55 साल से अपने देश जाने की जद्दोजहद कर रहा है चीनी सैनिक
भोपाल : भारत-चीन के बीच 1962 में हुई लडाई के दौरान भारत के खिलाफ लडने वाला एक सैनिक पिछले 55 वर्षों से अपने घर वापस जाने का प्रयास कर रहा है. 77 वर्षीय यह चीनी सैनिक फिलहाल मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले में रह रहा है, युद्ध के बाद वह यहीं रच-बस गया है. लेकिन अब […]
भोपाल : भारत-चीन के बीच 1962 में हुई लडाई के दौरान भारत के खिलाफ लडने वाला एक सैनिक पिछले 55 वर्षों से अपने घर वापस जाने का प्रयास कर रहा है. 77 वर्षीय यह चीनी सैनिक फिलहाल मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले में रह रहा है, युद्ध के बाद वह यहीं रच-बस गया है. लेकिन अब वह एकबार अपने देश वापस जाना चाहता है.
पूर्व चीनी सैनिक वांग क्यू उर्फ राजबहादुर अब अपने वतन (चीन) जाने के लिए भारत सरकार से गुहार लगा रहा है. हालांकि यह पूर्व चीनी सैनिक वर्ष 1969 से बालाघाट जिले के तिरोडी कस्बें मे बस गया है. लेकिन वह अपने उम्र की ढलते पडाव में अपने वतन और परिजनों से मिलने के लिए चीन जाने का इच्छुक है. इसके लिये वह वर्ष 1974 से प्रयास कर रहा है. लेकिन अभी तक उसकी यह इच्छा पूरी नहीं हो पाई है.
वांग के पुत्र विष्णु वांग (35) ने ‘ बताया कि चीन की सेना में सन 1960 में उसके पिता बतौर सैनिक शामिल हुए थे। सन 1962 में चीन की सेना ने भारत पर हमला कर दिया. युद्घ विराम की घोषणा होने के बाद कथित तौर पर रास्ता भटक कर वांग भारत की सीमा के इतने अंदर आ गया और उसकी सैन्य टुकडी बहुत पीछ रह गयी.विष्णु के अनुसार, उसके पिता को एक जनवरी 1963 को असम छावनी में गिरफ्तार किया गया। युद्घ के दौरान घायल हुए वांग का रेडक्रॉस के शिविर में उपचार हुआ और हालत में सुधार होने के बाद उसे सेना के हवाले कर दिया.
उन्होंने बताया कि भारत ने उसे चीनी जासूस समझा, उससे बार-बार पूछतज्ञछ हुई और अंतत: सात वर्ष कारावास की सजा के बाद उसे रिहा रि दिया गया। वर्ष 1963 से 1969 तक वह देश के तिब्बत में लाभा जिले में, पंजाब के चंडीगढ, दिल्ली छावनी और अजमेर सहित अन्य जेलों में सजा काटते रहा. वर्ष 1969 में चंडीगढ उच्च न्यायालय ने उसे रिहा किया. इसके बाद उसका पुनर्वास करते हुये मध्यप्रदेश के भोपाल और बाद में बालाघाट के तिरोडी कस्बे में भेजा गया.
विष्णु वांग ने कहा, ‘‘मेरे पिता चीन में शान्क्सी प्रांत में चानच्या क्षेत्र के शीशीयावान गांव के रहने वाले हैं, जो कि चीन के उत्तरी इलाके में स्थित है. यहां बालाघाट आने के बाद उन्होंने एक सेठ के यहां चौकीदार की नौकरी की और वर्ष 1975 में मेरी मां सुशीला से विवाह कर लिया। उनके दो बेटे और दो बेटियां हुई, इसमें बडे बेटे की उचित इलाज न हो पाने के कारण मौत हो गयी.’
उन्होंने बताया कि शादी के बाद भारत सरकार द्वारा पिता को दी जा रही 100 रुपये की मासिक पेंशन भी बंद कर दी गई है.’ वांग के पुत्र ने कहा कि मेरे पिता यहां काफी मुश्किलों मंे रहे तथा अपने वतन जाकर अपने लोगों से मिलना चाहते हैं इसलिये लिये उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से भी गुहार लगाई है.प्रधानमंत्री मोदी से गुहार लगाते हुये वांग ने उम्र के इस अंतिम पडाव में अपने वतन चीन में भाई बहन से मिलने जाने के लिये वीजा और पासपोर्ट बनाने के लिये गुहार लगाई है.वांग के पुत्र ने बताया कि वर्ष 2009 में पूर्व सैनिक के भारत में होने की जानकारी मिलने के बाद उसके परिजन दिल्ली आये और इनसे दिल्ली में मुलाकात की.
इसके बाद चीन सरकार ने वांग का पासफोर्ट बनाकर भारत भेजा है लेकिन भारत सरकार से अनुमति नहीं मिलने की वजह से वह अपने दो बडे और दो छोटे भाई तथा बहनों से मिलने चीन नहीं जा पा रहे है. इसी वजह से उनका पूरा परिवार व्यथित है.बालाघाट के पुलिस महानिरीक्षक जी जर्नादन ने कहा, ‘‘मुझे वांग के बारे में मालूम हुआ है.’ जिला पुलिस अधीक्षक ने कहा कि मामला विदेश मंत्रालय और चीन के दूतावास से संंबंधित है और वहां से वांग की मदद फिलहाल नहीं हो पा रही है.इस बीच बहुजन समाज पार्टी के बालाघाट जिले के लांजी क्षेत्र से पूर्व विधायक किशोर समरिते ने कहा कि वह विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मुलाकात करेगें तथा वांग को अपने वतन चीन की यात्रा हेतु मदद करे