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एसवाईएल मुद्दा: सीएम बादल ने कहा- हमें सिर्फ अपना अधिकार चाहिए

नयी दिल्ली : पंजाब सरकार को बड़ा झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सतलुज-यमुना संपर्क नहर (एसवाइएल) जल बंटवारा समझौते से बचने के उसके प्रयासों को गुरुवार को विफल कर दिया जिसके बाद से राजनीति जारी है. मामले को लेकर आज सूबे के मुख्‍यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने कहा कि हमें सिर्फ अपना अधिकार चाहिए. […]

नयी दिल्ली : पंजाब सरकार को बड़ा झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सतलुज-यमुना संपर्क नहर (एसवाइएल) जल बंटवारा समझौते से बचने के उसके प्रयासों को गुरुवार को विफल कर दिया जिसके बाद से राजनीति जारी है. मामले को लेकर आज सूबे के मुख्‍यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने कहा कि हमें सिर्फ अपना अधिकार चाहिए. हम दूसरों से कुछ नहीं मांगते हैं. उन्होंने कहा कि यह हमारे लिये कोई राजनीतिक मामला नहीं है. यह मामला आजीविका और आर्थव्यवस्था से जुड़ा है.

आपको बता दें कि गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पंजाब सरकार का पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट 2004 असंवैधानिक है. सतलुज-यमुना संपर्क नहर बनेगी. साथ ही शीर्ष अदालत ने अदालत के फैसलों को निष्प्रभावी करने और करीब तीन दशक पुराने एसवाइएल जल बंटवारे समझौते को एकपक्षीय तरीके से समाप्त करने के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह की तत्कालीन पंजाब सरकार द्वारा पारित कानून की संवैधानिक वैधता पर तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की ओर से सुप्रीम कोर्ट की राय के लिए उसे भेजे गये सभी चार प्रश्नों का उत्तर ‘नहीं’ में दिया.

जस्टिस एआर दवे की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि जब इस निष्कर्ष पर पहुंचा जाता है कि समझौते या वाद में शामिल पक्ष कोई राज्य एकपक्षीय तरीके से समझौते को निरस्त नहीं कर सकता या देश की सर्वोच्च अदालत के आदेश को निष्प्रभावी नहीं कर सकता. पंजाब राज्य शीर्ष अदालत के 15 जनवरी, 2002 के फैसले और आदेश तथा चार जनवरी, 2004 के आदेश के प्रति उसकी बाध्यता से खुद को अलग नहीं कर सकता. शीर्ष अदालत ने पहले 2002 में हरियाणा के वाद में आदेश जारी किया था कि पंजाब मामले में जल हिस्सेदारी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का सम्मान करे. पंजाब ने एक मूल मुकदमा दाखिल करके फैसले को चुनौती दी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2004 में खारिज कर दिया था और केंद्र से एसवाइएल नहर परियोजना के बाकी बुनियादी संरचना कार्य को अपने हाथ में लेने को कहा था.

संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस पीसी घोष, जस्टिस शिव कीर्ति सिंह, जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस अमिताभ राय भी शामिल हैं. संविधान पीठ ने मामले में अपने दो फैसलों का अनुपालन नहीं किये जाने पर एतराज जताते हुए कहा कि 31 दिसंबर, 1981 को पंजाब और हरियाणा के बीच जल समझौते को कानूनी मंजूरी दी गयी थी. इससे पहले 1966 में पंजाब से अलग राज्य हरियाणा बनाया गया था. शीर्ष अदालत के आदेश ने समझौते को कानूनी स्वीकृति पर सवाल खड़ा किया. पंजाब में 2004 में सत्तारूढ़ कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्ववाली कांग्रेस सरकार ने पंजाब समझौता निरस्तीकरण अधिनियम बनाया था, जिसका उद्देश्य 1981 के समझौते को रद्द करना और रावी तथा ब्यास नदियों के जल बंटवारे से संबधित अन्य सभी करारों को निरस्त करना था. इस मामले में हरियाणा सरकार ने न्यायालय की शरण ली, जिस पर शीर्ष अदालत ने यथास्थिति बनाये रखने का निर्देश दिया था.

अमरिंदर और कांग्रेस विधायकों का इस्तीफा

एसवाइएल के पानी की हिस्सेदारी के समझौते पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राज्य की जनता के साथ अन्याय होने का आरोप लगाते हुए पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह ने गुरुवार को अपनी लोकसभा सीट से और उनकी पार्टी के विधायकों ने सामूहिक रूप से राज्य विधानसभा से इस्तीफा दे दिया. अमरिंदर ने लोकसभा अध्यक्ष को अपना इस्तीफा भेज दिया. पार्टी विधायकों ने भी पंजाब विधानसभा के अध्यक्ष को अपने इस्तीफे भेजे दिये.

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