कैसे होता है राजनीतिक दलों में कालेधन को सफेद बनाने का खेल
चुनाव आयोग भी यह मानता है कि राजनीतिक पार्टियों में कालेधन को बड़े पैमाने पर खपाया जाता है. नोटबंदी के बाद यह सवाल बार-बार उठते रहे हैं कि आय के स्रोतों का खुलासा करने की कानून बाध्यता के मामले में आम आदमी और राजनीतिक दलाें के बीच भेद क्यों? चुनाव आयोग ने पहले भी यह […]
चुनाव आयोग भी यह मानता है कि राजनीतिक पार्टियों में कालेधन को बड़े पैमाने पर खपाया जाता है. नोटबंदी के बाद यह सवाल बार-बार उठते रहे हैं कि आय के स्रोतों का खुलासा करने की कानून बाध्यता के मामले में आम आदमी और राजनीतिक दलाें के बीच भेद क्यों? चुनाव आयोग ने पहले भी यह सिफारिश की थी कि चंदे में मिलने वाली हर रकम का स्रोत राजनीतिक पार्टियों को बताना चाहिए. नोटबंदी के बाद एक बार फिर आयोग ने इसकी सिफारिश केंद्र सरकार से की है.
आखिरकार, राजनीतिक दलों को कालेधन को सफेद करने या कालेधन को खपाने का कानूनी कवच क्या है?
दरअसल, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951, विदेशी मुद्रा विनिमय अधिनियम 1976, कंपनी एक्ट आैर आयकर अधिनियम में भारत की पंजीकृत राजनीतिक पार्टियों को चंदा और धन प्राप्त करने के विषय में प्रावधान हैं. इन्हीं प्रावधानों को आधार बना कर राजनीतिक दल अपनी आय के स्रोतों को छुपाते हैं और कालेधन को सफेद करते हैं.
1. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 : इस कानून की धारा 29-बी में यह प्रावधान है कि राजनीतिक दल भारत में सरकारी कंपनियों और संगठनों को छोड़ कर सबसे चंदा ले सकते हैं. इसमें सभी नागरिक तथा निजी क्षेत्र के सभी संस्थान, कंपनी और औद्योगिक संस्थान शामिल हैं. उन विदेशी कंपनियों से भी राजनीतिक दल चंदा ले सकते हैं, जो भारत में सक्रिय हों.
2. विदेशी मुद्रा विनिमय अधिनियम, 1976 : इस कानून की धारा-3 और 4 राजनीतिक दलों को उन कंपनियों से चंदा लेने की इजाजत देती है, जो विदेशी तो हों, लेकिन उनका संचालन भारत में होता है.
3. कंपनी एक्ट : इस कानून की धारा 293-ए कंपनियों को राजनीतिक चंदे की इजाजत देती है. हालांकि चंदे की रकम को लेकर कंपनियों के लिए कुछ शर्तें तय हैं, मगर राजनीतिक दलों के लिए ऐसा कुछ भी नहीं है. यानी कौन-सी कंपनी कब से और कितनी रकम चंदा देगी, इसकी सीमा तय है, लेकिन कोई राजनीतिक दल किसी कंपनी से कितना चंदा लेगा, यह तय नहीं है. वह कितनी भी राशि इनसे प्राप्त कर सकता है. जैसे तीन साल से ज्यादा पुरानी कंपनी ही किसी राजनीतिक दल को अपनी वार्षिक आय की पांच फीसदी तक की राशि चंदे में दे सकती है.
4. आयकर अधिनियम: आयकर अधिनियम की धारा-13-ए में राजनीतिक दलों को आयकर से छूट है. दूसरी बात कि उन्हें अपना सालाना इनकम टैक्स रिटर्न तो फाइल करना होता है, लेकिन 20 हजार से कम के चंदे का स्रोत बताना जरूरी नहीं है. इसी प्रावधान की आड़ में राजनीतिक दल करोड़ों रुपये का कालाधन आसानी से प्राप्त कर लेते हैं और उसका स्रोत नहीं नहीं बताते हैं. कालेधन को राजनीतिक प्रोत्साहन और संरक्षण यहीं से मिलता है.