#demonetisation लेफ्ट को छोड़ सभी पार्टियों ने कहा – ”मेरा भारत बंद नहीं ”

नयी दिल्ली : नोटबंदी को लेकर बंद के समर्थन में सिर्फ लेफ्ट पार्टियां ही नजर आ रही है. वाममोर्चा के घटक दलों ने देश के विभिन्न इलाकों में ट्रेनों के परिचालन को रोक दिया है. वहीं छिटपुट प्रदर्शन की खबरें सामने आ रही हैं. नोटबंदी की घोषणा के बाद लोगों की परेशानी को देखते हुए […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 28, 2016 2:34 PM

नयी दिल्ली : नोटबंदी को लेकर बंद के समर्थन में सिर्फ लेफ्ट पार्टियां ही नजर आ रही है. वाममोर्चा के घटक दलों ने देश के विभिन्न इलाकों में ट्रेनों के परिचालन को रोक दिया है. वहीं छिटपुट प्रदर्शन की खबरें सामने आ रही हैं. नोटबंदी की घोषणा के बाद लोगों की परेशानी को देखते हुए विपक्षी पार्टियां गोलबंद हो चुकी थी. ऐसा समझा जा रहा था कि विपक्ष एकजुट होकर केंद्र सरकार का विरोध करेगी लेकिन बंद के समर्थन को लेकरअधिकतर विपक्षी पार्टियां बचती नजर आयी.

वाम पार्टियों ने आज 12 घंटे का बंद बुलाया है. केरल और बंगाल में इसका असर भी देखा जा रहा है. कांग्रेस ने बंद के सवाल पर कहा कि हम बंद का समर्थन नहीं करते हैं लेकिन भारत बंद तो प्रधानमंत्री के घोषणा के साथ ही हो गया है.कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि हम नहीं चाहते कि लोगों को परेशानी हो. इसलिए हमने नोटबंदी के विरोध में जनाक्रोश दिवस मनायेंगे. उन्होंने स्पष्ट किया कि कांग्रेस पार्टी सिर्फ विरोध प्रदर्शन करेगी. भारत बंद का समर्थन नहींकरेगी.

विपक्ष में असमंजस की स्थिति

विपक्ष नोटबंदी को लेकर अपनी स्थिति साफ नहीं कर रहा है. जदयू सरकार के फैसले के साथ खड़ा है. नीतीश कुमार कई बारइस मुद्दे परप्रधानमंत्री की तारीफ कर चुके हैं. ममता बनर्जी ने नोटबंदी का मुखर विरोध किया है. वाम पार्टियों ने भी तीखा विरोध दर्ज किया है. समाजवादी पार्टी ने कहा कि वह कालेधन पर एक्शन के खिलाफ नहीं है लेकिन इसके लागू करने के तरीके को लेकर सपा ने कड़ा विरोध दर्ज किया है. आम आदमी पार्टी ने नोटबंदी के फैसले को लेकर कड़ा विरोध किया लेकिन आज जब सभी पार्टियां देश भर में विरोध-प्रदर्शन कर रही है तो आम आदमी पार्टी ने इस मामले को लेकर अधिकारिक बयान जारी नहींकियाहै. विपक्षी पार्टियों में असमंजस की स्थिति इसलिए बन रही है क्योंकि वह जनता के मूड को भांप नहीं पा रहे हैं.

नोटबंदी के बाद आये कई सर्वे में बताया गया कि देश की आबादी का बड़ा हिस्सा सरकार के इस फैसले के साथ खड़ा है. विपक्षी पार्टियों को लग रहा है कि इस फैसले का विरोध करने पर कहीं उनका दांव उल्टा नहीं पड़ जाये क्योंकि जनता विमुद्रीकरण को कालेधन की लड़ाई में एक औजार के रूप में देख रही है. बढ़ती महंगाई से परेशान आम जनता को उम्मीद है कि इस फैसले के बाद उनके जीवन की दुश्वारियां कुछ कम होंगी.

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