नयी दिल्ली : नोटबंदी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए केंद्र सरकार से कुछ सवाल किये हैं. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि हालात कबतक सामान्य होंगे और क्या फैसले से पहले पूरी गोपनीयता बरती गयी थी? इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि क्या यह फैसला संवैधानिक रूप से सही है. एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह सवाल केंद्र से किया है. सरकार की तरफ से अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने पक्ष रखा है . उन्होंने प्रधानमंत्री के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अभी और 10 से 15 दिनों का समय लगेगा. इसके बाद हालात सामान्य होंगे.
न्यायालय जानना चाहता है कि क्या जिला सहकारी समितियां कुछ शर्तो के साथ पुरानी मुद्रा स्वीकार कर सकती हैं और क्या बैंकों से न्यूनतम धन निकासी सुनिश्चित की जा सकती है प्रधान न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने अटार्नी जनरल से कहा कि वह इस बारे में निर्देश प्राप्त करके सहाकारी बैंकों को चलन से बाहर हो गये नोट स्वीकार करने पर प्रतिबंध सहित विभिनन मुद्दों पर सरकार के दृष्टिकोण से अवगत करायें. पीठ ने यह भी सवाल किया कि जब धन निकालने की न्यूनतम सीमा निर्धारित की गयी है तो फिर लोग यह धन क्यों नहीं निकाल पा रहे हैं.
पीठ ने इस मामले की सुनवाई 14 दिसंबर के लिए स्थगित करते हुये कहा, ‘‘क्या हम कह सकते हैं कि यह साप्ताहिक न्यूनतम राशि एक व्यक्ति बैंक से निकाल सकता है.’ इस बीच, पीठ ने भावी सुनवाई के लिये विभिन्न विचारणीय कानूनी सवाल तैयार करने का प्रस्ताव रखा. इस पर रोहतगी ने विमुद्रीकरण पर विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों पर रोक लगाने का निर्देश देने का अनुरोध किया. पीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर अगली सुनवाई में विचार किया जायेगा.
शीर्श अदालत ने दो दिसंबर को केंद्र से कहा था कि ग्रामीण इलाकों में नागरिकों की परेशानियों और असुविधा को कम करने के लिये अब तक किये गये उपायों की जानकारी दी जाये. विमुद्रीकरण के विभिन्न पहलुओं को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुये न्यायालय ने कहा था कि सभी पक्ष एकसाथ मिलकर बैठें और मामलों को श्रेणीबद्ध करें जिन्हें उच्च न्यायालय भेजा जा सकता है और जिनकी सुनवाई शीर्ष अदालत कर सकती है.
अटार्नी जनरल ने कहा था कि सरकार को सहकारी बैंकों की स्थिति की जानकारी है जिनमें अधिसूचित बैंकों की तुलना में बुनियादी सुविधा और व्यवस्था का अभाव है. केंद्र सरकार ने 24 नवंबर को विमुद्रीकरण के मामले में न्यायालय में एक हलफनामा दाखिल किया था और कहा था कि यह ‘साहसी कदम’ आजादी के बाद से ही ‘समानांतर अर्थव्यवस्था’ के रुप में गरीब और मध्यम वर्ग को प्रभावित कर रहा है और यह जमा और काला धन खत्म करेगा. शीर्ष अदालत 29 नवंबर को दूसरी बैंकों की तरह ही सकारी बैंकों को भी कारोबार की अनुमति देने के लिये केरल की 14 सहाकारी बैंकों की याचिकाओं पर भी सुनवाई के लिये सहमत हो गया था.