चीन के संबंध में राजीव गांधी के समय की रणनीति अब कारगर नहीं : शिवशंकर मेनन

पूर्व एनएसएशिवशंकर मेनन की ‘‘च्वाइसेज : इनसाइड द मेकिंग ऑफ इंडिया’ज फॉरेन पॉलिसी’ नाम से आ रही है नयी किताब चीन का उदय हो रहा है तो निश्चितरूप से चीन के साथ संबंधों का पुनर्वलोकन करने की जरूरत है वॉशिंगटन : पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन का कहना है कि चीन भारत संबंध तनाव […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 12, 2016 4:41 PM


पूर्व एनएसएशिवशंकर मेनन की ‘‘च्वाइसेज : इनसाइड द मेकिंग ऑफ इंडिया’ज फॉरेन पॉलिसी’ नाम से आ रही है नयी किताब


चीन का उदय हो रहा है तो निश्चितरूप से चीन के साथ संबंधों का पुनर्वलोकन करने की जरूरत है


वॉशिंगटन :
पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन का कहना है कि चीन भारत संबंध तनाव की स्थिति में हैं और इनके पुनर्वालोकन की जरूरत है क्योंकि बदल चुके हालात में वर्ष 1988 की व्यवस्था ‘‘कारगर उपाय’ नहीं है.

मेनन ने पीटीआइ-भाषा को बताया ‘‘भारत चीन संबंध तनाव की स्थिति में हैं. आप यह तनाव देख सकते हैं …. मसूद अजहर को आतंकवादी का दर्जा देना, एनएसजी :परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह:, मेरा मतलब है कि मुझे यह सब गिनाने की जरूरत नहीं है. ….इसलिए इस रिश्ते में तनाव तो है.’ भारत में इस सप्ताह के अंत में होने जा रहे दो दिवसीय ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए राष्ट्रपति शी चिनफिंग के भारत पहुंचने से पहले मेनन ने कहा ‘‘यह सब संबंधों में तनाव के संकेत हैं जहां दोनों देशों के बीच पर्याप्त रणनीतिक संवाद नहीं है.’ बहरहाल, पूर्व विदेश सचिव ने कहा कि द्विपक्षीय संबंधों को लेकर वह निराशावादी नहीं हैं.

भारत-चीन संबंधों को लेकर निराशावादी नहीं

उन्होंने अपनी किताब ‘‘च्वाइसेज : इनसाइड द मेकिंग ऑफ इंडिया’ज फॉरेन पॉलिसी’ में लिखा है ‘‘मैं भारत चीन संबंधों के भविष्य के बारे में निराशावादी नहीं हूं.’ इस किताब का विमोचन पिछले सप्ताह ब्रूकिंग इन्स्टीट्यूट में हुआ था और यह दुनिया भर के स्टोर्स में अगले सप्ताह नजर आएगी.

विदेश नीति के पहलू पर मेनन ने कहा है कि निश्चितरूप से वह निरंतरता बनाए रखने के मोदी सरकार के प्रयासों को देखते हैं. वर्ष 2011 से 2014 तक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे मेनन ने कहा कि कई चीजें की गयीं, उदाहरण के लिए बांग्लादेश के साथ भूमि सीमा समझौता…. अमेरिका के साथ संबंधों में भी प्रयास किए गए हैं, ‘लुक ईस्ट’ से ‘एक्ट ईस्ट’ तक कई चीजें पहले भी हुईं और निरंतर जारी हैं.

चीन के साथ रिश्तों के पुनर्वलोकन की जरूरत

मेनन ने कहा ‘‘निरंतरता अच्छी है’ और इससे पता चलता है कि यह भारत की नीति है और इसे आगे भी बढाया जाएगा.

वर्ष 2006 से 2009 तक विदेश सचिव की भूमिका निभा चुके मेनन ने कहा ‘‘लेकिन इसकी अपनी सीमाएं हैं. अगर हालात बदलते हैं… एशिया प्रशांत में सत्ता का संतुलन बदल रहा है, चीन का उदय हो रहा है तो निश्चितरूप से चीन के साथ संबंधों का पुनर्वलोकन करने की जरूरत है.’ मेनन ने कहा कि चीन के साथ वर्तमान नीति 1988 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के दौरे के समय से अपनायी गयी थी जो तीन दशक से चली आ रही है और अब यह कारगर उपाय नहीं है.

उन्होंने कहा ‘‘यह मूलत: इस प्रकार है कि हमारे जो भी जटिल मुद्दे हैं, उन पर हम चर्चा करेंगे, लेकिन खुद को उन संबंधों का विकास करने से नहीं रोक सकते जिनमें हम सहयोग कर सकते हैं. और इसी तरह यह हमारा सबसेबड़ा कारोबारी भागीदार बन गया या वह विश्व मंच पर हमसे सहयोग कर रहा है जहां हमारे साझा हित हैं. हमने डब्ल्यूटीओ, जलवायु परिवर्तन वार्ताओं पर साथ-साथ काम किया.’ उन्होंने कहा कि चीन बदल गया, भारत बदल गया, स्थिति बदल गयी, इसलिए अब तक जो चला आ रहा था वह अब काम नहीं करेगा. भारत-चीन के संबंध तनाव की स्थिति में हैं.

नयी व्यवस्था तलाशने की जरूरत

मेनन ने कहा ‘‘आपको एक नयी व्यवस्था तलाशने की जरूरत है, संबंधों में एक नया समीकरण, जो आपको चीनियों के साथ बातचीत कर बनाने की जरूरत है. आपके और उनके मुख्य हित क्या हैं, कहां यह हित आपस में टकराते हैं, कहां तनाव है और आप इससे किस तरह निपटने जा रहे हैं.’ अपने शानदारराजनयिक करियर में चीन में भारतीय राजदूत की भूमिका निभा चुके मेनन ने चेताया कि ऐसा न होने पर आप इसे बिल्कुल धीरे-धीरे वाली स्थिति में छोड़ देंगे जो कि खतरनाक है. क्योंकि यह कोई नहीं जानता कि इनमें से कौन-सा मुद्दा खतरनाक बन सकता है और आपके लिए समस्या बन सकता है.


पाकिस्तान चीन का प्रतिनिधि नहीं

मेनन ने कहा ‘‘फिर संबंधों को बनाए रखने की बात है तो यह संबंधों पर असर डालता है. आज आपके चीन से संबंध हैं जिनमें आप दोनों सहयोग और प्रतिस्पर्द्धा करते हैं. इसमें मूलभूत बदलाव की संभावना नहीं है. लेकिन आपको इन संबंधों को बनाए रखने के तरीके तलाशने की जरूरत है ताकि आप अधिक महत्वपूर्ण चीजों पर ध्यान केंद्रित कर सकें जो कि विकासशील और बदलता भारत है.’ एक सवाल के जवाब में मेनन ने इस प्रभाव से इनकार किया कि पाकिस्तान चीन के लिए प्रतिनिधि के तौर पर काम कर रहा है.

उन्होंने कहा कि मैं किसी देश का या अन्य प्रतिनिधियों का जिक्र नहीं करूंगा. सभी देश अपने अपने हित देखते हैं. जब किसी और के साथ उनके हित साझा होते हैं तो वह साथ काम करते हैं. और मेरे विचार से, हम चीन और पाकिस्तान के मामले में यह देखते हैं.

मेनन ने कहा ‘‘प्रतिनिधि का मतलब है कि वह किसी और के, कुछ और हितों की पूर्ति कर रहा है. यह सच नहीं है. पाकिस्तान अपने हितों की पूर्ति कर रहा है. जहां यह कर सकता है, वहां यह अन्य शक्ति के साथ काम करता है और इसके लिए वह रणनीतिक लाभ लेता है.’ उन्होंने कहा ‘‘वह चीन के साथ, पश्चिम एशिया के साथ यह करता है, उसने अमेरिका के साथ यह किया और जब अमेरिका ने पाया कि जिन दिनों अफगानिस्तान में सोवियत संघ था तब पाकिस्तान अफगानिस्तान में उपयोगी था. इसलिए मैं पाकिस्तान को चीन का प्रतिनिधि नहीं कहूंगा. हमारे साथ पाकिस्तान का जो रवैया है उसमें उसके अपने हित हैं. इसी तरह की बात चीन के साथ या उसके बिना है.’

चीन को दोस्त की जरूरत

मेनन ने कहा कि आज चीन को कई कारणों से पाकिस्तान कीजरूरत है. उन्होंने कहा कि केवल भारत ही नहीं बल्कि चीन ने भी कदम बढाया है. चीन एक पट्टी एक सड़क बनाने की, ऐसा क्षेत्र बनाने की कोशिश कर रहा है जिसे शी अपनी उपलब्धि बता सकें. इसे दोस्त और सहयोगी की जरूरत है जो आज उत्तर कोरिया और पाकिस्तान हैं.

मेनन ने कहा ‘‘आज व्यापार, वैश्विक अर्थव्यवस्था, टीटीपी, आरसीइपी के मुद्दे हैं हमारे पूर्व में मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने के, विश्व अर्थव्यवस्था को अलग-अलग हिस्सों में तोड़ने के प्रयास हैं और यह हमारे लिएबड़े मूलभूत मुद्दे हैं.’ उन्होंने कहा कि उदाहरण के लिए, हम जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा सुरक्षा से एक साथ कैसे निपटते हैं. मेरे विचार से यह मुद्दे निरंतरता से अधिक अहम होंगे.

मेनन ने कहा ‘‘इनके लिए अधिक रचनात्मक समाधान की, भविष्य में और काम करने की जरूरत है. यह इस सरकार के लिएबड़ी चुनौतियां हैं क्योंकि इन सभी के बडे घरेलू प्रभाव हैं.’

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