डॉक्टरी छोड़ रंगकर्मी बन गये नवीन चंद्र ठाकुर

पेशे से होम्योपैथी डॉक्टर होते हुए भी अपने अंदर की जिजीविषा के बल पर रंगमंच की दुनिया में अपने अभिनय का लोहा मनवाने वाले एक सफल व मेहनतकश कलाकार हैं नवीन चंद्र ठाकुर, जिन्होंने अपने जीवन के उन मुश्किल घड़ी में भी अपने अंदर के कलाकार और रंगकर्मी को ऊंचाई प्रदान करने में कोई कसर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 16, 2013 1:40 PM

पेशे से होम्योपैथी डॉक्टर होते हुए भी अपने अंदर की जिजीविषा के बल पर रंगमंच की दुनिया में अपने अभिनय का लोहा मनवाने वाले एक सफल व मेहनतकश कलाकार हैं नवीन चंद्र ठाकुर, जिन्होंने अपने जीवन के उन मुश्किल घड़ी में भी अपने अंदर के कलाकार और रंगकर्मी को ऊंचाई प्रदान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

मां-पिता एवं भाइयों के पूरजोर विरोध के बावजूद नवीन ने रंगमंच और अभिनय का साथ एक पल के लिए भी नहीं छोड़ा और आज अपनी कला के बल पर लोगों के मन में अपने अभिनय की अमिट छाप छोड़ी है.

अनेकों झंझावातों के बावजूद आज नवीन का हौसला बुलंद है और जीवन में अनकों उतार-चढ़ाव को लांघते हुए वह सफल रंगकर्मी, निर्देशक, गीतकार, नाट्य लेखक, लेखक, मेकअप मैन, मंच संचालक एवं गायक की श्रेणी में स्थापित हैं.

नवीन का जन्म 6 अक्टूबर 1970 को गोड्डा जिले के एक छोटे से गांव के निम्नवर्गीय परिवार में हुआ था. इनके पिता बलदेव ठाकुर नाई का काम करते थे. काम की तलाश में वह सपरिवार दुमका आ गये. नवीन ने स्नातक तक की शिक्षा यहीं दुमका स्थित संतालपरगना महाविद्यालय से पूरी की. इसके पश्चात कोलकाता से इलेक्ट्रो होम्योपैथ का डिप्लोमा भी किया. इस बीच इनका रुझान अभिनय के क्षेत्र में रहा.

वह जी-जान से अभिनय करते रहे. नवीन जब आठ वर्ष के थे, तभी से उनका कला के प्रति झुकाव हुआ. नवीन ने तय कर लिया कि रंगमंच ही उनका मुख्य लक्ष्य होगा. अपने गुरु अलाउद्दीन चिराग को प्रेरणा स्नेत मानने वाले नवीन के जीवन में कला और अभिनय का अलख जगाने वाले वह पहले शख्स थे, जिन्हें स्मरण करके नवीन की आंखें नम हो जाती हैं.

नवीन ने मुंबई स्थित पैनोरमा आर्ट थियेटर के निर्देशक राधा कृष्ण दत्ता एवं रूपल पटेल जैसी नामी हस्तियों के सानिध्य में रहकर नाट्य अभिनय व निर्देशन कला का प्रशिक्षण प्राप्त किया है. रूपल पटेल टेलीविजन की प्रख्यात अभिनेत्री हैं, जो स्टार-प्लस चैनल में प्रसारित ‘‘साथ निभाना साथिया’’ में ‘कोकिला बेन’ की भूमिका बखूबी निभा रही हैं. उन्होंने अल्टरनेटिव थियेटर (कोलकाता) के निर्देशक प्रवीर गुहा एवं रांची के संजय लाल से भी अभिनय के गुर सीखे हैं.

अबतक नवीन हिंदी, भोजपुरी, खोरठा, बंगला, एवं संताली भाषा में लगभग 3500 नाटकों में अभिनय और निर्देशन कर चुके हैं. संताली नाटक ‘मार्शाल’ में उन्होंने जबरदस्त अभिनय किया था.

विश्व कवि रवींद्रनाथ टैगोर की अमर बंगला कृति ‘‘छात्रेर पोरिखा’’ व ‘‘रूगीर बोन्धु’’ नामक नाटक के सफलतापूर्वक निर्देशन का श्रेय नवीन को जाता है. इसके अलावा इन्होंने चमकू, खुट्टा प्रसाद का ट्रायल, सूर्योदय, भारत दर्पण, शिकागो की एक झलक, सच्चा धर्म, हम सब एक हैं, विडंबना, कनुवा नाई, पागल कौन, जीवन की सच्चाई, आजाद भारत और गुलाम आत्मा, दहेज तेजाब है, कटे हाथ इत्यादि अनगिनत नाटकों में अपनी अदाकारी एवं निर्देशन से दर्शकों का मन मोहा है.

आज नवीन डॉक्टरी प्रैक्टिस छोड़ चुके हैं. अब रंगमंच ही उनकी दुनिया है. उनका मुख्य पेशा अभिनय, निर्देशन एवं गायन बन चुका है. राज्य एवं केंद्र सरकार द्वारा चलाये जाने वाले विभिन्न जागरूकता अभियान यथा-‘एड्स नियंत्रण’, ‘मलेरिया नियंत्रण’, ‘छोटा परिवार-सुखी परिवार’, ‘स्वच्छता अभियान’, ‘मतदाता जागरूकता अभियान’, ‘नशा उन्मूलन अभियान’, ‘सर्व शिक्षा अभियान’, ‘बाल श्रमिक उन्मूलन अभियान’ एवं निगरानी विभाग द्वारा चलाये जाने वाले जागरूकता अभियान के तहत आयोजित नुक्कड़-नाटकों में अभिनय एवं निर्देशन इनका मुख्य पेशा बन गया है.

इनकी संस्था ‘शैली सृजन’ के तत्वाधान में इन्होंने कई बड़ी कंपनियों के लिए जागरूकता नाटकों में सफल निर्देशन एवं अभिनय किया है, जिन्हें दूरदर्शन द्वारा बराबर प्रसारित किया जाता रहा है.

नवीन ने कई सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं में बतौर प्रशिक्षक देश के कोने-कोने में कला और अभिनय का प्रशिक्षण देने हेतु सम्मिलित हुए हैं. इन्होंने ‘कठपुतली’ के माध्यम से भी शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी समस्याओं को इतनी आसानी से नाटक बनाकर इस अभियान में लगे लोगों को प्रशिक्षित किया कि लोग इनकी कला के दीवाने हो गये.

नवीन ने अपने निर्देशन में कई ऑडियो एवं वीडियो एलबम भी बनाये हैं, जिसमें इनके सफल अभिनय, गायन एवं निर्देशन की झलक दिखती है. नवीन जल्द ही एक भोजपुरी फिल्म में बतौर मुख्य सहायक कलाकार के रूप में दर्शकों के समक्ष होंगे.
।। कैलाश केसरी ।।

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