सिंधु जल समझौता पर पीएम मोदी की दो टूक : खून और पानी साथ नहीं बहने देंगे
नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज अपने आवास पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ सिंधु जल समझौते की समीक्षा की. मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी ने आज हुई बैठक में कोई फैसला नहीं लिया, सिर्फ अधिकारियों से जानकारी ली. उन्होंने इस संधि के […]

नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज अपने आवास पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ सिंधु जल समझौते की समीक्षा की. मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी ने आज हुई बैठक में कोई फैसला नहीं लिया, सिर्फ अधिकारियों से जानकारी ली. उन्होंने इस संधि के कानूनी, राजनीतिक व सामाजिक पहलुओं का ब्यौरा अफसरों से लिया.सूत्रों के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैठक के दौरान अफसरों से कहा कि हम खून और पानी एक साथ नहीं बढ़ने देंगे. हालांकि वे तुरंत किसी फैसले पर नहीं पहुंचे हैं और इस मुद्दे को कूटनीतिक तरीके से डील करने के पक्ष में हैं.सूत्रों का कहना है कि सरकार समझौतापर पुनर्विचार को लेकर काफी गंभीर है. समझौता तोड़े बिना अपने हिस्से का पानी लेने व उसके अधिकाधिक उपयोग पर विचार किया जा रहा है. बैठक में पूर्वी क्षेत्रयाअपने यहां की तीन नदियों व्यास, रावी एवं सतलज की जल संपदा के अधिक उपयोग पर विचार किया गया, जिसका बड़ा हिस्सा अभी पाकिस्तान को जाता है. ध्यान रहे कि पिछले रविवार को जम्मू कश्मीर के उरी में सेना के कैंप पर पाकिस्तान के आतंकियों ने हमला किया था, जिसमें हमारे 18 जवान शहीद हो गये थे.
पूर्व विदेश सचिव व कूटनीतिक मामलों पर मजबूत पकड़ रखने वाले कंवल सिब्बल का कहना है कि उन्हें नहीं लगता कि यह करार तोड़ने का वक्त आ गया है. उनका कहना है कि यह कुछ ज्यादा ही कठिन और कड़ा कदम हो जायेगा. उनके अनुसार, इससे वर्ल्ड बैंक और दूसरे पक्षों के साथ लीगल समस्याएं खड़ी हो जाएंगी. हालांकि भारत में यह मांग बढ़ रही है कि इस संधि को रद्द किया जाना चाहिए.
इस बैठक में एनएसए के अलावा, विदेश सचिव एस जयशंकर, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्र सहित अन्य अधिकारी शामिल हुए हैं. दुनिया में जल बंटवारे के इस सबसे उदार समझौते से पाकिस्तान का पूर्वी क्षेत्र सिंचित होता है और वहां के लोगों को दाना-पानी नसीब होता है. लेकिन, भारत के पानी से पोषित वह देशइसकाएहसान मानने के बजाय वहां के आतंकी लगातारभारत के ऊपर कायराना हमले में लगे हैं.
PM Narendra Modi chairs meeting on Indus Waters Treaty. FS Jaishankar, NSA Doval and PM's principal secretary Nripendra Misra attend meeting pic.twitter.com/5B4hyxtANt
— ANI (@ANI) September 26, 2016
क्या है सिंधु जल समझौता?
सिंधु जल समझौता हमारे उदार नेता व पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के जमाने में 1960 में हुआ था. यह समझौता विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुआ था, जिस पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किये थे. समझौते के तहत पाकिस्तान के पूर्वी क्षेत्र की तीन नदियों व्यास, रावी एवं सतलज की जल संपदा पर भारत को नियंत्रण मिला. वहीं, पश्चिम की नदियों सिंधु, चिनाब एवं झेलम पर नियंत्रण की जिम्मेवारी पाकिस्तान को सौंपी गयी. पानी परफोकस काम करने वाली वेबसाइट इंडिया वार्टर पोटल के अनुसार,इससमझौते से भारत के ऊपरी हिस्से में बहने वाली छह नदियों का 80.52 यानी 167.2 अरब घन मीटर पानी पाकिस्तान को हर साल दिया जाता है. जबकि, भारत के हिस्से महज 19.48 प्रतिशत पानी ही शेष रह जाता है.
Delhi: PM Modi chairs meeting on Indus Waters Treaty. FS Jaishankar, NSA Doval, PM's principal secy Nripendra Misra also attend meeting pic.twitter.com/wae4oqRabh
— ANI (@ANI) September 26, 2016
अमेरिकी सीनेट भी कर चुका है तारीफ
नदियों का पानी देने की ऐसी उदार संधी दुनिया में कहीं नहीं हुई है. यह भारत के बड़े दिल का एक शानदार उदाहरण है. अमेरिकी सीनेट की विदेश मामलों से संबंधित समिति ने 2011 में दावा किया था कि यह संधि दुनिया की सफलतम संधियों में से एक है. यूएस सीनेट की कमेटी ने यह भी कहा था कि यह संधि इसलिए सफल है क्योंकि भारत संधियों की शर्तों को निभाने के प्रति अबतक उदार एवं प्रतिबद्ध बना हुआ है.
पाकिस्तान की फितरत, उदरता पर भी शिकायत
पाकिस्तान की यह शिकायत रही है कि उसे पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा और इसके लिए वह एक दो बार अन्तरराष्ट्रीय मध्यस्थता के लिए भी जा चुका है. जम्मू कश्मीर के उप मुख्यमंत्री निर्मल सिंह ने पिछले सप्ताह कहा था कि 1960 में किये गये इस समझौते के बारे में सरकार का जो भी फैसला होगा उनका राज्य इसका पूरा समर्थन करेगा. सिंह ने कहा था, ‘‘इस संधि के कारण जम्मू कश्मीर को बहुत नुकसान हुआ है.’ क्योंकि राज्य इन नदियों, विशेष रुप से जम्मू की चिनाब के पानी का कृषि अथवा अन्य जरुरतों के लिए पूरा उपयोग नहीं कर पाता है. उन्होंने कहा था, ‘‘केंद्र सरकार सिंधु जल संधि के बारे में जो भी फैसला करेगी, राज्य सरकार उसका पूरा समर्थन करेगी.’ उल्लेखनीय है कि भारत ने पिछले सप्ताह स्पष्ट तौर पर कहा था, इस संधि को जारी रखने के लिए ‘आपसी विश्वास और सहयोग’ बहुत महत्वपूर्ण है.
(एजेंसी इनपुट के साथ)