नयी दिल्ली : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने देश में मध्यस्थता की रुपरेखा ढांचे को मजबूत करने के लिए संस्थागत सुधारों का आह्वान किया है. मुखर्जी ने आज कहा कि अदालतों को एक ऐसा तंत्र बनाया चाहिए जिससे इस तरह के मामलों को अलग से देखा जाए और न्यायिक हस्तक्षेप की वजह से होनी वाली देरी से बचा जा सके. मुखर्जी ने यहां ‘भारत में मध्यस्थता तथा प्रवर्तन की मजबूती’ पर एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि देश में न्यायाधीशों के सामने हस्तक्षेप और अत्यधिक हस्तक्षेप के बीच संतुलन बैठाने की कठिन चुनौती होती है. भारतीय अदालतों को एक ऐसा प्रशासनिक तंत्र बनाने की जरुरत है जिससे मध्यस्थता के मामलों की अलग सुनवाई सुनिश्चित हो सके और इनको तेजी से निपटाया जा सके.
राष्ट्रपति ने कहा कि बाजार अर्थव्यवस्था में सरकार का हस्तक्षेप सिर्फ बाजार के विफल होने तक सीमित होना चाहिए और निजी व्यावसायिक विवाद इस श्रेणी में नहीं आते हैं. मुखर्जी ने कहा कि सरकार को देश में संस्थागत मध्यस्थता के लिए एक अनुकूल ढांचा बनाना चाहिए. राष्ट्रपति ने कहा, ‘अच्छा कानून खुद में अच्छे संस्थान का विकल्प नहीं हो सकता है.’ उन्होंने कहा कि मध्यस्थता संस्थानों, न्यायपालिकाएं तथा सरकार देश में मध्यस्थता ढांचे को मजबूत करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं.’
राष्ट्रपति मुखर्जी ने कहा कि मध्यस्थता न्यायपालिका का विकल्प है, लेकिन यह न्यायपालिका के सहयोग के बिना काम नहीं कर सकती. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बाजार अर्थव्यवस्था में सरकार का हस्तक्षेप उस स्थिति तक सीमित रहना चाहिए जबकि बाजार विफल हो रहा हो. यह वैसा परिदृश्य है जबकि बाजार खुद समाधान नहीं ढूंढ पा रहा है.
अदालतें मध्यस्थता निर्णयों में कुछ अधिक हस्तक्षेप करती हैं : ठाकुर
भारत के मुख्य न्यायाधीश टी एस ठाकुर ने इसी सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि यह अवधारणा गलत है कि भारतीय अदालतें मध्यस्थता निर्णयों में कुछ अधिक हस्तक्षेप करती हैं. उन्होंने कहा कि न्यायपालिकाओं के कुछ महत्वपूर्ण फैसलों की वजह से देश मध्यस्थता के अनुकूल गंतव्य के रूप में उभरने में सफल रहा है. बाल्को जैसे मामलों में आदेशों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि उद्देश्य सर्वश्रेष्ठ मध्यस्थता सुविधाएं, कम लागत, मध्यस्थता प्रक्रियाओं का तेजी से निपटान, सक्षमता और तटस्थता का होना चाहिए.
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कुछ हलकों में यह अवधारणा है कि भारत में मध्यस्थता फैसलों में अदालतों का हस्तक्षेप अन्य देशों की तुलना में अधिक है. ‘मैं इस मौके पर यह कहना चाहता हूं कि अब यह अवधारणा सही नहीं बैठेगी क्यांकि कुछ ऐतिहासिक मध्यस्थता फैसलों की वजह से भारत को आज मध्यस्थता के लिए अनुकूल गंतव्य के रूप में जाना जाने लगा है.’