जब जयललिता की राजनीतिक विरासत को लेकर चर्चाएं हो रही हैं, तो इतना जरूर कहा जा सकता है कि उनके परिवार के लोग उसमें अपनी हिस्सेदारी पाने की शायद ही कोशिश करेंगे. ऐसा कर पाना उनके लिए बहुत मुश्किल इसलिए भी है कि खून के रिश्ते के अलावा उनके पास दावा करने का कोई आधार नहीं है.
बीते दो महीने से ज्यादा वक्त से अस्पताल में बीमार जयललिता के आसपास पार्टी नेताओं, समर्थकों और चाहनेवालों का हुजूम तो था, पर उनके अपने परिवार का कोई भी मौजूद नहीं रहा. उनके भाई की बेटी दीपा एक दफे आयीं, पर पुलिस ने उन्हें वापस लौटा दिया कि जब वे बात करने की हालत में होंगी, तो खबर दे दी जायेगी. पर, ऐसा हुआ नहीं, और दीपा अपनी बुआ को आखिरी पलों में नहीं देख सकी. दो साल पहले जब जयललिता जेल से वापस आयी थीं, तब भी आवास के पास फुटपाथ पर घंटों खड़े रहने के बावजूद दीपा और उनके पति माधवन उनसे नहीं मिल सके थे. दीपा का जन्म जयललिता के घर में हुआ था.
जयललिता और राजनीतिक तथा व्यक्तिगत करीबी तो हमेशा सुर्खियों में रहे हैं, पर उनके परिवार को लेकर कोई चर्चा नहीं की जाती. पत्रकार वासंती द्वारा लिखी जीवनी से संकेत मिलता है कि पहले एमजीआर और बाद में शशिकला के कारण ऐसा हुआ तथा जयललिता अपने रिश्तेदारों के स्वार्थी स्वभाव से भी निराश थीं. बहरहाल, इतना जरूर कहा जाना चाहिए कि जयललिता की राजनीति में जो भी दोष हों, पर परिवारवाद से त्रस्त भारतीय राजनीति में उन पर अपने सगे-संबंधियों को आगे बढ़ाने का आरोप नहीं लगाया जा सकता है.