नयी दिल्ली : दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आज बड़ा झटका लगा जब दिल्ली उच्च न्यायालय ने वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा उनके और आप के अन्य नेताओं के खिलाफ दायर मानहानि के फौजदारी मामले मे निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने की उनकी याचिका खारिज कर दी. अदालत ने कहा कि इसमें दम नहीं है.
न्यायमूर्ति पी एस तेजी ने कहा, ‘‘मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष अदालत की कार्यवाही स्थगित करने के याचिकाकर्ता के अनुरोध को खारिज किया जाता है, क्योंकि इसमें दम नहीं है और मौजूदा याचिका खारिज की जाती है.’ अदालत ने कहा, ‘‘इस अदालत के समक्ष कुछ भी ऐसा नहीं पेश किया गया जिससे यह लगे कि सीएमएम के समक्ष फौजदारी कार्यवाही कानूनी प्रक्रिया का दुरपयोग है और न्याय के लिए इस अदालत के आदेश की आवश्यकता है.’
अदालत ने कहा कि इस अदालत की राय है कि सीएमएम का 19 मई 2016 का आदेश जिसमें कार्यवाही जारी रखने की बात की गई थी वह दुराग्रह, अनौचित्य, अवैधता और टिकने लायक नहीं होने की बातों से मुक्त है. इसलिए अदालत सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करने पर मजबूर नहीं है.
उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि सीएमएम के समक्ष फौजदारी कार्यवाही जारी रखने में कानून में कानूनन कोई अवैधता नहीं है और वह इसे जारी रखने में सक्षम है. अदालत ने केजरीवाल की याचिका पर 25 जुलाई को सुनवाई पूरी की थी. उसमें निचली अदालत के 19 मई के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसने दिल्ली के मुख्यमंत्री के निचली अदालत के समक्ष फौजदारी मानहानि के मामले में सुनवाई पर दीवानी वाद पर उच्च न्यायालय के फैसला करने तक रोक लगाने की मांग की गई थी.
अपनी याचिका में केजरीवाल ने दावा किया कि आप नेताओं के खिलाफ एक ही आरोप पर दो मामले दायर किए गए हैं. इसमें से एक दीवानी मामला है और दूसरा फौजदारी मामला. उन्होंने कहा था कि निचली अदालत को मामले में कार्यवाही पर रोक लगा देनी चाहिए थी, लेकिन उसने इसे ठुकरा दिया था. जेटली ने फौजदारी मानहानि की शिकायत दायर की थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि केजरीवाल और आप के पांच अन्य नेता राघव चड्ढा, कुमार विश्वास, आशुतोष, संजय सिंह और दीपक बाजपई ने दिल्ली जिला क्रिकेट एसोसिएशन (डीडीसीए) विवाद में उनकी मानहानि की थी. गत सात अप्रैल को निचली अदालत ने केजरीवाल और अन्य को मामले में जमानत दी थी जब वो इसके समक्ष उपस्थित हुए थे.