13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

ममता बनर्जी की तल्ख राजनीति के क्या निकले नतीजे?

कोलकाता : पश्चिम बंगाल में टोल प्लाजों पर सेना की तैनाती के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बदले तेवर ने भारतीय राजनीति में उबाल तो ला दिया, लेकिन इसका निहितार्थ अभी तक लोगों की समझ से परे है. बंगाल में सेना की तैनाती के पहले उन्होंने नोटबंदी के मामले में केंद्र सरकार खिलाफ वामदलों के […]

कोलकाता : पश्चिम बंगाल में टोल प्लाजों पर सेना की तैनाती के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बदले तेवर ने भारतीय राजनीति में उबाल तो ला दिया, लेकिन इसका निहितार्थ अभी तक लोगों की समझ से परे है. बंगाल में सेना की तैनाती के पहले उन्होंने नोटबंदी के मामले में केंद्र सरकार खिलाफ वामदलों के भारत बंद में कदमताल मिलाते हुए 28 नवंबर को जोरदार प्रदर्शन किया. बात यहां पर भी बनती नहीं दिखी, तो उन्होंने नोटबंदी के विरोध में तीसरे मोर्चे के घटक दलों के शासित राज्यों में धरना देकर अदृश्य राजनीतिक लाभ कमाने का प्रयास किया.

इसके लिए उन्होंने पहले मुलायम सिंह यादव की पार्टी सपा शासित राज्य उत्तर प्रदेश में बीते 29 नवंबर को धरना दिया. उसके ठीक एक दिन बाद उन्होंने 30 नवंबर को बिहार की राजधानी पटना में धरने के दौरान रैली को संबोधित किया. यहां तक तो उनके लिहाज से मामला सब ठीक चल रहा था, लेकिन मामला बिगड़ा पटना से रैली को संबोधित कर कोलकाता लौटने के दौरान. जिस हवाई जहाज से वह पटना से कोलकाता जा रही थीं, उसका ईंधन आकाश में ही खत्म हो गया. इंडिगो के इस फ्लाइट की लैंडिंग तो सामान्य तरीके से ही होनी थी, लेकिन एयर ट्रैफिक काफी होने की वजह से वह काफी देर तक आकाश में ही रहा. इस घटना के बाद से ही ममता के राजनीतिक तल्खियत बढ़ गयी. इस घटना के बाद उन्होंने अपनी जान का खतरा भी बताया. मामला संसद तक पहुंच गया.

अभी यह मामला शांत भी नहीं हुआ कि वह एक दिसंबर को पश्चिम बंगाल में टोल प्लाजाओं पर सेना के जवानों की तैनाती का मामला छेड़ दिया और इसके बहाने केंद्र पर निशाना साधना शुरू कर दिया. इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि सेना, केंद्र और राज्य सरकार की तनातनी बढ़ गयी. ममता ने केंद्र पर अप्रत्यक्ष तौर पर राष्ट्रपति शासन लगाने का आरोप लगाया. हठ दिखाते हुए उन्होंने अपने दफ्तर में ही कैंप कर लिया और लगातार 30 घंटे तक सचिवालय में ही रुकी रहीं.

तीन दिसंबर यानी शुक्रवार को एक तरफ वह सचिवालय में बैठी रहीं, तो दूसरी तरफ उनके तल्ख राजनीतिक बयानों और परोक्ष धरने को लेकर संसद में हंगामा मचता रहा. उधर, 72 घंटे में जब सेना के जवानों ने राज्य के टोल नाकाओं से आंकड़े इकट्ठे कर लिये, तो उनकी तैनाती हटा दी गयी. इस मामले में सेना अधिकारी, रक्षा मंत्री और ममता के बीच तनातनी बढ़ गयी. अंतत: लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस के नेताओं द्वारा जब बंगाल के टोल नाकाओं पर सेना की तैनाती का सवाल उठाया गया, तो रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को सफाई में यह बताना पड़ा कि बंगाल में सेना की तैनाती सामान्य अभ्यास का एक हिस्सा है. मामला तब शांत हुआ, जब टोल नाकाओं से सेना को हटाया गया. इस पूरे एक सप्ताह के घटनाक्रम में अभी तक यह उभरकर सामने नहीं आ पाया कि आखिर ममता ने केंद्र के खिलाफ जो मुहिम छेड़ी, उसका आशय क्या था. जिसनोटबंदी को लेकर उन्होंने अभियान की शुरुआत की, उसका अंत सेना की तैनातीपरसवाल खड़ा कर हुआ.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें