सरकार ने एक न्यायाधीकरण का गठन कर दिया. अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्वकाल में भी कावेरी विवाद ने तूल पकड़ा था और तब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मुख्यमंत्रियों की बैठक भी हुई थी, जिसमें से एक बैठक में से बीच में ही तमिलनाडु की सीएम जयललिता निकल गयी थीं और कर्नाटक के तब के सीएम एसएम कृष्णा पर आरोप लगाया था कि वे पहले से मन बना कर आये थे कि तमिलनाडु को पानी नहीं देना है.

क्यों इतना अहम है कावेरी नदी?


कावेरी नदी प्रमुख रूप से कर्नाटक और तमिलनाडु के उत्तरी इलाके में बहती है. यह अपने बहाव वाले विशाल इलाके को सिंचित करती है, जिसका अबतक कोई दूसरा विकल्प नहीं है. इसे दक्षिण भारत की गंगा भी कहते हैं. 800 किलोमीटर लंबी यह नदी का बेसिन एरिया करीब 81, 155 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें तमिलनाडु में 43, 856 वर्ग किलोमीटर, कर्नाटक में 34, 273 वर्ग किलोमीटर, केरल में 2, 866 वर्ग किलोमीटर व पुड्डूचेरी में 160 वर्ग किलोमीटर एरिया है. पुड्डुचेरी के कराइकाल से होकर यह नदी बंगाल की खाड़ी में समाती है.

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