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अम्मा के अपने कहां हैं?

जब जयललिता की राजनीतिक विरासत को लेकर चर्चाएं हो रही हैं, तो इतना जरूर कहा जा सकता है कि उनके परिवार के लोग उसमें अपनी हिस्सेदारी पाने की शायद ही कोशिश करेंगे. ऐसा कर पाना उनके लिए बहुत मुश्किल इसलिए भी है कि खून के रिश्ते के अलावा उनके पास दावा करने का कोई आधार […]

जब जयललिता की राजनीतिक विरासत को लेकर चर्चाएं हो रही हैं, तो इतना जरूर कहा जा सकता है कि उनके परिवार के लोग उसमें अपनी हिस्सेदारी पाने की शायद ही कोशिश करेंगे. ऐसा कर पाना उनके लिए बहुत मुश्किल इसलिए भी है कि खून के रिश्ते के अलावा उनके पास दावा करने का कोई आधार नहीं है.

बीते दो महीने से ज्यादा वक्त से अस्पताल में बीमार जयललिता के आसपास पार्टी नेताओं, समर्थकों और चाहनेवालों का हुजूम तो था, पर उनके अपने परिवार का कोई भी मौजूद नहीं रहा. उनके भाई की बेटी दीपा एक दफे आयीं, पर पुलिस ने उन्हें वापस लौटा दिया कि जब वे बात करने की हालत में होंगी, तो खबर दे दी जायेगी. पर, ऐसा हुआ नहीं, और दीपा अपनी बुआ को आखिरी पलों में नहीं देख सकी. दो साल पहले जब जयललिता जेल से वापस आयी थीं, तब भी आवास के पास फुटपाथ पर घंटों खड़े रहने के बावजूद दीपा और उनके पति माधवन उनसे नहीं मिल सके थे. दीपा का जन्म जयललिता के घर में हुआ था.

जयललिता के शुरुआती साल अपने नाना-नानी के घर मैसूर में बीते थे. बाद में भी उनकी माता के परिवार से उनके संबंध बने रहे थे. पर, सितंबर, 1995 में दत्तक पुत्र सुधाकरण की भव्य शादी के बाद परिवार और रिश्तेदारों से उनके संबंध खराब होते चले गये. जयललिता अपने मामा और मौसी के करीब भी रही थीं. जयललिता 1995 में अपने भाई की मौत के बाद दीपा के घर गयी थीं, परंतु 2013 की जनवरी में भाभी के अंतिम संस्कार में मौजूद नहीं थीं. खबरों में दीपा के हवाले से बताया गया है कि उन्होंने जयललिता से रिश्ते कायम रखने की पूरी कोशिश की, पर शायद उनके आसपास के लोगों या परिस्थितियों की वजह से ऐसा न हो सका.

जयललिता और राजनीतिक तथा व्यक्तिगत करीबी तो हमेशा सुर्खियों में रहे हैं, पर उनके परिवार को लेकर कोई चर्चा नहीं की जाती. पत्रकार वासंती द्वारा लिखी जीवनी से संकेत मिलता है कि पहले एमजीआर और बाद में शशिकला के कारण ऐसा हुआ तथा जयललिता अपने रिश्तेदारों के स्वार्थी स्वभाव से भी निराश थीं. बहरहाल, इतना जरूर कहा जाना चाहिए कि जयललिता की राजनीति में जो भी दोष हों, पर परिवारवाद से त्रस्त भारतीय राजनीति में उन पर अपने सगे-संबंधियों को आगे बढ़ाने का आरोप नहीं लगाया जा सकता है.

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