एमजीआर कीपार्टी में उनकी ताकत बढ़ने की गति से वरिष्ठ सदस्य चिंतित थे, और उन्हें आशंका थी कि पार्टी की यह नयी सदस्या को जल्दी ही कैबिनेट में जगह दे दी जायेगी, लेकिन एमजीआर कुछ और सोच रहे थे. उन्हें दिल्ली में किसी तेजतर्रार व्यक्ति की जरूरत थी जो उनके और केंद्र के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा सके. जयललिता शानदार अंग्रेजी बोलती थीं. वे हिंदी भी धाराप्रवाह बोल लेती थीं. एमजीआर ने 24 मार्च, 1984 को घोषणा की कि जयललिता को राज्यसभा के लिए नामांकित किया गया है. राज्यसभा में उन्हें जो सीट दी गयी, उसकी संख्या 185 थी. यह वही सीट थी जिस पर 1963 में सांसद के रूप में सीएन अन्नादुरै बैठते थे.
जयललिता जहां भी होती थीं, आकर्षण का केंद्र बन जाती थीं. राज्यसभा में उनके पहले भाषण को उच्चारण की शुद्धता और शिष्ट गद्य के सराहा गया था. राज्यसभा में उनके साथ सांसद रहे खुशवंत सिंह ने प्रशंसा में कहा था कि यह बुद्दिमत्ता और सौंदर्य का संगम है. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी खासा प्रभावित हुई थीं. अब एमजीआर चाहते थे कि जयललिता इंदिरा गांधी से मिलें. एमजीआर द्वारा जयललिता के साथ दिल्ली भेजे गये सोलाई ने उस बैठक का विवरण इन शब्दों में दिया है- ‘कांग्रेस द्रमुक के साथ गंठबंधन में थी.
हमारा प्रस्ताव था कि कांग्रेस को अन्नाद्रमुक के साथ गंठबंधन करना चाहिए. जयललिता को कहा गया कि वे प्रधानमंत्री पर इस बात को लेकर जोर डालें. जयललिता को सिर्फ दस मिनट का समय दिया गया था, पर दोनों की बातचीत आधे घंटे चली. इंदिरा गांधी इतनी प्रभावित थीं कि हमारी वापसी के समय उन्होंने तमिलनाडु कांग्रेस के नेता मूपनार को साथ भेजा ताकि गंठबंधन के बारे में निर्णय हो सके. लेकिन इंदिरा गांधी के साथ बैठक के बाद जयललिता ने तुरंत एमजीआर को रिपोर्ट नहीं किया, जबकि उन्हें ऐसा करना चाहिए था क्योंकि एमजीआर ने ही उन्हें इसकी जिम्मेवारी दी थी. स्वाभाविक रूप से एमजीआर इस बैठक के नतीजे को लेकर चिंतित थे. जब हम इंदिरा गांधी के आवास से वापस आ रहे थे, मैंने उन्हें कहा कि कृपया नेता से इस बैठक के बारे में बात कर लें. उन्होंने कुछ लापरवाह अंदाज में कहा, ‘कर लेंगे’. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. एमजीआर ने बैठक की जानकारी लेने के लिए मुझे फोन किया. हम उसी दिन चेन्नई के लिए रवाना हो गये और जहाज पर मैंने उनसे पूछा, ‘आपने नेता को मुलाकात के बारे में नहीं बताया?’
उन्होंने कहा, ‘हमलोग उनसे आमने-सामने मिलने तो जा ही रहे हैं. मैंने सोचा कि तभी सारी बात बता देंगे.’ एमजीआर को निश्चिंतता से लेने के उनके इस व्यवहार से नेता को गलत संकेत गया.’ ऐसा लग रहा था कि वे अपने कद से कहीं अधिक बड़ी होने लगी थीं. एमजीआर के आसपास रहनेवाले वरिष्ठ सदस्य उनके खिलाफ आग लगाने लगे थे.
(‘अम्मा : जयललिताज जर्नी फ्रॉम मूवी स्टार टु पॉलिटिकल क्वीन’ के अंश)