मदन मोहन मालवीय के जीवन से जुड़े दिलचस्प तथ्य
नयी दिल्ली (भाषा) : देश की अमूल्य धरोहर महामना मदन मोहन मालवीय यूं तो किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं, लेकिन ये बात शायद सब नहीं जानते कि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक मालवीयजी ने देश में उस वक्त संस्कृत-संस्कृति, हिन्दी और शिक्षा-दीक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए काम किया जब इसमें गिरावट आ रही थी […]
नयी दिल्ली (भाषा) : देश की अमूल्य धरोहर महामना मदन मोहन मालवीय यूं तो किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं, लेकिन ये बात शायद सब नहीं जानते कि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक मालवीयजी ने देश में उस वक्त संस्कृत-संस्कृति, हिन्दी और शिक्षा-दीक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए काम किया जब इसमें गिरावट आ रही थी और अंग्रेजों का शासन अपने चरम पर था. भारत सरकार ने 24 दिसंबर 2014 को उन्हें मरणोपरांत ‘भारतरत्न’ से अलंकृत किया था.
पत्रकार, समाज सुधारक, वकील, मातृ भाषा के संरक्षक और भारत माता के चरणों में अपना जीवन न्योछावर करने वाले मालवीयजी बचपन से ही निडर प्रकृति के और संघर्ष से कभी नहीं हिचकने वाली शख्सियत के मालिक थे. उनके इन्हीं गुणों के कारण उन्हें ‘महामना’ की उपाधि प्रदान की गई थी.
महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के पौत्र और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय ने बातचीत में कहा, ‘‘बीएचयू मालवीय जी के जीवन की आखिरी कृति है. उन्होंने इससे पहले कई सारे अनूठे काम किये. उन्होंने शिक्षा-दीक्षा के प्रचार-प्रसार और हिन्दी के विकास के लिए काफी काम किया.’ उन्होंने बताया, ‘‘उस जमाने में अंग्रेजों का शासन था और अंग्रेजी एवं फारसी का बोलबाला था। ऐसे में उन्होंने हिन्दी की लडाई लड़ी और पत्रकारिता, वकालत, समाज सुधार, मातृभाषा और भारत माता की सेवा में अपना जीवन अर्पण किया.’ 25 दिसंबर 1861 को इलाहाबाद में जन्मे मालवीयजी की आज जयंती है. गौरतलब है कि महामना श्रीमद्भागवत का वाचन किया करते थे.
उनके जीवन के अनछुए पहलू का जिक्र करते हुये गिरिधर मालवीय ने बताया, ‘‘लोगों को लगता है कि महामना गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे लेकिन ऐसा नहीं था. उनके दादाजी की इलाहाबाद के पास बहुत बडी जजमानी थी और उनके सारे चाचा इसी काम में लगे हुए थे. लेकिन इनके पिता ब्रजनाथजी जजमानी नहीं करना चाहते थे। उनका कहना था कि इससे मिला धन निषिद्ध है. ऐसे में जीवकोपार्जन करने के लिए उन्होंने श्रीमद्भागवत का पाठ शुरू किया और उससे मिलने वाले धन से अपने परिवार का भरन-पोषण किया और गरीबी मोल ली.’ महामना के अंग्रेजी सीखने के बारे में एक दिलचस्प कहानी बयां करते हुये गिरिधर ने कहा, ‘‘इलाहाबाद में एक चर्च का पादरी लोगों को झूठा प्रलोभन दिया करता था.