नयी दिल्ली : इस्लामिक प्रचारक डॉ जाकिर नाइक के संस्था पर सरकार ने पांच साल तक बैन लगा दिया है. आज कैबिनेट की हुई बैठक में इस पर फैसला लिया गया. जाकिर की संस्था पर गरकानूनी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप है. सरकार ने कुछ दिनों पहले नाइक पर शिकंजा कसते हुए उसके संगठन इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन पर विदेशी चंदा लेने से रोक लगा दिया था.
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जाकिर नाइक की संस्था पर 5 साल का बैन, तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लागू
नयी दिल्ली : इस्लामिक प्रचारक डॉ जाकिर नाइक के संस्था पर सरकार ने पांच साल तक बैन लगा दिया है. आज कैबिनेट की हुई बैठक में इस पर फैसला लिया गया. जाकिर की संस्था पर गरकानूनी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप है. सरकार ने कुछ दिनों पहले नाइक पर शिकंजा कसते हुए उसके संगठन […]
डॉ जाकिर नाइक की संस्था इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन उस समय फेरे में आ गयी थी जब बांग्लादेश में हुए आतंकी हमले में शामिल एक युवक ने डॉ जाकिर नाइक के भाषण से प्रेरित होने की बात कही थी. सूत्रों के अनुसार गृह मंत्रालय आतंक रोधी कानून के तहत नाइक की संस्था पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की तैयारी कर रही है.मुंबई में 18 अक्तूबर, 1965 को जन्मे जाकिर नाइक जाने-माने इसलामी धर्म प्रचारक है. सूट-बूट पहनकर और अंगरेजी में भाषण देकर उन्होंने अपनी एक अलग छवि बनायी है तथा दूसरे धर्मों से इसलाम की तुलना कर उसे सर्वश्रेष्ठ बता कर लगातार विवादों को भी आमंत्रित किया है.
– जानें नाइक को
* डॉक्टर से धार्मिक कार्यों की ओर
नाइक ने मुंबई के किशनचंद चेलाराम कॉलेज से पढ़ाई की है तथा उनके पास टोपीवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज एंड बीवाइएल नायर चैरिटेबल हॉस्पिटल से एमबीबीएस की डिग्री है. वर्ष 1987 में प्रसिद्ध लेखक और धर्म प्रचारक अहमद हुसैन दीदात से उनकी मुलाकात ने नाइक के जीवन की धारा को मेडिसिन से धार्मिक कार्यों की ओर मोड़ दिया. भारतीय मूल के दीदात दक्षिण अफ्रीका के निवासी थे और अपने जीवनकाल में उन्होंने अंगरेजी में अनगिनत भाषण दिये, अनेक किताबें भी लिखीं. उन्हीं की तर्ज पर जाकिर नाइक ने पश्चिमी परिधान और अंगरेजी को चुना. उन्होंने दूसरे धर्मों की मान्यताओं को इसलामी सिद्धांतों से तुलना कर इसलाम की श्रेष्ठता साबित करने का अंदाज भी दीदात से ही सीखा. दीदात ने नाइक को ‘दीदात प्लस’ की संज्ञा भी दी थी.
* धर्म में किसी भी सुधार का विरोधी
नाइक का कहना है कि उनकी कोशिश मुसलमानों और गैर-मुसलमानों में इसलाम की सही समझ को बढ़ावा देना है. पर्यवेक्षकों का मानना है कि नाइक इसलाम के सलाफी परंपरा, जिसे वहाबीवाद भी कहा जाता है, के प्रचारक हैं. इस परंपरा के संस्थापक मुहम्मद इब्न अब्द अल वहाब माने जाते हैं. यह इसलाम की शुचितावादी विचारधारा है, जो धर्म में किसी भी तरह के सुधार या बदलाव का विरोधी है.
* इसलामिक रिसर्च फाउंडेशन से शुरुआत
नाइक ने 1991 में इसलामिक रिसर्च फाउंडेशन नामक संस्था बनायी तथा धर्म प्रचार का संगठित काम शुरू किया. वे आधुनिक शिक्षा के साथ धार्मिक शिक्षा देने के लिए इसलामिक इंटरनेशनल स्कूल भी चलाते हैं, जिसे उनकी पत्नी फरहत नाइक संभालती हैं. उनकी पत्नी के जिम्मे फाउंडेशन की महिला इकाई का काम भी है. गरीब और वंचित मुसलिम युवाओं की आर्थिक मदद के लिए नाइक ने यूनाइटेड इसलामिक एड नामक संस्था भी बनायी है.
* इंटरनेशनल सेटेलाइट टेलीविजन चैनल
वर्ष 2006 में नाइक ने अपने विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए पीस टीवी नामक इंटरनेशनल सेटेलाइट टेलीविजन चैनल शुरू किया है जो दुबई से संचालित होता है. चैनल का दावा है कि इस अंगरेजी चैनल का प्रसारण 200 से अधिक देशों में होता है. 2009 में पीस टीवी के उर्दू संस्करण तथा 2011 में इसके बांग्ला संस्करण की शुरुआत हुई. जाकिर नाइक इन तीनों चैनलों के प्रमुख हैं. उनके फाउंडेशन की वेबसाइट पर नाइक को पीस टीवी नेटवर्क का मुख्य प्रेरक और विचारक बताया गया है. भारत सरकार ने 2012 में पीस टीवी के प्रसारण को प्रतिबंधित कर दिया था. हाल के वर्षों में विवादों के कारण महाराष्ट्र में उनकी सभाओं के आयोजन पर भी रोक लगायी गयी है.
* पीस टीवी की फंडिंग
अंगरेजी अखबार डीएनए की वेबसाइट पर छपी खबर के मुताबिक दुबई-स्थित पीस टीवी की फंडिंग ब्रिटेन की संस्था इसलामिक रिसर्च फाउंडेशन इंटरनेशनल के माध्यम से जुटायी गयी है. वर्ष 2008 और 2015 के बीच इस फाउंडेशन ने इस नेटवर्क में करीब नौ मिलियन ब्रिटिश पाउंड निवेशित किया. इस संस्था को मिले अधिकांश धन को नेटवर्क में ही लगाया गया था. वर्ष 2011 में लगभग चार मिलियन पाउंड नेटवर्क के बांग्ला चैनल में खर्च किया गया. ब्रिटिश अधिकारियों ने 2012 में फाउंडेशन को बंद करने की प्रक्रिया शुरू की थी, कुछ ही महीने बाद इस प्रक्रिया को बंद कर दिया गया और फाउंडेशन का काम जारी रहा.
ब्रिटेन और दुनिया में अन्यत्र इस नेटवर्क के प्रसारण में दो अन्य कंपनियों का इस्तेमाल होता है. इनमें एक संस्था बर्मिंघम स्थित लॉर्ड प्रोडक्शन हाउस है जिसकी स्थापना 2006 में हुई थी. दूसरी कंपनी का नाम यूनिवर्सल ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड है. डॉ जाकिर नाइक दोनों कंपनियों के निदेशक मंडल में हैं.
* सम्मान और पुरस्कार
वर्ष 2010 में अंगरेजी दैनिक ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की 100 सबसे ताकतवर भारतीयों की सूची में नाइक को 89वां स्थान दिया गया था. दुनिया के प्रभावशाली मुसलमानों की सूची जारी करनेवाली किताब ‘द 500 मोस्ट इंफ्लुएंशियल मुसलिम’ के 2009 के बाद से सभी संस्करणों में नाइक का उल्लेख किया गया है. दुबई के इंटरनेशनल होली कुरान अवार्ड ने 2013 में उन्हें ‘इसलामिक पर्सनालिटी ऑफ द इयर’ का खिताब दिया. यह सम्मान दुबई के उपशासक के हाथों दिया गया था.
उसी साल मलयेशिया के शासनाध्यक्ष ने उन्हें सम्मानित किया था. पिछले साल सऊदी राजा ने उन्हें प्रतिष्ठित ‘किंग फैसल इंटरनेशनल प्राइज फॉर सर्विस टू इसलाम’ से नवाजा है. यह पुरस्कार नाइक के आदर्श अहमद दीदात को भी मिल चुका है. इन पुरस्कारों के अलावा उन्हें शारजाह और गांबिया से भी सम्मान मिल चुके हैं.
* विवादित बोल के बाद कई देशों में घुसने पर पाबंदी
बी ते कई सालों से नाइक देश-विदेश में लगातार भाषण देते रहे हैं. कई आयोजनों को लेकर विदेशों में विवाद भी हुए तथा उन पर रोक भी लगायी गयी. वर्ष 2004 में ऑस्ट्रेलिया में दिये गये भाषण को लेकर बावेला मचा जिसमें उन्होंने कथित तौर पर अन्य धर्मों से इसलाम को बेहतर बताते हुए दावा किया था कि सिर्फ इसलाम ही सही मायनों में स्त्रियों को समानता प्रदान कर सकता है. ब्रिटेन के वेल्स में 2006 के उनके दौरे का विरोध स्थानीय सांसद ने किया था. उक्त सांसद ने नाइक को ‘घृणा फैलानेवाला’ बताया था. वेल्स के मुसलिम कौंसिल ने नाइक के बोलने और लोगों के उनको सुनने के अधिकार की बात की थी.
आखिर नाइक ने वहां भाषण दिया, पर उनकी अभिव्यक्ति संतुलित रही थी. जून, 2010 में ब्रिटेन और कनाडा ने उनके आगमन पर पाबंदी लगा दी. ब्रिटेन की गृह मंत्री थेरेसा मे ने उनके भाषणों के आधार पर कहा था कि उनका व्यवहार अस्वीकार्य है. इस फैसले को अदालत में चुनौती दी गयी थी, पर नाइक को वहां भी निराशा ही हाथ लगी. उसी साल कनाडा में बसे पाकिस्तानी मूल के मुसलिम नेता तारेक फतेह ने सांसदों के बीच अभियान चला कर नाइक पर पाबंदी लगवा दी थी. वर्ष 2012 में नाइक ने मलयेशिया में चार बड़ी सभाएं की और भाषण दिये. अगले साल उन्हें वहां के एक बड़े सम्मान से भी नवाजा गया था, लेकिन फिलहाल उनका नाम उन 16 मुसलिम विद्वानों में है, जिन्हें मलयेशिया में घुसने पर पाबंदी है. वहां उनके चैनल पीस टीवी पर भी प्रतिबंध है.
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