ममता बनर्जी के हुंकार में है कितना दम, क्या बंगाल के बाहर जड़े जमा पायेगी तृणमूल
नोटबंदी के बाद से देश में विपक्षी पार्टियों की सक्रियता एक बार फिर बढ़ गयी है. कांग्रेस जहां दबी जुबान से केंद्र सरकार के इस फैसले का विरोध से कर रही है वहीं ममता बनर्जी ने नोटबंदी को लेकर तीखा विरोध किया है. ममता का विरोध सिर्फ कोलकाता तक सीमित नहीं रहा है. उन्होंने नोटबंदी […]
नोटबंदी के बाद से देश में विपक्षी पार्टियों की सक्रियता एक बार फिर बढ़ गयी है. कांग्रेस जहां दबी जुबान से केंद्र सरकार के इस फैसले का विरोध से कर रही है वहीं ममता बनर्जी ने नोटबंदी को लेकर तीखा विरोध किया है. ममता का विरोध सिर्फ कोलकाता तक सीमित नहीं रहा है. उन्होंने नोटबंदी को लेकर अपना विरोध लखनऊ और दिल्ली में भी दर्ज किया. नोटबंदी के अपने विरोध प्रदर्शनों में ममता ने हिॆदी में लोगों को संबोधित किया. आज उनका लखनऊ में प्रदर्शन है. आमतौर पर अंग्रेजी व बांग्ला में ट्वीट करने वाली ममता ने नोटबंदी मामले को लेकर हिंदी में भी ट्वीट की . उनके अचानक से उमड़े हिंदी प्रेम के क्या मायने हो सकते हैं. क्या उनकी नजर अब राष्ट्रीय राजनीति पर है ?
इस देश की महिलाएं आपको मुंहतोड़ जबाब देंगी। वे भारत की माता है। वे सब की माँ है, आज के प्रधान मंत्रीजी ६/६
— Mamata Banerjee (@MamataOfficial) November 27, 2016
कल तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने अपने भाषण में कहा कि ‘मैं प्रतिज्ञा लेती हूं कि नरेंद्र मोदी को भारतीय राजनीति से बेदखल करके रहूंगी या फिर मर जाऊंगी’. बेहद तल्ख अंदाज में कही गयी यह बात से ममता बनर्जी की भविष्य की राजनीति का अनुमान लगाया जा सकता है. दरअसल ममता बनर्जी अब अपनी राजनीतिक गतिविधि बंगाल तक सीमित रखना नहीं चाहती हैं. वह बंगाल में दूसरी बार भारी मतों से जीत कर आयी हैं. लिहाजा उनके हौसले बुलंद हैं. अब उनकी निगाहें पूर्वोतर व हिंदी पट्टी के राज्यों में हैं. पिछले दिनों त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में भी तृणमूल कांग्रेस ने बढ़-चढ़कर भूमिका निभायी. ममता तृणमूल का जनाधार बंगाल से बाहर अन्य राज्यों में भी बढ़ाना चाहती हैं.
राष्ट्रीय राजनीति में ममता के लिए क्या है चुनौतियां
ममता भले ही बंगाल की लोकप्रिय नेता हैं लेकिन राष्ट्रीय राजनीतिकी राह उतनी आसान नहीं है. गुजरात में बतौर मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने अपने अंतिम विधानसभा चुनावी जीत के बाद लोगों को हिंदी में संबोधित किया था. क्योंकि वो भली -भांति जानते थे कि अब उनकी नजर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है. नरेंद्र मोदी के पास संगठन का आभाव नहीं था. भाजपा की उपस्थिति देश के लगभग हर राज्य में है. भाजपा के अलावा मोदी पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संगठन का भी हाथ है. ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस संगठन के रूप में अभी उतनी मजबूत नहीं कि वो मोदी को टक्कर दे दे.