!!आरके नीरद!!
संसद की लोक लेखा समिति (पब्लिक एकाउंट्स कमेटी) ने नोटबंदी पर अचानक लिये गये फैसले, इसके पीछे की मंशा और इसे लागू करने के तरीकों को लेकर रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल और वित्त मंत्रालय के दो वरिष्ठ अधिकारियों को तलब किया है. पीएसी के अध्यक्ष ने कहा है कि अगर इन अधिकारियों के जवाब से समिति संतुष्ट नहीं होती है, तो प्रधानमंत्री को भी बुला जा सकता है. अगर ऐसा होता है, तो भारतीय संसदीय इतिहास की यह एक बड़ी घटना होगी. पीएसी ने आरबीआइ गवर्नर उर्जित पटेल, वित्त सचिव अशोक लवासा और आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास को विसतृत प्रश्नावली भेजी है और 10 मुद्दों पर जवाब मांगा है. समिति की अगली बैठक 20 जनवरी को हाेनी है और इन अधिकारियों को उसमें पेश होना है.
सवाल है कि क्या संसदीय समिति प्रधानमंत्री को तलब कर सकती है? इस संबंध में मीडिया में आयी खबर के मुताबिक पीएसी के अध्यक्ष केवी थॉमस का कहना है कि समिति ऐसा कर सकती है. थॉमस ने मीडिया के सवाल पर कहा, ‘समिति को मामले में शामिल किसी को भी बुलाने का अधिकार है. हालांकि, यह 20 जनवरी की बैठक के परिणाम पर निर्भर करता है. यदि सभी सदस्य सर्वसम्मति से तय करते हैं तो हम नोटबंदी के मुद्दे पर प्रधानमंत्री को भी बुला सकते हैं.’
वहीं संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप का कहना है कि पीएसी ऐसा नहीं कर सकती. उन्होंने हमारे साथ बातचीत में कहा, ‘पीएसी को रिजर्व बैंक के गवर्नर को बुलाने का अधिकार है और संबंधित विषय पर वह जानकारी प्राप्त कर सकती है, लेकिन प्रधानमंत्री या किसी मंत्री को पीएसी द्वारा बुलाये जाने का कोई प्रावधान नहीं है. कोई मंत्री स्वेच्छा से पीएसी के समक्ष उपस्थित हो सकता है, लेकिन पीएसी उन्हें बुला नहीं सकती.’
सुभाष कश्यप कहते है कि अब तक ऐसा कभी नहीं हुआ कि कभी किसी प्रधानमंत्री को पीएसी ने बुलाया हो.
पीएसी ने आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल को 20 जनवरी 2017 को अपने समक्ष पेश होने और यह स्पष्ट करने को कहा है कि नोटबंदी का फैसला कैसे लिया गया तथा इसका देश की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा? पीएसी ने 30 दिसंबर को नोटबंदी से जुड़े 10 सवाल उर्जित पटले को भेजे हैं. इनमें यह पूछा गया है कि नोटबंदी का फैसला लेने में केंद्रीय बैंक की भूमिका क्या थी और उसका अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा? पीएसी ने यह भी जानकारी मांगी है कि आरबीआई गवर्नर के रेगुलेशंस में नोटबंदी के बाद से अब तक क्या बदलाव किये गये? उसने उंगली पर स्याही लगाने, 8 नवंबर की आपात बैठक के लिए आरबीआई बोर्ड के सदस्यों को भेजे गये नोटिस, बैठक में शामिल अधिकारियों और बार-बार नियम बदले जाने जैसे विषयों पर भी स्थिति स्पष्ट करने को कहा है.
हालांकि आरबीआई की ओर से समिति को अब तक जवाब नहीं दिया गया है. पीएसी के अध्यक्ष ने कहा है, ‘हमने जो सवाल उन्हें भेजे थे, उनका अभी जवाब नहीं मिला है. वे 20 जनवरी की बैठक से कुछ दिन पहले जवाब भेजेंगे. जो जवाब मिलेंगे, उन पर विस्तार से चर्चा होगी.’
सवाल है, पीएसी क्या है और इसकी संवैधानिक शक्तियां कितनी हैं?
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं, ‘ पीएसी की रिपोर्ट संवेदनशील होती है. वह अपनी रिपोर्ट में सरकार से अनुशंसा करती है. उसकी रिपोर्ट को सदन में प्रस्तुत किया जाता है और उस पर सम्मानपूर्वक विचार किया जाता है, लेकिन उसकी अनुशंसा सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं होती.’
लोक लेखा समिति भारतीय संसद की सबसे पुरानी और सबसे महत्वपूर्ण समितियों में से एक है.1921 में सेंट्रल लेजिस्लेटिव एसेंबली में भी लोक लेखा समिति होती थी. यह भारतीय संसद की स्थायी समिति है, जिसका कार्यकाल एक साल का होता है. एक साल पूरा होने के बाद इसके दो तिहाई सदस्य बदल जाते हैं . इसके 22 सदस्य होते हैं, जिनमें 15 सदस्य लोकसभा से और 7 सदस्य राज्यसभा से चुने जाते हैं.
इसका अध्यक्ष 1967 तक सत्तारूढ़ दल से चुना जाता था. उसके बाद से विपक्षी दल से अध्यक्ष का चुनाव होता है. पीएसी के मौजूदा अध्यक्ष काग्रेस के हैं . समिति के 22 मेें से 9 सदस्य भाजपा, 1-1 अकाली दल और शिव सेना के तथा शेष अन्य दलों के हैं. यह समिति संसद को अपना प्रतिवेदन और अपनी अनुशंसाएं भेजती है. सबसे अहम बात यह है कि यह मुख्य तौर पर सरकारी व्यय के खातों की जांच करती है, जिसका आधार भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा दिये गये लेखा परीक्षण संबंधी प्रतिवेदन होते हैं. नोटबंदी पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की अभी कोई औडिट रिपोर्ट नहीं आयी है.