असीमानंद ने नहीं दिया किसी मैगजीन को इंटरव्यू!

नयी दिल्ली:असीमानंद का लेकर चल रहे बवाल के बीच सीएनएन आईबीएन को एक नोट मिला है. बताया जा रहा है कि यह खुद असीमानंद के द्वारा लिखा गया है. इसमें उन्होंने कैरावन मैगजीन को किसी भी तरह का इंटरव्यू देने से इनकार किया है. गौरतलब है कि असीमानंद समझौता एक्सप्रेस बम धमाके के आरोपी हैं. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 7, 2014 1:26 PM

नयी दिल्ली:असीमानंद का लेकर चल रहे बवाल के बीच सीएनएन आईबीएन को एक नोट मिला है. बताया जा रहा है कि यह खुद असीमानंद के द्वारा लिखा गया है. इसमें उन्होंने कैरावन मैगजीन को किसी भी तरह का इंटरव्यू देने से इनकार किया है. गौरतलब है कि असीमानंद समझौता एक्सप्रेस बम धमाके के आरोपी हैं.

पिछले दिनों कैरावन मैगजीन ने यह दावा किया है कि उसके रिपोर्टर के सामने असीमानंद ने बम धमाके में आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत का भी हाथ होने की बात कबूल की है. नोट में असीमानंद कहते हैं कि रिपोर्टर से वो कुछ बार मिले जरूर हैं, वो एक वकील के भेष में उनसे मिली थीं. असीमानंद ने ये भी माना कि उन्होंने रिपोर्टर से कई बार कोर्ट के बाहर और अंदर सुनवाई के दौरान मुलाकात की. बता दें कि कैरावन मैगजीन ने असीमानंद के हवाले से ये छापा था कि समझौता एक्सप्रेस में धमाके के लिए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मंजूरी दी थी.

असीमानंद के हवाले से कहा गया था कि संघ के इशारे पर ये धमाके कराए गए. कैरावन का दावा है कि अंबाला जेल में एक इंटरव्यू के दौरान असीमानंद ने उसकी संवाददाता गीता रघुनाथ को बताया कि समझौता और मालेगांव ब्लास्ट को खुद मौजूदा आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने मंजूरी दी थी. इस प्रक्रिया में संघ के बड़े पदाधिकारी इंद्रेश कुमार भी शामिल थे. इस दावे के बाद राजनीतिक गलियारों में खासा हंगामा मचा रहा और राजनीतिक दलों ने मामले की जांच और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार तक करने की मांग कर डाली.

कैरावन के मुताबिक गीता ने 2 साल में कुल 4 बार असीमानंद का इंटरव्यू किया, जिसके आधार पर ये दावा किया गया है. मैगजीन ने अपने दावे को पुख्ता करने के लिए अपनी वेबसाइट पर गीता रघुनाथ और असीमानंद के इंटरव्यू के 2 ऑडियो भी जारी किए हैं. लेकिन जानकारों ने इस इंटरव्यू पर सवाल उठाए हैं. अगर असीमानंद ने वाकई ऐसा कहा भी है तो उसकी बात को कितनी गंभीरता से लिया जाए? चुनावी माहौल में अक्सर सामने आने वाले सनसनीखेज खुलासों की एक कड़ी ही इसे क्यों न माना जाए?

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