बढ़ा नक्सलवाद का प्रभाव,बिहार के 21,झारखंड के 22 जिले चपेट में

नयी दिल्ली : नक्सलवाद के स्वरुप में पिछले कुछ समय में बदलाव देखने को मिला है. जहां एक ओर नक्सली हिंसा में मामूली कमी आई है, वहीं इसका प्रभाव पारंपरिक क्षेत्रों को छोड़ नये क्षेत्रों में देखने को मिला है जिसमें बिहार, कर्नाटक, केरल के इलाके शामिल हैं.संसद में पेश गृह मंत्रालय के आंकड़ों के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 23, 2014 12:56 PM

नयी दिल्ली : नक्सलवाद के स्वरुप में पिछले कुछ समय में बदलाव देखने को मिला है. जहां एक ओर नक्सली हिंसा में मामूली कमी आई है, वहीं इसका प्रभाव पारंपरिक क्षेत्रों को छोड़ नये क्षेत्रों में देखने को मिला है जिसमें बिहार, कर्नाटक, केरल के इलाके शामिल हैं.संसद में पेश गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2013 के दौरान देश के 76 जिलों में वामपंथी उग्रवादी संगठनों की हिंसक गतिविधियां देखने को मिली जिनमें अधिकांश भाकपा माओवादी द्वारा अंजाम दी गई. वामपंथी हिंसा प्रभावित जिलों में बिहार के 21, छत्तीसगढ़ के 14, झारखंड के 22, कर्नाटक के 2, केरल के 2, मध्यप्रदेश के3, महाराष्ट्र के 2, ओडिशा के 11 और पश्चिम बंगाल के एक जिले शामिल हैं. इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस रिसर्च एंड एनालिसिस : आईडीएसए: की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षो में नक्सलवाद के स्वरुप में बदलाव देखने को मिला है, जहां नक्सली हिंसा में मामूली कमी आई है लेकिन इसका पारंपरिक क्षेत्रों को छोड़ नये क्षेत्रों में प्रभाव विस्तार देखने को मिला है.

मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, नक्सल हिंसा का पारंपरिक गढ़ माने जाने वाले पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश में इनकी गतिविधियों में कमी देखने को मिली है जबकि बिहार में इसमें विस्तार देखने को मिला है. बिहार के वैशाली, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, भोजपुर रोहतास, सारण, पटना, शिवहर, नालंदा, मुंगेर, गया, पूर्वी चंपारण, बेगूसराय, गोपालगंज जैसे जिलों में नक्सली हिंसा देखने को मिली है. आईडीएसए की रिपोर्ट में कहा गया है कि सितंबर 2009 की सरकार की रिपोर्ट में 20 राज्यों के 223 जिलों के नक्सल प्रभावित होने की बात कही गई है जबकि अगस्त 2012 में सरकार ने संसद में बताया कि 119 अन्य जिलों में नक्सलियों ने पांव पसारा है.’’

सीबीआई के पूर्व निदेशक जोगिन्दर सिंह ने कहा कि सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक 2005 से 2010 तक नक्सली हिंसा में 10,268 लोग मारे गए है और बड़ी संख्या में सरकारी प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया गया है. उन्होंने कहा कि लाल गलियारा योजना को अंजाम देने की कवायद के तहत नक्सली लगातार नये क्षेत्रों में विस्तार कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह कहना ठीक नहीं है कि नक्सली हिंसा पर केवल विकास से जुड़े कार्यो से लगाम लगाया जा सकता है. इसके लिए राज्यों के साथ मिलकर एकीकृत रणनीति बनाये जाने की जरुरत है.

सिंह ने कहा कि नक्सलियों से निपटने के लिए न तो कोई विशिष्ट कानून है और न ही राज्य सुरक्षा बलों को आधुनिक हथियारों एवं उपकरणों से लैस करने के कार्यो को पूरा करने की गंभीरता दिख रही है. मंत्रालय के 2013 के आंकड़ों के मुताबिक, छत्तीसगढ़ के बालोद, बस्तर, बीजापुर, दांतेवाड़ा, धमतरी, गरियाबंद, जसपुर, काकेंर, कोडागांव, कोरिया, नारायणपुर, रायगढ़, सुकमा, राजनंदगांव नक्सली हिंसा से प्रभावित रहे हैं. झारखंड के बोकरो, चतरा, देवगढ़, धनबाद, दुकमा, गढ़वा, पूर्वीसिंहभूम, गिरिडीह, गोड्डा, गुमला, हजारीबाग, जामतारा, खूंटी, लातेहार, पाकुड़, पलामू, रामगढ़, रांची आदि नक्सली हिंसा से प्रभावित रहे हैं. कर्नाटक के चिकमंगलूर और दक्षिण कन्नड़, मध्यप्रदेश के बालाघाट, महाराष्ट्र के गढ़ चिरौली, गोंदिया के साथ केरल के कोझीकोड़ एवं मल्लपुरम तथा पश्चिम बंगाल के पश्चिमी मिदनापुर और आंध्रप्रदेश के खम्माम और विशाखापत्तन में नक्सली हिंसा देखने को मिली.

ओडिशा के बारगढ़, बोलंगीर, गजपति, कालाहांडी, कंधमाल, कोरापुट, मलकानगिरि, नौपदा, रायगढ़, सम्बलपुर, सुंदरगढ़ में नक्सली हिंसा देखने को मिली. बहरहाल, सरकार ने संसद के विस्तारित शीतकालीन सत्र के दौरान एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि केंद्र और संबंधित राज्य सरकारों की रणनीति के फलस्वरुप वर्ष 2011 में वामपंथी उग्रवादी हिंसा में कमी आने की प्रवृति देखी गई. दूसरी ओर आईडीएसए की रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2009 से जुलाई 2012 के बीच नक्सलियों ने देश के आठ नक्सल प्रभावित राज्यों में 150 से अधिक स्कूली इमारतों को निशाना बनाया, 67 पंचायत भवनों और 14 खान को निशाना बनाया. इस अवधि में 163 रेलवे प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया गया जबकि 186 टेलीफोन प्रतिष्ठान नक्सलियों का निशाना बने.

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