पन्नीरसेल्वम नये सीएम, देर रात शपथ
पिछले 75 दिनों से चेन्नई के अपोलो अस्पताल में भरती तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता (68) नहीं रहीं. जनता के बीच लोकप्रिय और दक्षिण भारत की राजनीति में मजबूत पैठ रखने वालीं जयललिता के निधन के साथ ही तमिलनाडु के लोगों के सिर से ‘अम्मा’ का आंचल उठ गया.
चेन्नई: जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करते हुए आखिरकार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री व एआइडीएमके प्रमुख जे जयललिता ने सोमवार की रात दम तोड़ दिया. उन्होंने रात 11:30 बजे अंतिम सांस ली और उसके बाद उनका लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटा लिया गया. वह गत 22 सितंबर से अपोलो अस्पताल में भरती थीं. रविवार की शाम गंभीर दिल का दौरा पड़ा था. उनकी मृत्यु की घोषणा के ठीक पहले पार्टी मुख्यालय पर अन्नाद्रमुक विधायकों की जयललिता के उत्तराधिकारी को चुनने के लिए बैठक चल रही थी. जयललिता के वफादार ओ पन्नीरसेल्वम उनकी जगह लेंगे. जयललिता के निधन के बाद छह दिसंबर से तमिलनाडु में सात दिनों का राजकीय शोक की घोषणा की गयी है. राज्य के शिक्षण संस्थानों में तीन दिनों की छुट्टी रहेगी. पार्थिव शरीर को राजाजी हॉल में रखा जायेगा, जहां लोग अंतिम दर्शन करेंगे.
इससे पहले शाम में जयललिता के निधन की अटकलें चली थीं, जिसे अपोलो अस्पताल ने तुरंत खारिज कर दिया था. तमिल चैनलों ने जयललिता के निधन की खबर दी थी. जयललिता की सेहत को लेकर अटकलों को सोमवार की शाम तब बढ़ावा मिला, जब पार्टी मुख्यालय में झंडा आधा झुका दिया गया. हालांकि कुछ मिनटों बाद झंडे को फिर से ऊपर कर दिया गया. लेकिन अफवाह तब सही साबित हुई, जब अपोलो अस्पताल ने देर रात एक बयान में कहा, अवर्णननीय दुख के साथ हम अपनी प्रतिष्ठित सम्मानीय तमिलनाडु की मुख्यमंत्री पुरात्ची थालाइवी अम्मा के दुखद निधन की घोषणा करते हैं. हमारी सम्मानित मुख्यमंत्री को 22 सितंबर को बुखार और निर्जलीकरण की शिकायतों के साथ अस्पताल में भरती कराया गया था.
उन पर क्रिटिकल केयर यूनिट में मल्टी डिसिप्लिनरी केयर का असर हुआ और वह काफी हद तक ऊबर गयीं थीं. दुर्भाग्य से मुख्यमंत्री को चार दिसंबर की शाम को गंभीर दिल का दौरा पड़ा, जब उनके कमरे में इंटेसिविस्ट थे. हमारे सर्वश्रेष्ठ प्रयासों के बावजूद मुख्यमंत्री की स्थिति ने उन्हें उबरने से अक्षम बना दिया.
जयललिता राज्य की एक लोकप्रिय नेता थीं, जिन्होंने अपने लोकलुभावन कार्यक्रमों से गरीबों का दिल जीता और पिछले तीन दशक से प्रदेश की राजनीति में एक ध्रुव थीं. छह महीने से अधिक समय पहले ही राज्य विधानसभा के चुनाव में अन्नाद्रमुक को ऐतिहासिक जीत दिलानेवाली जयललिता गत 22 सितंबर को बुखार और निर्जलीकरण की शिकायत के बाद अपोलो अस्पताल में भरती करायी गयी थीं , लेकिन वह उससे कभी उबर नहीं पायीं. पिछले तीन दशक में यह पहला मौका था जब किसी मुख्यमंत्री को लगातार दूसरी बार जीत मिली थी.
अभिनेत्री से नेता बनीं जयललिता 1980 के दशक की शुरुआत में अन्नाद्रमुक की प्रचार सचिव नियुक्त हुईं और एमजीआर सरकार में उन्हें अपराह्न भोजन योजना का प्रभारी बनाया गया. उन्होंने बाद में अपने मार्गदर्शक दिवंगत एमजीआर की विरासत को संभाला. ब्राह्मण परिवार में जन्मीं जयललिता राज्य की कद्दावर नेता के तौर पर उभरीं, जहां सामाजिक न्याय की शक्तियों ने स्वतंत्रता से भी पहले ब्राह्मण विरोधी आंदोलन शुरू किया था. उन्होंने राजनीति अपनी शर्तों पर की और पिछले तकरीबन 30 वर्षों से प्रदेश की राजनीति के दो ध्रुवों में से एक थीं और एम करुणानिधि नीत द्रमुक से मोरचा लेती रहीं. जयललिता तमिलनाडु की पांच बार मुख्यमंत्री बनीं और डीएमके पार्टी का राज्य में विकल्प बनीं.
2014 में, आय से अधिक संपत्ति के मामले में उन्हें अदालत द्वारा दोषी करार दिया गया. इस केस का ट्रायल पड़ोसी राज्य कर्नाटक में चला था . नौ माह बाद कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया. इसके बाद उन्होंने फिर से राज्य के मुख्यमंत्री का पद संभाल लिया था.
मची अफरातफरी
जयललिता के निधन की खबर मिलते ही उनके समर्थकों समेत पूरे में शोक की लहर दौड़ गयी है. उनके चाहने वालों के आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहा है. अस्पताल के बाहर अम्मा के समर्थकों ने रोना-धोना शुरू कर दिया है. वैसे रविवार शाम से ही अस्पताल के बाहर हजारों की भीड़ जमी हुई थी. तमिलनाडु के लोग उन्हें प्यार से अम्मा बुलाते थे. लोग अपने साथ अम्मा का फोटो लिये हुए थे.
राज्य में कानून-व्यवस्था बनाये रखने के लिए अस्पताल के बाहर 200 से ज्यादा पुलिसकर्मियों को तैनाती कर दी गयी है. सभी जिलों को अलर्ट पर रखा गया है. अन्य राज्यों की सीमा सील कर दी गयी है. चेन्नई समेत राज्य के दूसरे हिस्सों में अर्धसैनिक बलों को अलर्ट रहने का आदेश दिया गया है. गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी राज्यपाल से बात कर पूरे हालात की जानकारी ली. सरकार ने जनता से शांति कायम रखने की अपील की है.
नीतीश कुमार दुखी, बिहार में आज राजकीय शोक
पटना. जयललिता के निधन पर बिहार एक दिन का राजकीय शोक घोषित किया गया है. सीएम नीतीश कुमार ने सोमवार की रात 12:19 बजे ट्वीट कर उनके निधन पर अपनी संवेदना प्रकट की. उन्होंने लिखा, तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता जी का निधन दुखद. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दें. बिहार में एक दिन का राजकीय शोक घोषित.
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री ने जताया शोक
जयललिता के दुखद निधन पर तहेदिल से शोक प्रकट करता हूं, राष्ट्र ने एक हस्ती को खो दिया है जिससे लाखों लोग प्रेम करते थे और उनकी प्रशंसा करते थे.
प्रणब मुखर्जी, राष्ट्रपति
जयललिता के निधन से काफी दुख हुआ, उनके निधन से भारतीय राजनीति में भारी रिक्ति पैदा हुई है. मैं उन अनन्त मौकों को हमेशा संजो कर रखूंगा, जब मुझे जयललिता जी के साथ बातचीत का मौका मिला. भगवान उनकी आत्मा को शांति दे. उन्होंने जो कल्याणकारी कार्य किये, उसे याद रखा जायेगा.
नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
आज दिन भर
दोपहर 12 बजे : अपोलो अस्पताल ने कहा, जयललिता की हाल नाजुक, एम्स के डॉक्टर इलाज कर रहे
शाम 4:55 बजे : अस्पताल ने फिर कहा, लाख कोशिशों के बावजूद जया ‘गंभीर स्थिति’ में
5:35 बजे : हॉस्पिटल के बाहर जया समर्थकों की बेचैनी बढ़ी, पुलिस को करना पड़ा लाठीचार्ज
5:40 बजे : पार्टी मुख्यालय में झंडा झुकाया गया.
6:10 बजे : अपोलो हॉस्पिटल ने प्रेस रिलीज जारी कर कहा- जयललिता अभी भी लाइफ सपॉर्ट सिस्टम पर.
6:15 बजे : पार्टी मुख्यालय का झंडा सीधा किया गया.
6:25 बजे : वेंकैया नायडू अपोलो हॉस्पिटल पहुंचे.
9:46 बजे : जयललिता अभी भी लाइफ सपॉर्ट सिस्टम पर: अपोलो हॉस्पिटल
11:05 बजे : पन्नीरसेल्वम हॉस्पिटल से बाहर निकले.
11:30 बजे : जयललिता के निधन की पुष्टि
राज्यपाल ने 15 मंत्रियों को भी दिलायी शपथ
चेन्नई. जयललिता के निधन की आधिकारिक पुष्टि किये जाने के थोड़ी देर बाद अन्नाद्रमुक विधायक दल की बैठक हुई, जिसमें कैबिनेट मंत्री ओपी पनीरसेल्वम को नया नेता और पार्टी का महासचिव चुना गया. उन्होंने 15 मंत्रियों के साथ 19वें सीएम के रूप में शपथ ली. वित्त मंत्री पन्नीरसेल्वम पिछले 75 दिनों से कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में कामकाज देख रहे थे. इसके पहले सोमवार को दिन में भी अपोलो अस्पताल में ही विधायकों को बुलाया गया और उनसे पनीरसेल्वम के प्रति समर्थन के लिए हस्ताक्षर कराये गये. पहले भी जयललिता ने अपनी गैरमौजूदगी के दौरान भरोसा जताते हुए उन्हें दो बार मुख्यमंत्री बनाया था. 2014 में वह तब मुख्यमंत्री बने थे, जब जयललिता को भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार किया गया था. हालांकि बाद में वह बरी हो गयीं. इस बार भी जयललिता की अस्पताल में मौजूदगी के दौरान जयललिता के आठ विभागों का प्रभार पन्नीरसेल्वम को दिया गया. पनीरसेल्वम जयललिता के प्रति वफादारी दिखाते रहे हैं. मुख्यमंत्री बनने के बाद जयललिता को दंडवत प्रणाम करने की तसवीरें सुर्खियां बटोरती रही हैं. वह जयललिता की तस्वीर को सामने रखकर कैबिनेट मीटिंग की अध्यक्षता करते रहे थे. जयललिता की भी इच्छा थी कि उनका उत्तराधिकारी ऐसा शख्स हो जिसमें लोगों को अपनी ओर खींचने की क्षमता व मजबूत नेतृत्व हो.
फिल्म से राजनीति में आयीं संघर्ष के बल पर छा गयीं
जयललिता को राजनीति विरासत में नहीं मिली थी. उन्होंने पहले फिल्मों में अपनी जगह बनायी और फिर राजनीति में अपनी मेहनत व मेधा का लोहा मनवाया. तमिलनाडु में सबसे कम उम्र की मुख्यमंत्री का खिताब उनके नाम है. विवादों में घिरीं, लेकिन हर चक्रव्यूह को तोड़ने का माद्दा उनमें था. विरोधियों की हर चाल को वह नाकाम करती रहीं. जया लंबे समय तक लोगों को याद आती रहेंगी.
नेशनल कंटेंट सेल
जयललिता के घर का नाम कोमलवल्ली था. उनका जन्म 24 फरवरी, 1948 को मैसूर में मांडया जिले के पांडवपुरा तालुक के मेलुरकोट गाव में वेदावल्ली और जयराम के घर हुआ था. उनके परिवार का संबंध मैसूर के राजसी खानदान से था. उनके दादाजी मैसूर दरबार में शाही चिकित्सक थे और उन्होंने अपने परिजनों के नाम के प्रारंभ में ‘जय’ शब्द लगाना प्रचलित किया था, ताकि लोगों को यह ज्ञात हो कि उनका सामाजिक संबंध मैसूर के राजा जयचमारराजेंद्र वोडेयार से है. जयललिता जब मात्र दो वर्ष की थीं, तब उनके पिता का देहांत हो गया. इसके बाद वे अपनी माता और नाना-नानी के साथ रहने बेंगलुरु आ गयी थीं.
बचपन से मेधावी
बेंगलुरु में जयललिता की अपनी प्रारंभिक शिक्षा चर्च पार्क कॉन्वेंट स्कूल में हुई. कुछ साल तक बिशप कॉटन गर्ल्स स्कूल में पढ़ाई की और फिर उनकी माता जी फिल्मों में नसीब आजमाने चेन्नई चली गयी थी. आगे की पढ़ाई उन्होंने चेन्नई के चर्च पार्क प्रेजेंटेशन कान्वेंट और स्टेला मारिस कॉलेज से प्राप्त की. बचपन से ही जयललिता तेजस्वी छात्रा थीं. वे कानून की पढ़ाई करना चाहती थी लेकिन नसीब में कुछ और ही लिखा था.
15 साल में सफल अभिनेत्री
अपनी मां के कहने पर जयललिता ने फिल्मों का रूख किया था. उनकी पहली फिल्म एक अंग्रेजी फिल्म ‘एपिसल’ थी. महज 15 साल की आयु में जयललिता ने अपने आप को प्रमुख अभिनेत्री के रूप में स्थापित कर लिया था. उन्होंने तमिल सिनेमा के मशहूर निर्देशक श्रीधर की फिल्म ‘वेन्नीरादई’ से अपना करियर शुरू किया था. शिवाजी गणेशन के साथ आयी उनकी फिल्म पट्टिकाडा पट्टनामा में अभिनय के लिए उन्हें नेशनल अवार्ड और फिल्म फेयर दोनों मिला था. जयललिता ने कई फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाया था. जयललिता उस दौर की पहली ऐसी अभिनेत्री थीं जिन्होंने स्कर्ट पहन कर भूमिका की थी. यह उस दौर में बड़ी बात थी. उन्होंने शुरुआती दौर में फिल्में बॉलीवुड अभिनेत्री रेखा के पिता शिवाजी गणेशन और एमजी रामचंद्रन के साथ की थीं. इसके बाद एमजी रामचंद्रन के साथ उन्होंने दो दशक तक तमिल सिनेमा में काम किया था. 1965 से 1972 के दौर में एमजी रामचंद्रन के साथ मिल कर जयललिता ने कई हिट फिल्में दी थीं. फिल्मी कामयाबी के दौर में उन्होंने 300 से ज्यादा तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और हिंदी फिल्मों में काम किया.
प्लेबैक सिंगिंग भी की
जयललिता कामयाब अभिनेत्री ही नहीं बल्कि कामयाब प्ले बैक सिंगर भी थीं. उन्होंने दक्षिण की अनेक फिल्मों में बहुत से गीतों को अपनी आवाज दी. इतना ही नहीं उन्होंने कई नॉन फिल्मी एल्बम्स में भी आवाज दी और डिवोशनल गीत रिकॉर्ड किया था. सुर्यकांति और वीरम सहित उन्होंने करीब दस फिल्मों में प्ले बैक सिंगिंग भी की थी. जयललिता के जीवन पर आधारित फिल्म भी बनी है. फिल्म इरुवर उनके जीवन पर आधारित है. इसमें उसमें ऐश्वर्या रॉय बच्चन ने उनका किरदार निभाया था.
जयललिता जयरामन
जन्म: 24 फरवरी 1948
जन्म स्थान : मैसूर में मांडया जिले के पांडवपुरा तालुक के मेलुरकोट गाव में
माता-पिता : वेदावती और जयराम वेदवल्ली
शिक्षा : प्रारंभिक शिक्षा चर्च पार्क कॉन्वेंट स्कूल और बिशप कॉटन गर्ल्स स्कूल में. उच्च शिक्षा चेन्नई के चर्च पार्क प्रेजेंटेशन कान्वेंट और स्टेला मारिस कॉलेज से.
फिल्मों में अभिनय : 15 साल की आयु में प्रमुख अभिनेत्री के रूप में खुद को स्थापित किया. श्रीधर की फिल्म ‘वेन्नीरादई’ से करियर शुरू. 300 से ज्यादा तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और हिंदी फिल्मों में काम.
राजनीति
1982 में जयललिता ने एआइएडीएमके ज्वायन किया.
1983 में उन्हें पार्टी का प्रोपोगेंडा सेक्रेटरी बनाया गया.
1984 से 1989 तक वे तमिलनाडु से राज्यसभा की सदस्य रहीं.
1991 में तमिलनाडु की सबसे कम उम्र की सीएम बनीं. 12 मई 1996 तक रहीं.
2001 में फिर सीएम बनीं, लेकिन 2002 में पद छोड़ना पड़ा.
16 मई, 2011 को फिर सीएम बनीं.
छवि पर दाग
भारत की सबसे मजबूत और ताकतवर राजनीतिक शख्सियतों में से एक जयललिता का विवादों से भी गहरा नाता था. बावजूद इसके उनके समर्थक उनको देवी मानते थे. ऐसे ही कुछ विवादों पर नजर डालते हैं जिसने अम्मा को पूरे देश में विवादित कर दिया
विवादों में भी रहीं
1 जूते और साड़ियां : भ्रष्टाचार से जुड़े मामले में 1996 में जब उनके घर पुलिस ने छापा मारा तो पुलिस को वहां से 10 हजार से ज्यादा साड़ियां और 750 जोड़ी जूते मिले थे. इस खबर से पूरे देश में सनसनी मच गयी थी.
2 टीवी घोटाला : 1996 में ही जयललिता पर कलर टीवी की खरीदी में भ्रष्टाचार करने का आरोप लगा था. टीवी एक योजना के तहत गरीबों को देने के लिए आये थे. लेकिन जयललिता पर आरोप लगे थे कि उन्होंने महंगे दाम पर टीवी खरीदे. इससे कमाई का एक हिस्सा उन्हें भी मिला.
3 दत्तक पुत्र की शादी : जयललिता 1995 में ही विवादों में थी. उस समय उन्होंने जिस तरह अपने दत्तक पुत्र सुधाकरन की शादी की थी उससे अंतरराष्ट्रीय मीडिया भी आश्चर्यचकित थी.
4 हत्या के प्रयास का आरोप : 1998 में एआइएडीएमके प्रमुख पर उनके ही पूर्व अकाउंटेट राजशेखरन ने आरोप लगाया था कि जयललिता और शशिकला ने उन्हें अपने निवास पोएस गार्डन बुलाकर पिटवाया और जान से मारने की धमकी दी.
5 तमिलनाडु कोयला घोटाला : 1997 में जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष की शिकायत पर जयललिता के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गयी थी. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने जयललिता पर आरोप लगाये थे कि उनके कार्यकाल में बिजली बोर्ड के लिए सात अरब रुपये के कोयला आयात में अनियमितता की गयी.
6 तानसी जमीन घोटाला : 1998 में जयललिता और उनकी सहेली शशिकला और अन्य कई लोगों पर तानसी जमीन घोटाले का आरोप लगा था. इस मामले में जयललिता को दो साल के लिए जेल भी जाना पड़ा और 2001 में उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था.
7 सत्ता का दुरुपयोग : 27 सितंबर 2014 को तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता को 1991 से 96 तक अपने पद का दुरुपयोग करने का दोषी पाया गया और उन्हें मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ा था. उन्हें 66.65 करोड़ की राशि अवैध रूप से हासिल करने को दोषी पाया था. बाद में कर्नाटक हाइ कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया और उन्हें सत्ता वापस मिल गयी.
क्यों भगवान मानती है जनता
जयललिता को जनता भगवान की तरह पूजती है. 2014 में जब जयललिता को जेल भेजा गया तो उनके कई समर्थकों ने आत्महत्या कर ली थी. दरअसल में जयललिता की लोकप्रियता इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि उनकी योजनाएं सीधे जनता से जुड़ती हैं. उनकी योजनाएं गरीबों के हित में हैं. और खास बात ये है कि जयललिता की योजनाओं को अम्मा ब्रांड कहा जाता है. नजर डालते हैं अम्मा ब्रांड पर
अम्मा कैंटीन
1 रुपये में इडली सांभर और 5 रुपये में चावल. राज्य के सभी बड़े शहरों में अम्मा कैंटीन खुली.
अम्मा मिनरल वाटर
10 रुपये मिनरल वाटर की बोतल. चेन्नई समेत सभी प्रमुख शहरों में रेलवे स्टेशन-बस स्टैंड के आसपास बिकती है. बोतल पर अम्मा की तस्वीर.
अम्मा फार्मेसी
राज्य के प्रमुख अस्पतालों के पास खुले फार्मेसी में सस्ती दरों पर दवाएं उपलब्ध हैं.
अम्मा सीमेंट
गरीबों को घर बनाने के लिए सस्ते में सीमेंट बेचने की योजना को लोगों ने पसंद किया है.
बेबी केयर किट
अम्मा बेबी केयर किट में मच्छरदानी, मैट्रेस, साबुन, कपड़े, नैपकीन, बेबी शैंपू 16 सामान मुफ्त में दिये जाते हैं.
अम्मा मोबाइल
राज्य के स्वयं सहायता समूहों को फ्री में स्मार्टफोन. इसके अलावा अम्मा सॉल्ट, अम्मा सीड्स.
काफी कुछ मुफ्त में
गरीब औरतों को मिक्सर ग्राइंडर, लड़कियों को साइकिलें, छात्रों को स्कूल बैग, किताबें, यूनीफार्म, फ्री में मास्टर हेल्थ चेकअप.
राजनीित के शुरुआती दौर में ही जया ने अपनी छाप छोड़ी थी, जब जयललिता ने इंदिरा गांधी को प्रभावित किया
पार्टी में उनकी ताकत बढ़ने की गति से वरिष्ठ सदस्य चिंतित थे, और उन्हें आशंका थी कि पार्टी की यह नयी सदस्या को जल्दी ही कैबिनेट में जगह दे दी जायेगी, लेकिन एमजीआर कुछ और सोच रहे थे. उन्हें दिल्ली में किसी तेजतर्रार व्यक्ति की जरूरत थी जो उनके और केंद्र के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा सके. जयललिता शानदार अंग्रेजी बोलती थीं. वे हिंदी भी धाराप्रवाह बोल लेती थीं. एमजीआर ने 24 मार्च, 1984 को घोषणा की कि जयललिता को राज्यसभा के लिए नामांकित किया गया है. राज्यसभा में उन्हें जो सीट दी गयी, उसकी संख्या 185 थी. यह वही सीट थी जिस पर 1963 में सांसद के रूप में सीएन अन्नादुरै बैठते थे.
जयललिता जहां भी होती थीं, आकर्षण का केंद्र बन जाती थीं. राज्यसभा में उनके पहले भाषण को उच्चारण की शुद्धता और शिष्ट गद्य के सराहा गया था. राज्यसभा में उनके साथ सांसद रहे खुशवंत सिंह ने प्रशंसा में कहा था कि यह बुद्दिमत्ता और सौंदर्य का संगम है. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी खासा प्रभावित हुई थीं. अब एमजीआर चाहते थे कि जयललिता इंदिरा गांधी से मिलें. एमजीआर द्वारा जयललिता के साथ दिल्ली भेजे गये सोलाई ने उस बैठक का विवरण इन शब्दों में दिया है- ‘कांग्रेस द्रमुक के साथ गंठबंधन में थी. हमारा प्रस्ताव था कि कांग्रेस को अन्नाद्रमुक के साथ गंठबंधन करना चाहिए. जयललिता को कहा गया कि वे प्रधानमंत्री पर इस बात को लेकर जोर डालें. जयललिता को सिर्फ दस मिनट का समय दिया गया था, पर दोनों की बातचीत आधे घंटे चली. इंदिरा गांधी इतनी प्रभावित थीं कि हमारी वापसी के समय उन्होंने तमिलनाडु कांग्रेस के नेता मूपनार को साथ भेजा ताकि गंठबंधन के बारे में निर्णय हो सके. लेकिन इंदिरा गांधी के साथ बैठक के बाद जयललिता ने तुरंत एमजीआर को रिपोर्ट नहीं किया, जबकि उन्हें ऐसा करना चाहिए था क्योंकि एमजीआर ने ही उन्हें इसकी जिम्मेवारी दी थी. स्वाभाविक रूप से एमजीआर इस बैठक के नतीजे को लेकर चिंतित थे. जब हम इंदिरा गांधी के आवास से वापस आ रहे थे, मैंने उन्हें कहा कि कृपया नेता से इस बैठक के बारे में बात कर लें. उन्होंने कुछ लापरवाह अंदाज में कहा, ‘कर लेंगे’. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. एमजीआर ने बैठक की जानकारी लेने के लिए मुझे फोन किया. हम उसी दिन चेन्नई के लिए रवाना हो गये और जहाज पर मैंने उनसे पूछा, ‘आपने नेता को मुलाकात के बारे में नहीं बताया?’ उन्होंने कहा, ‘हमलोग उनसे आमने-सामने मिलने तो जा ही रहे हैं. मैंने सोचा कि तभी सारी बात बता देंगे.’ एमजीआर को निश्चिंतता से लेने के उनके इस व्यवहार से नेता को गलत संकेत गया.’ ऐसा लग रहा था कि वे अपने कद से कहीं अधिक बड़ी होने लगी थीं. एमजीआर के आसपास रहनेवाले वरिष्ठ सदस्य उनके खिलाफ आग लगाने लगे थे.
(‘अम्मा : जयललिताज जर्नी फ्रॉम मूवी स्टार टु पॉलिटिकल क्वीन’ के अंश)
एमजीआर रहे राजनीतिक गुरु
फिल्मों में
फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने के कारण एमजीआर ने सन 1984 में उन्हें पार्टी की प्रतिनिधि के बतौर जयललिता को राज्यसभा भेजा. 1984 से 1989 तक वे तमिलनाडु से राज्यसभा की सदस्य बनी थीं. इसके बाद से ही जयललिता को एमजीआर का उत्तराधिकारी माना जाने लगा था. लेकिन यह उनकी पार्टी के कई नेताओं को पसंद नहीं था. 1984 में जब ब्रेन स्ट्रोक के कारण रामचंद्रन अक्षम हो गये तब जया ने मुख्यमंत्री का पद संभालना चाहा, लेकिन तब रामचंद्रन ने उन्हें पार्टी के उप नेता पद से भी हटा दिया था. वर्ष 1987 में रामचंद्रन का निधन हो गया और इसके बाद अन्ना द्रमुक दो धड़ों में बंट गयी. एक धड़े की नेता एमजीआर की विधवा जानकी रामचंद्रन थीं और दूसरे की जयललिता, लेकिन जयललिता ने खुद को रामचंद्रन की विरासत का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था.
राजनीति में
एमजीआर के शव के पास 21 घंटे खड़ी थीं, पीटा भी गया
दिसंबर 1987 में 38 वर्षीय जयललिता उस समय अन्नाद्रमुक की प्रचार सचिव थीं. उस दिन करीब 21 घंटे तक राजाजी हॉल में जयललिता एमजीआर के शव के पास खड़ी रहीं.
जब एमजीआर के शव को राजाजी हॉल से निकालकर ले जाया जाने लगा तो जयललिता ने भी उस गाड़ी पर चढ़ने की कोशिश की, जिससे एमजीआर को ले जाया जा रहा था. पर तभी वहां एमजीआर की पत्नी जानकी रामचंद्रन और भतीजा दीपन आया. दीपन ने जयललिता के सिर पर जोर से मारा और उन्हें नीचे उतार दिया था. फिर जयललिता ने चढ़ने की कोशिश की तो दीपन ने उन्हें पीटा, धक्का दिया और नीचे गिरा दिया.
कसम ली थी- सीएम बन कर लौटूंगी
जयललिता को एमजी रामचंद्रन अपनी पार्टी में इसलिए लेकर आये थे क्योंकि वे एक अच्छी वक्ता थीं. उनके भाषण में बहुत भीड़ जुटती थी. जयललिता भाषण को डायलॉग की तरह रट लेती थीं.
1989 में डीएमके के एक मंत्री ने विधानसभा में जयललिता के साथ बुरा बरताव किया था. आरोप तो ये भी लगा था उनकी साड़ी खींची गयी. जयललिता ने उसी समय कसम खायी थी कि वे विधानसभा में मुख्यमंत्री बनकर लौटेंगी.
फिल्में छोड़ने के बाद जयललिता कभी फिल्मी कार्यक्रम में नहीं गयीं. यहां तक कि उन्होंने मेकअप करना भी छोड़ दिया था.
उन्हें आलोचना पसंद नहीं थी. उनके समर्थक उन्हें भगवान की तरह पूजते थे और उन्हें ये पसंद भी था.
जयललिता काे अंधविश्वासी माना जाता था. वे ज्योतिष में काफी विश्वास करती थीं और हरे रंग को अपने लिए भाग्यशाली मानती थी.
जयललिता की पहली फिल्म को एडल्ट सर्टिफिकेट मिला था और टीनएजर होने के चलते वे खुद फिल्म देखने नहीं देख सकीं थी.
पार्टी के अंदर और सरकार में रहते हुए मुश्किल और कठोर फैसलों के लिए मशहूर जयललिता को तमिलनाडु में आयरन लेडी और तमिलनाडु की मार्गरेट थैचर भी कहा जाता है.
जयललिता को गठिया की समस्या थी, इसलिए उनके लिए सागौन की लकड़ी की बनी खास कुर्सी डिजाइन की गयी थी. इस कुर्सी की कीमत डेढ़ लाख रुपये बतायी गयी थी.
तमिलनाडु की सबसे कम उम्र की सीएम
1989 के विधानसभा चुनाव में मिली पराजय के बाद एआइडीएमके भीतर लामबंदी और तेज हो गयी. जयललिता को विपक्ष का नेता चुना गया. उन्होंने करुणानिधि और डीएमके की नीतियों का जम कर विरोध किया. उनके प्रभावी नेतृत्व के कारण जयललिता का अपनी पार्टी में प्रभुत्व बढ़ता गया. आखिर जानकी रामचंद्रन ने राजनीति से संन्यास ले लिया और दोनों धड़ों का आपस में विलय हो गया.
वे 24 जून 1991 से 12 मई 1996 तक राज्य की पहली निर्वाचित मुख्यमंत्री और राज्य की सबसे कम उम्र की मुख्यमंत्री रही थी. वर्ष 1989 में उनकी पार्टी ने राज्य विधानसभा में 27 सीटें जीतीं और वे तामिलनाडु की पहली निर्वाचित नेता प्रतिपक्ष बनी थी. वर्ष 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद राज्य में हुए चुनावों में उनकी पार्टी ने कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ा और सरकार बनायी. 1996 में उनकी पार्टी चुनावों और वे खुद भी चुनाव हारे. इस हार के बाद सरकार विरोधी जनभावना और उनके मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई मामले उजागर हुए. 2001 में भ्रष्टाचार के मामलों और कोर्ट से सजा होने के बावजूद वे अपनी पार्टी को चुनावों में जिताने में सफल रहीं. हालांकि गंभीर आरोपों के कारण उन्हें इस दौरान काफी कठिन दौर से गुजरना पड़ा, पर वे फिर एक बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनने में सफल हुई. उन्होंने गैर चुने हुए मुख्यमंत्री के तौर पर कुर्सी संभाल ली.
इसी बीच भ्रष्टाचार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी नियुक्ति को अवैध घोषित कर दिया और उन्हें अपनी कुर्सी अपने विश्वस्त मंत्री ओ पन्नीरसेल्वम को सौंपनी पड़ी. जब उन्हें मद्रास हाईकोर्ट से कुछ आरोपों से राहत मिल गयी तो वे मार्च 2002 में फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल ली. हालांकि 2004 के लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हार गयी थी. अप्रैल 2011 में जब 11 दलों के गंठबंधन ने 14वीं राज्य विधानसभा में बहुमत हासिल किया तो वे तीसरी बार मुख्यमंत्री बनी थी. उन्होंने 16 मई 2011 को मुख्यमंत्री पद की शपथ लीं .
पांच बार रहीं मुख्यमंत्री
24/06/1991-12/5/1996
14/05/2001-21/09/2001
2/03/2002-12/05/2006
29/02/2011-27/092014
23/05/2015- 5/12/2016